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श्री अरिहन्त परमात्मा का स्वरूप केवलज्ञान प्राप्त कर पृथ्वी को पवित्र करनेवाले श्री अरिहन्त परमात्मा १२ गुणों से युक्त होते हैं, जिनमें आठ प्रातिहार्य तथा चार अतिशय का समावेश होता है। जिनमंदिर में अष्ट प्रातिहार्य युक्त व पंच तीर्थिवाली जिनप्रतिमाजी को अरिहंत अवस्थावाली' कही जाती है।
अष्ट प्रातिहार्यों का वर्णन १. अशोक वृक्ष प्रातिहार्य : जहाँ भगवान के समवसरण क्षेत्र में तथा एक योजन प्रमाण समवसरण भूमि में देवता घुटनों
की रचना होती है, वहाँ भगवान के शरीर से १२ गुना तक, जल तथा स्थल में उत्पन्न छह ऋतुओं की सुगन्धि से युक्त ऊँचे अशोक वक्ष की रचना देवतागण करते हैं। पंचवर्ण के सचित्त पुष्पों की वृष्टि करते हैं । प्रभुजी के अनुपम जिसके नीचे बैठकर भगवान धर्मदेशना देते हैं । उस प्रभाव से लोगों के आने-जाने के कारण उन सचित्त पुष्यों को अशोकवृक्ष के ऊपर ( भगवान ने जिस वृक्ष के नीचे कोई पीड़ा नहीं होती है। केवल-ज्ञान प्राप्त किया हो, वह) एक चैत्यवृक्ष भी ३. दिव्यध्वनि प्रातिहार्य : मालकोश राग में प्रवाहित प्रभु की वाणी होता है।
को देवता बांसुरी, वीणा, मृदंग आदि के स्वरों के साथ जोड़ते हौं २. सुर पुष्पवृष्टि प्रातिहार्य : प्रभुजी जहाँ विहार करते हैं, उस
४. चवर प्रातिहार्य : रत्न जड़ित सुवर्ण के दण्डों
से युक्त चार जोड़ी श्वेत चवर, जो देवतागण
भगवान के आस-पास ढुलाते हैं। ५. सिंहासन प्रातिहार्य : भगवान को बैठने के लिए देवता समवसरण में रत्नजड़ित
सुवर्णमय सिंहासन निर्माण करते हैं। . भामंडल प्रातिहार्य : भगवान के मस्तक के पीछे शरद् ऋतु के सूर्य की किरणों के समान उग्र तेज से युक्त भामंडल (तेज का मंडल)
का निर्माण देवता करते हैं। ७. देवदुंदुभि प्रातिहार्य : प्रभुजी जब विहार करते
हों अथवा समवसरण में देशना देने पधारते हों, उस समय देवतागण दुंदुभि बजाते हैं । वह ध्वनि यह सूचित करती है कि "हे, भव्यात्मा ! आप शिवपुर के सार्थवाह समान इस भगवन्त की सेवा करो।" छत्र प्रातिहार्य : जब प्रभुजी विहार करते हैं, उस समय शरद ऋतु के चन्द्रमा के समान उज्ज्वल तथा मोतियों के हार से सुशोभित तीन छत्र होते हैं। समवसरण में देशना देते समय पंद्रह छत्र होते है। उसमें पूर्वादि चार दिशाओं में तीन-तीन
और पूर्व दिशा में चैत्यवृक्ष (=जिस वृक्ष के नीचे केवलज्ञान पाते है वह) के उपर तीन छत्र होते है। इस प्रकार ४ x ३=१२+३=१५। छत्र नीचे बड़े और उपर छोटे होते है। तीन
छत्र यह सूचित करते हैं कि “हे प्रभुजी ! प्रभु का अष्टप्रातिहार्य के साथ विहार
आप तीन भुवन के स्वामी हो।"
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