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। इस सूत्रको थोभवंदन' सूत्र भी कहा जाता है है। गुणवान् व्यक्ति के प्रति किया गया आदर,गुणों की प्राप्ति में विघ्न उत्पन्न क्योंकि तीन प्रकारके वन्दनों में मुख्यतया थोभवंदन करनेवाले कर्मो को नाश करता है। इस प्रकार वन्दन करनेवाले साधकों के में इस सूत्र का अधिक उपयोग होता है। गुरुवन्दन का लिए गुणवान् के प्रति आदरभाव गुणों की प्राप्ति का कारण बनता है, अतः लाभ अपरंपार है । परन्तु इसके लिए गुरुवन्दन की क्षमादि गुणों को प्राप्त करने की इच्छावाले प्रत्येक साधक को इस सूत्र के शास्त्रीय विधि भली-भाति समझकर तैयार करना द्वारा अत्यन्त भावपूर्वकवन्दन करना चाहिए। आवश्यक है। प्रतिक्रमण में थोभवन्दन सूत्र का महिलाओं को अकेले अथवा अशिष्ट वस्त्रों में साधु भगवन्तों के उपयोग प्रायः होता है। इसके अतिरिक्त चैत्यवंदन तथा उपाश्रय में नहीं जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त साधुभगवन्त के उपाश्रय में अन्य धार्मिक क्रियाओं में भी इसकी आवश्यकता महिलाओं की उपस्थिति भी उचित नहीं है। अतः दैनिक वन्दन के लिए पड़ती है। अतः इस सूत्र की गणना एक अत्यन्त महिलाओं को साध्वीजी भगवन्त के उपाश्रय में ही जाना चाहिए । हा, | उपयोगी सूत्र में की जाती है।
वाचना, व्याख्यान आदि के अवसर पर महिलाओं को भी साधुभगवन्तों के इस सूत्र के द्वारा क्षमादिगुणों से विभूषित देव वन्दन का लाभ अवश्य लेना चाहिए । किन्ही अनिवार्य संयोगों में तथा गुरु की वन्दना की जाती है। गुणवान् व्यक्ति के साधुभगवन्त के उपाश्रय में महिलाएं पहले से आज्ञा लेकर सामूहिक वन्दन दर्शन होते ही उनके गुणों के प्रति आदरभाव प्रगट होता करने जा सकती हैं।
इस प्रकार क्षमाश्रमण गुरुभगवन्तों को वन्दन करने के तीन प्रकार शास्त्रों में बतलाए गए हैं (१) जघन्य गुरुवन्दन : फिट्टावन्दन : फिट्टा-मस्तक
प्रणिपात के साथ इच्छकार, अब्भुट्ठिओ सूत्र बोलते हुए | रास्ते में आते-जाते यदि साधु भगवन्त अथवा साध्वी भगवन्त किया जानेवाला वन्दन । दो हाथ, दो घुटने तथा मस्तक इन मिलें, तो उनको विधिपूर्वक वन्दन करना सम्भव नहीं हो, तब इन पाँच अंगों को जमीन पर टिकाकर किये जानेवाले वन्दन को संयोगों में मस्तक को नमाने से वन्दन किया जाता है, उसे 'पंचांग प्रणिपात' कहा जाता है। इसीलिए खमासमण सूत्र फिट्टावन्दन कहा जाता है। सामने से साधु-साध्वीजी भगवन्त आते का दूसरा नाम पंचांग प्रणिपात सूत्र है। हुए दिखाई दें कि तुरन्त वाहन आदि में से उतरकर, पैरों से जूते- थोभ वन्दन साधुभगवन्त अपने से ज्येष्ठ साधुभगवन्तों चप्पल उतारकर, दोनों हाथ जोड़कर, मस्तक झुकाकर 'मत्थएण को, साध्वीजी को सभी साधुभगवन्तों तथा ज्येष्ठ साध्वीजी वंदामि' कहना चाहिए। यह फिट्टावन्दन कहलाता है।
को, श्रावक सभी साधुभगवन्तों को तथा श्राविका सभी गुरुभगवन्त सामने मिलें, फिर भी देखे बिना आगे बढ़ जाना,
साधुभगवन्तों व साध्वीजी भगवन्त को करते हैं । पुरुषों को हाथ नहीं जोड़ना, मस्तक नहीं झुकाना, यह गुरुभगवन्त का
साध्वीजी भगवन्तों को फिट्टावन्दन करना चाहिए, परन्तु अनादर माना जाता है। ऐसा अनादर नहीं करना चाहिए । बल्कि
मध्यम अथवा उत्कृष्ट वन्दन नहीं करना चाहिए। ऐसे समय में फिट्टावन्दन अवश्य करना चाहिए । यदि ट्रेन, बस
(३) उत्कृष्ट गुरुवन्दन : द्वादशावर्त्त वन्दन :आदि वाहनों में जा रहे हों तथा वाहन से उतर न सकें, तो उस समय
द्वादश-बारह, अर्थात् जिस वन्दन में बारह आवर्त्त करना पैरों से जूते चप्पल निकालकर बैठे-बैठे भी दोनों हाथ जोड़कर
होता है, उस वन्दन को द्वादशावर्त्त वन्दन कहा जाता है। मस्तक झुकाकर मत्थएणवंदामि' अवश्य कहना चाहिए। .
