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2016-06
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नमस्कार महामन्त्र के स्मरण तथा जाप की पात्रता के सम्बन्ध में स्पष्टीकरण - श्री महानिशीथसूत्र में कहा गया है कि 'श्रावकों को नवकारशी = साढ़े बारह उपवास के समान तप होता है। तप उपधान किए बिना श्री नमस्कार महामन्त्र का स्मरण अथवा पूर्ण होने के बाद पूज्य गुरुभगवंत के पास श्री नमस्कार जाप नहीं करना चाहिए ।' श्री उपधान तप का प्रथम महामन्त्र का श्रवण कराना चाहिए और शक्ति प्राप्त होते ही अढारिया (अठारह दिनों का पौषध) करने से श्री नमस्कार उपधान तप कर लेना चाहिए । बालकों के अतिरिक्त अन्य महामन्त्र के स्मरण तथा जाप का अधिकार प्राप्त होता है। भव्यात्माएं भी शक्ति के अभाव में अथवा संयोग की परन्तु छोटे बालक, जो उपधान तप करने में असमर्थ होते हैं, अनुकूलता के अभाव में शायद उपधान तप करने में समर्थ उन बालकों को साढ़े बारह उपवास के समान तप नवकारशीन हों, ऐसी भव्यात्माए भी आराधना से वंचित न रह जाए, पच्चक्खाण के द्वारा पूर्ण करवाना चाहिए । शास्त्रीय विधि इस शुभ आशय से श्री नमस्कार महामन्त्र के स्मरण व जाप के अनुसार ४८ नवकारशी = १ उपवास; ५९० दिनों तक की अनुमति जीताचार से जैनशासन में दिया जाता है।
विधिपूर्वक किया गया मन्त्रजाप अवश्य फलदायी होता है।
श्री नमस्कार महामन्त्र की आराधना तीन प्रकार से बतलाई गई है।
(१) उत्कृष्ट आराधना, (२) मध्यम आराधना तथा (३) जघन्य आराधना (१) उत्कृष्ट आराधना :
(२) मध्यम (३)जघन्य आराधना ___ श्री उपधान तप का प्रथम अढारिया आराधना 1 . नौ दिनों तक खीर का एकासणा कर प्रतिदिन दो हजार होता है। जिसमें : (अ) १८ दिनों तक शुभ दिन में श्री श्री नवकार मन्त्र का जाप करना चाहिए। दिन-रात पौषधव्रत के साथ अखंड उपधान
नवकार महामन्त्र . उन दिनों परमात्मा में सतत ध्यान लगाना चाहिए। तप (ब) १८०० लोगस्स सूत्र का
का जाप प्रारम्भ
पूज्य गुरुभगवन्त के श्रीमुख से श्री नवकार महामन्त्र काउस्सग्ग तथा खमासमणा (क) ९
करना चाहिए। । ग्रहण करने की विधि उपवास तथा ९ नीवी (एकासणा)
उसमें अठारह .पू. गुरुभगवन्त के पास से पहले ही शुभ मुहर्त्त जान लेना (मूलविधि के अनुसार-५ उपवास, उसके
दिनों तक चाहिए। . घर में प्रभुजी के चित्र के समक्ष धूप तथा शुद्ध घी बाद ८ आयंबिल तथा ३ उपवास) जिस में
लगातार खीर का का दीपक जलाना चाहिए। . शुभस्थल को अशोक आदि के पंच परमेष्ठि की प्रधानता है, ऐसे श्री
एकासणा
पत्तों से यथाशक्ति सजाना चाहिए । . उस दिन उपवास, नवपदजी की आराधना आश्विन तथा चैत्र
अथवा १८ आयंबिल अथवा एकासणा करना चाहिए । . जिनालय में मास में शाश्वती ओली की आराधना करनी
आयंबिल करना। प्रभुजी का चैत्यवन्दन करना चाहिए । • गीत वाद्य के साथ पू. चाहिए।
चाहिए। गुरुभगवन्त के पास जाना चाहिए । पू. गुरुदेव की वन्दना कर उपधान तप की महत्ता तथा पवित्रता
• उन दिनों प्रत्येक
मांगलिक सुनते हुए प्रार्थना करनी चाहिए कि.. हे पूज्य किसी भी श्रुत को ग्रहण करने के लिए
नवकार मन्त्र के
परमोपकारी गुरुभगवन्त ! मैं आपकी वन्दना करता हूँ। मुझ पर किए गए विशिष्ट तप को उपधान कहा जाता
साथ एक सफेद कृपा की नवकार मन्त्र प्रदान किजिएजी ..। . उसके बाद है, अर्थात् जिससे श्रुतज्ञान की पुष्टि होती है,
फूल प्रभुजी को
|गुरुभगवन्त साधक के कान में ६८ अक्षरोंवाला श्री नवकार उसे उपधान कहते हैं। श्री गुरुभगवन्त के समीप विधिपूर्वक तपश्चर्या करने के बाद
चढ़ाकर श्री
मन्त्र सुनाएं। • पुनः पू. गुरुभगवन्त की भावपूर्वक वन्दना कर, नवकार महामन्त्र
कृतज्ञता व्यक्त करते हुए जाप करने की अनुमति मांगनी चाहिए। श्रुत को ग्रहण कर उसे धारण किया जाता
का जाप करना
.पू. गुरुभगवन्त के अगणित उपकारों की स्तवना करनी चाहिए। है, वह भी उपधान कहलाता है ।
चाहिए । प्रतिदिन
- उपधान-विशेष प्रकार का एक तप ।
श्री नमस्कारमहामन्त्र का नियमित जाप कहा,कब और प्रथम उपधान तप में की जानेवाली
कैसे करना चाहिए? ५००० नवकार
मन्त्र का जाप आराधना का संक्षिप्त वर्णन
.जाप की जगह निश्चित तथा पवित्र होनी चाहिए । . करना चाहिए।
| तीर्थंकर भगवान के कल्याणक जिस स्थान पर हुए हो, वहाँ तथा .एक लाख श्री नवकारमन्त्र का जाप,
दिनों में जहां उन्होंने स्थिरता की हो, उस शुभ परमाणुमय क्षेत्र में करना ७ हजार लोगस्स का काउस्सग्ग, • १५०० बार श्री नमुऽत्थुणं सूत्र का पाठ,
चाहिए । • तीर्थस्थानों में, • पवित्र शान्त एकान्त स्थान में, .
लाख श्री •२१ उपवास, १० आयंबिल तथा १६
नवकार महामन्त्र अशोकवृक्ष, शालवृक्ष आदि उत्तम वृक्ष के नीचे,. नदी किनारे.
• प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में सूर्योदय से पहले की चार घड़ी (१
का जाप पूर्ण नीवि.... ४७ दिनों तक दिन-रात पौषध
घंटा ३६ मिनट) पहले उठकर जाप करना उत्तम है। की आराधना, हजारों खमासमणा। करना चाहिए।
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