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जाप करने के मुख्य तीन प्रकार हैं पूज्यपाद पादलिप्तसूरिजी महाराज ने जाप के तीन प्रकार बतलाए हैं ।
१.
२.
१. मानस जाप : सहज भाव से होंठ बन्द रखकर दाँत, एक दूसरे को स्पर्श न करें, मात्र स्वयं ही जान सकें, इस प्रकार मन में ही जाप करना मानस जाप कहलाता है। उत्तम कार्य तथा शान्ति हेतु यह जाप उपयोगी कहलाता है और श्रेष्ठ भी है । २. उपांशु जाप होंठों का कम्पन सीमित रखते हुए दूसरे को सुनाई न दे, इसप्रकार मौनपूर्वक मन ही मन जाप करना उपांशु जाप कहलाता है। यह मध्यम कक्षा के कार्य के लिए उपयोगी तथा मध्यम जाप कहलाता है ।
(१) धारणा जाप : हाथ अथवा माला की सहायता के बिना मानसिक संकल्पना के अनुसार किया जानेवाला जाप । उदाहरण : ध्यानस्थ मुद्रा में बैठकर, किसी भी द्रव्य की सहायता
के बिना जब परमात्मा का ध्यान किया जाए तो उसे धारणा जाप कहा जाता है। सिद्धावर्त
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३. भाष्य जाप : तालबद्ध, शुद्ध उच्चारण के साथ, दूसरे सुन सकें, प्रकार बोलकर किया जानेवाला जाप भाष्य जाप कहलाता है। यह जाप स्वयं के कार्य के लिए उपयोगी माना जाता है। जाप करने के अन्य तीन प्रकार
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नंदावर्त
पूर्वानुपूर्वी क्रमानुसार पदों की गिनती करनी चाहिए, उदाहरण: नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं आदि.. ।
जाप करने की पद्धति के मुख्य तीन प्रकार नवपदावर्त जाप शंखावर्त जाप
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ॐ कारावर्त
यह आवर्त्त नन्दावर्त, शंखावर्त, ॐकारावर्त्त, ह्रीँकारावर्त्त, श्रींकारावर्त्त, सिद्धावर्त्त, नवपदावर्त्त आदि अनेक प्रकार के होते हैं। आवर्त्त में अंगूठा फिराते समय अंगूठे का नाखून किसी भी पर्व में न लगे इसका ध्यान रखना चाहिए तथा १ से १२ दाहिने हाथ में तथा १ से ९ बाँए हाथ में क्रमश: गिनते हुए अंगूठा अखंड फिरना चाहिए। अंगूठा बीच में से उठाना नहीं चाहिए। कर जाप अनन्त गुणा फल देता है।
( आवर्त्त के चित्रों के क्रमांक के अनुसार जाप करना चाहिए। )
पश्चानुपूर्वी उल्टे क्रम से गिनना, अर्थात् उत्क्रमण से गिनना, ये दो प्रकार के माने जाते हैं । १. पद के उत्क्रम से तथा २. अक्षर के उत्क्रम से उदाहरण: (१) पद का उत्क्रम-पढमं हवड़ मंगलं, मंगलाणं च सव्वेसिं...इत्यादि । (२) अक्षरों का उत्क्रम-लंगमं इवह मंडप... सिंव्वेस च णंलागमं... इत्यादि ।
३. अनानुपूर्वी पद्धति विशेष से गीन सके वह । उदा : ७ अंक की जगह पर सव्वपावपणासणो, २ अंक की जगह नमो सिद्धाणं इत्यादि ।
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(२) कर जाप ऊँगलियों के पर्वो पर अलग-अलग आवत्त के सहारे जो जाप किया जाए, उसे कर-जाप (कर हाथ) कहा जाता है। यदि धारणा जाप करने में असुविधा हो तो कर जाप किया जा सकता है। इसमें दोनों हाथों की ऊंगलियों के पर्वो के सहारे संख्या का परिमाण कर-जाप में किया जाता है। पर्वों के सहारे दोनों हाथों के अंगूठे से गिनने का विधान कहा गया है। एक निश्चित आवर्त्त के अनुसार गिनते हुए जाप करने से श्रेष्ठ फलदायक होता है। दाहिने हाथ में १२ तथा बाएँ हाथ में ९ की संख्या होती है। नौ बार १२ की संख्या गिनने से कुल १०८ होता है ।
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सरल आवर्त जाप
ही कार आवर्त
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