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________________ खमासमण देते समय करने योग्य सत्रह संडासा (प्रमार्जना) 'इच्छामि खमासणो' बोलते समय की मुद्रा। 'वंदिउं' बोलते समय की मुद्रा। चरवला के (छोर पर स्थित) गरम ऊन के कोर से पीछे के भाग में बाई ओर कमर से पैर की एडी तक प्रमार्जना करनी चाहिए। पीछे के भाग में नजर करते हुए मध्य स्थान पर कमर से नीचे तक प्रमार्जना करनी चाहिए। पीछे के भाग में दाहिनी ओर कमर से एड़ी तक प्रमार्जना करनी चाहिए। आगे के भाग में बाई ओर पैर के मूल से पैर के पंजे तक प्रमार्जना करनी चाहिए। आगे के भाग में मध्यस्थान में नाभि के नीचे से दोनों पैरों के बीच की अन्तिम जगह तक प्रमार्जना करनी चाहिए। आगे के भाग में दाहिनी ओर पैर के मूल से पैर के पंजे तक प्रमार्जना करनी चाहिए। घुटने की स्थापना नीचे करने के लिए योग्य अन्तर पर बाए से दाहिने, दाहिने से | बाएं और बाएं से दाहिने क्रमशः तीन बार प्रमार्जना करनी चाहिए। Jain Asation in For Private www.jainelibrary.org,
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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