उत्कृष्ट अर्थात् श्रेष्ठ, तीनों प्रकार के वन्दनों में यह सबसे बड़ा फिट्टावन्दन साधुभगवन्त सभी साधुभगवन्तों को तथा
| वन्दन है । इसमें वांदणासूत्र बोलकर गुरु भगवन्तों को साध्वीजी सभी साधुभगवन्तों व साध्वीजी भगवन्तों को करना चाहिए । श्रावक-श्राविकाओं को भी साधु-साध्वीजी भगवन्तों
विशिष्ट रूप से वन्दन किया जाता है। को अवश्य करना चाहिए । (रास्ते में विहार करते हुए
गणिवर्य, पंन्यासजी, उपाध्यायजी, आचार्य भगवन्त आदि साधुभगवन्तों को श्राविका के फिट्टावन्दन का प्रत्युत्तर नहीं देना
पदवीधारी गुरुभगवन्तों को ही यह द्वादशावत वन्दन किया जाता चाहिए । उसी प्रकार साध्वीजी भगवन्तों को भी श्रावक के
भावना है। पौषध में पदवीधारी गुरुभगवन्त के अभाव में मुनि फिट्टावन्दन का प्रतिभाव नहीं देना चाहिए।)
महाराज की उपस्थिति में स्थापनाचार्यजी को भी राइयदि रास्ते में श्रावक-श्राविका मिले तो उन्हें आदरपूर्वक 'जय मुंहपत्ति के द्वारा द्वादशावर्त्त वन्दन किया जाता है। जिनेन्द्र' नहीं कहना चाहिए, बल्कि दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम'
★ थोभ वन्दन करने के लिए प्रस्तुत खमासमण सूत्र करना चाहिए । साधर्मिक भाईयों को प्रणाम करना उचित है। की आवश्यकता होती है। मात्र गुरु भगवन्त को ही नहीं,
परन्तु यदि सामने अजैन भाई-बन्धु मिले और वे 'जय बल्कि अरिहंत भगवान्, सिद्ध भगवान् तथा ज्ञान को वन्दन सियाराम' अथवा 'जय श्रीकृष्ण' बोलें तो उनके सामने हमें भी करने के लिए भी यह खमासमण सूत्र उपयोगी है । परन्तु 'जय सियाराम' अथवा 'जय श्रीकृष्ण' नहीं कहना चाहिए । उस कुलदेवता अथवा माता-पिता आदि को वन्दन करने के समय दोनों हाथ जोड़कर, जूते-चप्पल उतार कर मुखशुद्धि के साथ लिए इस सूत्र का उपयोग कभी नहीं करना चाहिए। आदरपूर्वक 'जय जिनेन्द्र' बोलना चाहिए।
२४ तीर्थंकरों के यक्ष-यक्षिणी, १६ विद्यादेविया, (२) मध्यम गुरुवन्दन : थोभ वन्दन :
तपागच्छ संरक्षक यक्षाधिराज आदि अधिष्ठायक देव देवियों 'थोभ' का अर्थ होता है खड़ा होना, अर्थात् खड़े होकर पंचांग को भी इस खमासमण सूत्र के द्वारा वन्दन नहीं करना चाहिए।