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५. श्री अब्भुट्टिओ सूत्र
आदान नाम : श्री अब्भुट्ठिओ सूत्र | विषय :
गौण नाम : गुरु खामणा सूत्र | श्री गुरुभगवंत के प्रतिक्रमण करते समय
उपाश्रय में गुरुवंदन गुरु-अक्षर : १५
करते हुए यह सूत्र गुरुवंदन करते हुए यह सूत्र
पास अपराधों
लघु-अक्षर : १११ बोलते समय की मुद्रा। बोलते - सुनते समय की
सर्व अक्षर : १२६
की क्षमा माँगनी। (हाथ खुले रखना जरूरी है।) स्पष्ट मुद्रा। मूलसूत्र उच्चारण में सहायक
पदक्रमानुसारी अर्थ इच्छा-कारेण संदिसह भगवन्! इच्-छा-कारे-णसन्-दि-सहभग-वन्! हेभगवन् ! स्वेच्छा से आज्ञा प्रदान करो अब्भुट्टिओमि अभितर- अब्-भुट्-ठि-ओ-मि-अब्-भिन्-तर मैं उपस्थित हूँ , दिन में रात्रि में देवसिअं(राइअं)खामेउं? देव-सिअम्-(रा-इ-अम्- )खामे-उम्? किये हुए ( अपराधों की ) क्षमा मांगने के लिये, इच्छं,खामेमि देवसिअं इच्-छम्,खामे-मि देव-सिअम्- आपकी आज्ञा स्वीकार करता हूँ, (राइअं) । (रा-इ-अम्-)
दिन में रात्रि में हुए( अपराधों) की मैं क्षमा मांगता हूँ। गाथार्थ : हे भगवन् ! स्वेच्छा से आप आज्ञा प्रदान कीजिये । दिन में (रात्रि में ) किये हुए (अपराधों की) क्षमा मांगने के लिये मैं उपस्थित हुआ हूँ। आपकी आज्ञा स्वीकार करता हूँ। दिन में (रात्रि में ) हुए (अपराधों) की मैं क्षमा मांगता हूँ। जं किंचि अपत्तिअं, जङ्-किञ् (किन्)-चि अ-पत्-ति-अम् । जो कोई अप्रीतिकारक, पर-पत्तिअं, भत्ते, पाणे, पर-पत्-ति-अम्, भत्-ते, पाणे, विशेष अप्रीतिकारक हुआ हो आहार-पानी में, विणए, वेयावच्चे, विणए-वेया-वच्-चे
विनय में, वैयावृत्त्य में, आलावे, संलावे, आला-वे, सल (सम्)-लावे, | बोलने में, बातचीत करने में, उच्चासणे, समासणे, उच्-चा-सणे, समा-सणे,
(गुरु से ) ऊंचे आसन पर बैठने से,
(गुरु के) समान आसन पर बैठने से, अंतर-भासाए, अन्-तर-भासा-ए,
(गुरु के ) बीच में बोलने से, उवरि-भासाए, उव-रि-भासा-ए,
(गुरु की बात पर) टीका टिप्पणी करने से, गाथार्थ : आहार-पानी में, विनय में, वेयावृत्य में, बोलने में, बातचीत करने में, ऊँचे आसन पर बैठने से, समान आसन पर बैठने से, बीच में बोलने से, टीका करने से जो कोई अप्रीतिकारक, विशेष अप्रीतिकारक हुआ हो..। जं किंचि मज्झ विणय-परिहीणं जङ्-किञ्-चि-मज्-झविण-य-परि-हीणम् मुझसे जो कोई विनय रहित (वर्तन) हुआ हो, सुहमंवा बायरं वा सुहुमम्-वा बायरम्-वा
सूक्ष्म( छोटा )या बादर(बड़ा)तुब्भे जाणहअहं नजाणामि, तुब्-भे-जाण-ह, अहम्-न-जाणा-मि, आप जानते हो, मैं नहीं जानता हूं, तस्स मिच्छामि दुक्कडं। तस्-स मिच्-छा-मि-दुक्-क-डम्। मेरे वे दुष्कृत्य मिथ्या हों। उपयोग के अभाव से होते अशुद्ध के सामने शुद्ध उच्चारण गाथार्थ : छोटा या बड़ा विनय रहित (वर्तन) मुझसे हुआ हो, अशुद्ध
(जो) आप जानते हो, मैं नहीं जानता हूँ, मेरे वे अपराध मिथ्या हों। अब्भुठिओमि अभ्यन्तर अब्भट्रिओमि अब्भितर विणिए
विणए सुहम वा
सुहुमं वा
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