SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खमासमण देते समय करने योग्य सत्तर संडासा (प्रमार्जना) प्रमार्जना बाद किसी की सहायता बिना नीचे बैठना चाहिए। मुख के आधे भाग की बाई ओर आख-नाक-होठ तथा गले की प्रमार्जना करते समय कन्धे से पंजे तक प्रमार्जना करनी चाहिए। बाएँ हाथ की हथेली की सीधी प्रमार्जना कर थोडा सा हाथ ऊंचा कर पीछे के भाग से कुहनी तक प्रमार्जना करनी चाहिए। १४ १५ चित्र सं. ११ तथा १२ के अनुसार बाएँ के बदले दाहिनी ओर प्रमार्जना करनी चाहिए। चरवले को गोद में रखकर मुँहपत्ति से मस्तक की स्थापना करने की जगह पर बाएं से दाहिने ओरोमार्क के अनुसार तीन बार क्रमशः प्रमार्जना करनी चाहिए। दो हाथ-दो पैर तथा शिर को नीचे झुकाते समय पीछे से ऊचा नहीं होना चाहिए। १६ -दो पैर तथा माथा ये ५ अंग जब नीचे जमीन को स्पर्श करे तभी 'मत्थएण वंदामि' बोलना चाहिए। खड़े होते समय सबसे पहले पीछे की ओर थोडी सी नजर कर बाएं से दाहिने, इस प्रकार क्रमशः तीन बार पैर के पंजे की स्थापना करने की भूमि पर प्रमार्जना करनी चाहिए। पीछे प्रमार्जना करने के बाद (बिना किसी की सहायता के) खड़े होना चाहिए। ४९ Jain Eclations Fon Private & Penn USE OIL
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy