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गुरुवंदन का फल तरणतारण परमात्मा ने कहा है कि हे गौतम ! आदि आठ कर्मों के गाढ बंधन हो, वे शिथील हो जाते हैं, गुरुवंदन करने से जीव नीच गोत्र के कर्मों को काटता है दीर्घस्थितिवाले हों तो अल्पस्थितिवाले, तीव्ररसवाले हों तथा तथा उच्चगोत्र के कर्म का बंध करता है तथा अप्रतिहत अधिक प्रदेशवाले बांधे हों तो अल्परसवाले तथा अल्पप्रदेशवाले आज्ञावाले व्यक्ति, अर्थात् जिसकी आज्ञा का कोई भी होते हैं, जिससे जीवात्मा अनादि-अनंत संसार रूपी जंगल में लंबे उल्लंघन न कर सके, ऐसे फलवाले सौभाग्य नामकर्म की समय तक परिभ्रमण नहीं करता है। अर्थात् शीघ्र ही परमपद-मोक्ष भी बांधता है। हे गौतम ! गुरुवंदन करने से ज्ञानावरणीय सुख का भोक्ता बनता है।
गुरुवंदन नहीं करने से होनेवाली हानि पू. गुरुभगवंत को वंदन नहीं करने से तीर्थंकर आपत्तिया तथा परम्परा से अनन्त दु:खों की खान के समान संसार भगवन्त की आज्ञा का अनादर होता है। अविधिपूर्वक में परिभ्रमण करना पड़ता है। वंदना करने से अहंकार - अविनय - उइंडता आदि दोष श्री गुरुभगवंत को कब वन्दन करना चाहिए, कब नहीं लगते हैं । वह लोगों से तिरस्कृत होता है। नीचगोत्र कर्म करना चाहिए उसका श्री गुरुवंदन भाष्य में विस्तार से वर्णन का बंध होता है, इस लोक में तथा परलोक में अनेक किया गया है। वह इस प्रकार है
श्री गुरु भगवंत को वंदन-कब नहीं करना चाहिए? श्री गुरु भगवंत को वंदन-कब करना चाहिए? १.गुरु जब धर्म चिन्तन में हों।
१. गुरु जब शान्त बैठे हों। २. जब वन्दन करनेवाले पर गुरु का लक्ष्य न हो।
२. गुरु जब अप्रमत्त हों। ३. गुरु जब प्रमाद में अर्थात् क्रोध में अथवा निद्रा में हों। ३.गुरु जब आसन पर बैठे हों। ४. जब गुरु के आहार लेने का अथवा शौच जाने का समय हो। ४. गुरु जब 'छंदेण' कहने के लिए उद्यत हों।
पू. गुरुभगवंत को किस-किस समय वन्दन करना चाहिए • सुबह-शाम पच्चक्खाण लेते समय 'गुरुवंदन' . 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! वायणा लेशुं ?' गुरुभगवंत कहें
कर 'इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी 'लेजो' उसके बाद 'इच्छं बोलना चाहिए। पच्चक्खाण करानाजी !' इस प्रकार आदेश 'इच्छाकारी भगवन् ! पसाय करी वायणा प्रसाद कराना जी !' मांगकर पच्चक्खाण लेना चाहिए । परन्तु रास्ते कहकर दोनों हाथ जोड़कर मस्तक झुकाकर खड़ा रहना चाहिए । में आते-जाते हुए अथवा वंदन किए बिना व्याख्यान अथवा वाचना का समय हो और पू. गुरुभगवंत मांगलिक पच्चक्खाण नहीं लेना चाहिए।
फरमावे तो एकाग्रचित्त से सुनना चाहिए। पू गुरुभगवंत के पास व्याख्यान-वाचना श्रवण किसी धार्मिक वांचन की अनुमति प्राप्त करनी हो अथवा गाथा लेनी करने से पहले तथा बाद में और गाथा लेने से हो तब मांगलिक सुनने की आवश्यकता नहीं रहती है। पहले तथा बाद में गुरुवंदन करना चाहिए। उपाश्रय में बिराजमान पू. गुरुभगवंत को संयम पर्याय के क्रमानुसार व्याख्यान श्रवण-वाचना-गाथा लेने से पहले छोटे-बड़े की मर्यादा के अनुसार अवश्य वंदन करना चाहिए । यदि गुरुवंदन करने के बाद निम्नलिखित आदेश किन्हीं अनिवार्य संजोगों के कारण यह सम्भव न हो तो फिट्टा वंदन एक-एक खमासमणा के साथ मांगना चाहिए। 'मत्थएण वंदामि' प्रत्येक पू. गुरुभगवंत को भावपूर्वक करना चाहिए। 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! वायणा एक स्थान पर खड़े रहकर सभी साधु भगवंतों को एक साथ ही वन्दन संदिसाहुं ?' गुरुभगवंत कहें 'संदिसावेह' उसके नहीं करना चाहिए । शुद्ध उच्चारण तथा शुद्ध विधि के साथ किया गया बाद 'इच्छं' बोलना चाहिए।
। गुरुवंदन विपुल कर्म निर्जरा में सहायक बनता है।
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