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विविध प्रकार की नवकारवाली (माला) से होनेवाले लाभों का वर्णन • सूत की नवकारवाली से जाप सुख गुणा लाभ प्रदान करता है। प्रदान करता है।
1. प्रवाल की नवकारवाली से जाप १००० गुणा लाभ प्रदान करता है। चांदी की नवकारवाली से जाप शान्ति •स्फटिक की नवकारवाली से जाप १०,००० गुणा लाभ प्रदान करता है। प्रदान करता है।
• मोती की नवकारवाली से जाप १,००,००० गुणा लाभ प्रदान करता है। • सोने की नवकारवाली से जाप • सोने की नवकारवाली से जाप १ करोड़ गुणा लाभ प्रदान करता है। सौभाग्य प्रदान करता है।
चंदन की नवकारवाली से जाप १०० करोड़ गुणा लाभ प्रदान करता है। मोती की नवकारवाली से जाप • रत्न की नवकारवाली से जाप १२,००० करोड़ गुणा लाभ प्रदान करता है। आरोग्य प्रदान करता है।
•प्लास्टिक तथा हलकी लकड़ी की नवकारवाली से प्रयोग नही करना चाहिए। • शंख की नवकारवाली से जाप १०० क्योंकि वह फल रहित मानी जाती। .... नवकारवाली के १०८ मनकों का रहस्य
....... श्री पंच परमेष्ठि के १२+८+३६+२५+२७ = करने के लिए, उसमें १०८ मनके होते हैं। अपने मन में स्थित पाप करने की १०८ गुण होते हैं। उन समस्त गुणों के प्रति आदर, वृत्ति तथा पापकर्म की शक्ति का नाश करने के लिए प्रत्येक जैन गृहस्थ को सत्कार तथा सम्मान का भाव प्रगटाने के लिए तथा कम से कम एक माला श्री नवकारमहामन्त्र की अवश्य गिननी चाहिए। ऐसा माला (नवकारवाली) गिनते समय एक-एक गुण करने से आधि, व्याधि, उपाधि तथा विघ्नों की हारमाला का नाश होने के का स्मरण कर अपने अन्दर उतारने का पुरुषार्थ साथ-साथ परम शान्ति तथा आनन्द स्वरूप मोक्ष की प्राप्ति होती है। "दिन से रात तक आकाश के रंगों में होनेवाले परिवर्तन के अनुसार किया जानेवाला जाप - अक्षरमाला
१) रात्रि के अन्तिम प्रहर में आकाश का वर्ण 'सफेद' होता है, उस समय नमो अरिहंताणं का
जाप करना चाहिए। २) प्रातः काल सूर्योदय के समय आकाश का वर्ण'लाल' होता है, उस समय 'नमो सिद्धाणं' का
जाप करना चाहिए। ३) दोपहर( मध्याह्न) के समय आकाश का वर्ण पीला' होता है, उस समय नसीआयरियाण का
जाप करना चाहिए। ४) सूर्यास्त के समय आकाश का वर्ण 'नीला' होता है, उस समय 'नमो उवज्झायाणं' का जाप
करना चाहिए। ५) मध्य रात्रि में आकाश का वर्ण 'काला' होता है, उस समय 'नमो लोए सव्वसाहूणं' का जाप करना चाहिए।
षडावश्यकमय श्री नमस्कारमहामन्त्र १) नमो-सामायिक-आवश्यक (नम्र-समता भाव की प्राप्ति)।।५) मंगलाणं च सव्वेर्सि - कायोत्सर्ग आवश्यक २) अरिहंताणं, सिद्धाणं-चतुर्विंशतिस्तव-आवश्यक (चौबीस (काउस्सग्ग परम मंगल है)। तीर्थंकरों का नामस्तव)।
६) पढमं हवइ मंगलं-प्रत्याख्यान आवश्यक (सर्वश्रेष्ठ ३) एसो पंच नमक्कारो, सव्व पावप्पणासणो प्रतिक्रमण मंगल प्रतिज्ञा है)। आवश्यक (पाप से पीछे हटना)।
प्रथमपद के स्मरण से निर्विकल्प दशा की प्राप्ति का वर्णन नमो अरिहंताणं:='न'-दाहिने कान के विवर में; 'मो'-बाएँ कान के विवर में; 'अ'-दाहिनी आंख में; 'रि'-बायीं आंख में; 'हं'दाहिने नाक के विवर में; 'ता' वाम नाक के विवर में और ‘णं'-मुंह में स्थापना करके ध्यान करने से संकल्प-विकल्प दूर होता है।
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