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________________ श्री आचार्य भगवन्त के ३६ गुणों का वर्णन पू. गुरुभगवन्त की निश्रा में धर्मक्रिया करके नौ प्रकार की ब्रह्मचर्य गुप्ति को धारण करनेवाले: संसारसागर को पार करना है। अतः मन-वचन-काया: (१)जिस स्थान पर स्त्री, पशु तथा नपुंसक नहीं रहते हों, वहाँ के योगों का जिनके चरणों में समर्पण करना है, उन स्थिरता करे, (२) स्त्रीकथा तथा स्त्री के साथ बातें न करे, उद्धारक की पहचान सबसे पहले करनी चाहिए। (३) जिस आसन पर स्त्री बैंठी हो, उस आसन पर पुरुष दो पाच इन्द्रियों के विषयों का निग्रह करनेवाले: घड़ी न बैंठे तथा जिस आसन पर पुरुष बैठा हो, उस आसन पर चर्म, जीभ, नाक, आख, कान स्वरूप पाच इन्द्रिय : स्त्री तीन प्रहर [ प्रायः ९ घण्टे तक न बैंठे (४) स्त्री के तथा उनके विषय क्रमशः स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण व : अंगोपांग रागपूर्वक न देखे, (५) एक दीवार के अन्तर से स्त्री शब्द हैं । (१) स्पर्श-८-गुरु, लघु, मृदु, कर्कश, का आवास हो, वहाँ पुरुष वास न करे तथा यदि पुरुष का शीत, उष्ण, स्निग्ध, तथा रुक्ष (२) रस-५-तीखा, आवास हो, वहा स्त्री वास न करे (६) पूर्व में भोगे हुए कटु, खट्टा, मधुर व कषाय, (३) गन्ध-२ सुगन्ध, विषयों का स्मरण न करे, (७) स्निग्ध आहार न ले, (८) दुर्गन्ध( ४) वर्ण-५-लाल, पीला, नीला, सफेद और नीरस आहार भी अति मात्रा में न ले तथा (९) शरीर का काला (५) शब्द-३-सचित्त, अचित्त, मिश्र, इस शृंगार न करे। प्रकार पाँच इन्द्रियों के (८+५+२+५+३)२३ विषय :. चार कषायो से मुक्त :यदि अनुकूल मिले तो राग न करे और प्रतिकूल मिले: संसार की परम्परा जिससे बढ़े, उसे कषाय कहा जाता है, वह तो द्वेष न करे। चार प्रकार का है, क्रोध, मान, माया और लोभ। पाँच महाव्रत से युक्त १. सर्वथा प्राणातिपात विरमण महाव्रत-सर्वथा-हर प्रकार से, प्राण-जीव को, अतिपात-मारने से विरमणअटकना ।२. सर्वथा मृषावाद विरमण महाव्रत-सर्वथा-हर प्रकार से, मृषा-झूठ, वाद-बोलने से विरमण-अटकना ।३. सर्वथा अदत्तादान विरमण महाव्रत-सर्वथा-हर प्रकार से, अदत्त-नहीं दिया गया, आदान-लेने से, विरमण-अटकना। ४. सर्वथा मैथुन विरमण महाव्रत-सर्वथा-हर प्रकार से, मैथुन-विषयसुख के उपभोग से, विरमण-अटकना । ५. सर्वथा परिग्रह विरमण महाव्रत-सर्वथा-हर प्रकार से, परिग्रह-धन-धान्य आदि के संग्रह से, विरमण-अटकना। च प्रकार के आचार के पालन में समर्थ ज्ञानाचार : पढ़े, पढ़ाए, लिखे, लिखाए तथा पढ़नेवाले रूपी आठ प्रवचन की माताओं का पालन करना आवश्यक है। को सहायक बने। (१) इर्यासमिति : साढ़े तीन हाथ आगे दृष्टि नीचे रखकर भूमि पर देखते दर्शनाचार :शुद्ध सम्यक्त्व का स्वयं पालन करे, दूसरों : हुए चलना। से पालन कराए तथा सम्यक्त्व से विमुख (२) भाषासमिति : हितकारी, मित, प्रियकारी निरवद्य वचन बोलना। व्यक्ति को समझा कर स्थिर करे। (३) आदानभंडमत्त निक्षेपणासमिति : वस्त्र-पात्र, पाट आदि रखते, चारित्राचार :स्वयं शुद्ध आचरण पाले, दूसरों से पालन : लेते समय प्रमार्जन करने का उपयोग रखना। कराए, तथा शुद्ध आचरण का पालन : (४) पारिष्ठापनिका समिति : मल, मूत्र, श्लेष्म, कफ आदि त्याग करने करनेवाले की अनुमोदना करे। योग्य पदार्थों का जिस स्थान पर जीवन हो, वहा विसर्जन करना। तपाचार :छह बाह्य तथा छह अभ्यन्तर, इस प्रकार तीन गुप्तिया: बारह प्रकार के तप स्वयं करे । दूसरों से : (१) मनगुप्ति : मन में आतं, रौद्र ध्यान नहीं करना। कराए तथा करनेवाले की अनुमोदना करे। : (२) वचनगुप्ति : निरवद्य वचन भी बिना कारण के नहीं बोलना। वीर्याचार :धर्मानुष्ठान (धर्मक्रिया) में शक्ति होते हुए : (३) कायगुप्ति : पडिलेहण किए बिना शरीर नहीं हिलाना। उसे गुप्त न रखे तथा हर प्रकार के आचार पाँच इन्द्रियों का निग्रह करनेवाले, नौ प्रकार की ब्रह्मचर्य गुप्ति को का पालन करने में वीर्यशक्ति का सम्पूर्ण : धारण करनेवाले, चार प्रकार के कषायों से मुक्त, पाँच प्रकार के महाव्रत उपयोग करे। : से युक्त, पाच प्रकार के आचारों का पालन करने में समर्थ, पांच समिति पाँच समिति और तीन गुप्ति के धारक : चारित्र धर्म की का पालन करनेवाले और तीन गुप्ति से गुप्त (५+९+४+५+५+५+३ =), रक्षा के लिए मुनि को पाँच समिति तथा तीन गुप्ति : इस प्रकार के ३६ गुणों से युक्त हमारे पूज्य गुरुभगवन्त होते हैं। For Private & Personaliseren Susow.jainelibrary.org
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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