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सूत्र कंठस्थ करने से पहले ध्यान रखने योग्य बातें
(१४) दो-तीन-चार शब्द एकत्र होकर कभी-कभी एक सामासिक शब्द बनता है, तब वे सभी
शब्द एक साथ ही बोलना चाहिए । उदाहरण :- 'तह नवविह बंभचेर गुत्तिधरो' में 'नवविह'
सामासिक शब्द है, अतः 'तह नव विह' न बोलकर तह नवविह' ऐसा बोलना चाहिए। (१५) शुद्ध मुद्रणवाली पुस्तक में छपे हुए सूत्रों के प्रत्येक अक्षर पर ध्यानपूर्वक दृष्टि रखकर
कण्ठस्थ करने से अथवा पुनरावर्त्तन करने से अशुद्ध उच्चारण से बचा जा सकता है। (१६) पूर्ण उपयोगपूर्वक शुद्ध उच्चारण करने से ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम होता है, तथा
लापरवाही आदि के कारण उपयोग रहित अशुद्ध उच्चारण अथवा अर्ध शुद्ध उच्चारण करने
से ज्ञानावरणीय कर्म का बंध होता है। (१७) उपयुक्त समय में अध्ययन नहीं करने से तथा अनुपयुक्त समय में अध्ययन करने से, अध्येता
(अध्ययन करनेवाले) का (सहायक नहीं बनने से) अन्तराय करने से तथा छह महीने में एक गाथा कण्ठस्थ करने की शक्ति होने पर भी नया ज्ञान प्राप्त करने का पुरुषार्थ नहीं करने
से भी ज्ञानावरणीय कर्म का बंध होता है। (१८) दुनिया की किसी भी भाषा की लिपि में लिखे हुए अक्षरवाले कपड़े, जूते-चप्पल, रुमाल,
बनियान, प्लेट, गिलास आदि का उपयोग करने से ज्ञानावरणीय कर्म का बंध होता है। (१९) किसी भी मनुष्य-कार्टून-पशु-पक्षी आदि की आकृतिवाला (चित्रवाला) कपड़ा, चादर
आदि का उपयोग करने से तथा साथ ही उसे जब-जब धोया जाए, तब-तब उन आकृतियों की हिंसा का पाप लगता है तथा ज्ञानावरणीय कर्म का बंध होता है। उसके फलस्वरूप
अगले जन्म में तुतलापन, हकलाहट, लंगड़ापन, बहरापन, शृंगापन तथा अंधापन आता है। (२०) ज्ञान के उपकरण जैसे पुस्तक, नोटबुक, रजिस्टर, कलम, रबर, पेन्सिल, स्केल आदि को
उपर से फेंकने अथवा अपवित्र स्थान में रखने से, तोड़ने से, पैरों से स्पर्श करने से तथा थूक
लगाने से ज्ञानावरणीय कर्म का बंध होता है। (२१) ज्ञान देनेवाले ज्ञानी, शिक्षक, अध्यापक, माता-पिता तथा गुरुजनों का उपहास करने से,
उनकी उचित आज्ञा का उल्लंघन करने से, उनकी निंदा अथवा शिकायत करने से, उनका तिरस्कार-अपमान करने से तथा उचित आदर-सम्मान नहीं करने से भी ज्ञानावरणीय
कर्मबंध होता है। (२२) खाते, पीते तथा जूठे मुँह से बोलने से अथवा शौच करते समय अपने पास पर्स, रुपये
पैसे, कागज, घड़ियाल, मोबाईल आदि अक्षरोंवाला अथवा सादा कागज आदि वस्तु रखने
से भी ज्ञानावरणीय कर्म का बंध होता है। (२३) सूत्रों में कहे गए शब्दों, अक्षरों से अधिक अथवा कम बोलने से तथा भूल का पता लगने
पर भी उसी के अनुसार करते रहने से भी ज्ञानावरणीय कर्म बंधता है। (२४) मन्त्र से भी अधिक प्रभावशाली, गणधरों के द्वारा रचित इन प्रतिक्रमण सूत्रों का ज्ञानी
गुरुजनों के मुख से शुद्ध अभ्यास करने का आग्रह रखने के साथ-साथ, शीघ्रता की इच्छा छोड़कर तथा एक दूसरे से सुनकर करने की वृत्ति को त्याग कर आराधक भव्यात्मा को सम्यग् क्रियामय जीवन जीना चाहिए।
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