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श्री आत्मरक्षा वज्रपंजर स्तोत्र की सचित्र व्याख्या
पहली, सातवीं तथा आठवीं गाथा बोलते समय की स्पष्ट मुद्रा।
'ॐ नमो सव्वसिद्धाणं' बोलते
'ॐ नमो आयरियाणं' बोलते समय 'ॐ नमो अरिहंताणं' बोलते
समय दोनों हथेली को प्रदक्षिणाकार दोनों हाथों की हथेली को कन्धे से नीचे समय अपने मस्तक पर रक्षायंत्र की
___ में मुंह के चारों ओर तीन बार घुमाते माओतीन बारमाते कहनी तक तीन बा
कुहनी तक तीन बार स्पर्श करते हुए अंगों स्थापना का कल्पना करना चाहिए। हुए मुख की रक्षा करते हों, इस प्रकार की रक्षा की कल्पना करनी चाहिए।
कल्पना करनी चाहिए।
'ॐ नमो उवज्झायाणं' बोलते 'ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं' समय दोनों हाथ की हथेली की बोलते समय दोनों हाथों की चारों उँगलियों को दबाकर हथेली के द्वारा पैरों के बीच मध्य अगूठा ऊपर की ओर रखकर भाग से पीछे के मध्य भाग तक हाथों में शक्तिशाली शस्त्र की स्पर्श करते हुए दोनों पैरों की रक्षा
कल्पना करनी चाहिए। की कल्पना करनी चाहिए।
'एसो पंच नमुक्कारो' बोलते समय 'सव्व पावप्पणासणो' बोलते
आसन के मध्य भाग को आगे से समय दोनों हाथों की तर्जनी को ऊपर स्पर्श करते हुए पीछे के मध्य भाग की ओर रखकर दोनों हाथों को पीछे तक स्पर्श करते हुए अपने चारों ओर के मध्य भाग तक ले जाकर अपने की भूमि वज्रमय हो गई है, ऐसी चारों ओर वज्रमय किले की रचना
कल्पना करनी चाहिए। हुई हो, ऐसी कल्पना करनी चाहिए।
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'मंगलाणं च सव्वेसिं' बोलते समय दोनों।
पद्मासन करते समय सर्वप्रथम बाएँ पैर को दाएँ हाथों को एक साथ मिलाकर अपने शरीर से ।
पैर की जड़ में टिकाकर तथा दाएं पैर को बाएँ -थोड़ी दूरी पर मध्यभाग से पृष्ठभाग के 'पढम हवइ मंगलं' बोलते समय दोनों । पैर की जड़ में टिकाकर रखना चाहिए। पूर्ण मध्यभाग तक स्पर्श करते हुए वज़मय किले हाथों को सिर से थोड़ा ऊपर रखकर किले - पद्मासन होने के बाद दोनों घुटनों को सहजता के बाहर चारों ओर किनारे-किनारे अंगारों की के उपर ढक्कन की कल्पना करनी चाहिए। से जमीन का स्पर्श कराना चाहिए। खाई की कल्पना करनी चाहिए।
(नोट : १ से ९ चित्रमें पद्मासन करते समय पहले बाएं पैर को मोडना चाहिए।)
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