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द्वीपकुमारेंद्र अग्निकुमारेंद्र _दिक्कुमारद्र
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भूतेंद्र
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वातकुमारेंद्र सौधर्मेंद्र ईशानेंद्र सनत्कुमारेंद्र माहेंद्र
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सरस्वत्यै नमः
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(६) ललना चक्र (जीह्वा पर) :
बत्तीस पंखुड़ियोंवाला कमल होता है। वह बत्तीस इन्द्रों से समृद्ध है तथा 'ह' रहित अर्थात् 'क' से 'स' तक, यह चक्र बत्तीस व्यंजनों से युक्त 'सरस्वत्यै नमः' मंत्र से सिद्ध सरस्वतीदेवी मुझे स्वर प्रदान करो ।
है ।
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मस्तके सोमकलाचक्रं अष्टमम् ।
(८) सोमकला चक्र (सिरपर) :
जो अर्ध चन्द्राकार की आकृति जैसी सोमकला है। उसमें 'अ, सि, आ, उ, सा, नमः' मन्त्र का चन्द्रमा के समान सफेद वर्ण पर ध्यान करने से, यह मोक्ष प्राप्ति में कारणभूत होता है।
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धण्टिकायां ललनाचक्रं षष्ठम् ॥
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चंद्रद्र आदित्येंद्र
ब्रह्मेन्द्र
लातकेंद्र शुकेंद्र
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ब्रह्मद्वारे ब्रह्मबिन्दुचक्रं नवमम् । (९) ब्रह्मबिन्दु चक्र (ब्रह्मेन्द्र पर ) :
यह ब्रह्मनाडी (सुषुम्णानाडी ) से संयुक्त है । उसका प्रणव
( ॐकार) से पूर्ण ध्यान, भव्य जीवों का कल्याण करता है।
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(७) आज्ञा चक्र
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भ्रूमध्ये आज्ञाचक्रं सप्तमम् ।
इस चतुर्विध ध्यान स्तोत्र में रहे हुए परमेष्ठिमय सर्वश्रेष्ठ तत्व का, जो आत्मा निरंतर ध्यान करती है, वह परमानंद (मोक्ष) को पाती है।
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(दोनों भ्रमर-भौंहों के बीच ) : तीन पंखुड़ियोंवाला कमल होता है । वह'ह', 'ल' व 'क्ष' से युक्त है तथा 'ॐ नमः' से संकलित (ह्रीँकार स्वरूप) एकाक्षरी महाविद्या से युक्त है । यह महाविद्या समग्र सिद्धि को देनेवाली है।
हंस:
ब्रह्मद्वारोपरि हंसनादचक्रं दशमम् । (१०) हंसनाद चक्र
(ब्रह्मेन्द्र के उपर ) :
हंस ( जीव - आत्मा) का अत्यन्त शुद्ध स्फटिक जैसा, जो गलित मनवाला अर्थात् क्षीणवृत्तिवाला योगी पुरुष इसका ध्यान करते हैं, उन ( योगी पुरुषों) को समग्र सिद्धियाँ वशीभूत होती हैं।
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