________________
श्री आत्मरक्षा वज्रपंजर स्तोत्र
छंद का नाम : अनुष्टप्ः राग : दर्शनं देवदेवस्य...(प्रभुस्तुति)
आदान नाम : श्री वज्रपंजर स्तोत्र | विषय: गोणनाम :नमस्कार महामंत्र
मंत्र द्वारा शरीर शुद्धि ॐ परमेष्ठि-नमस्कार, सारं नवपदात्मकम् ।
पद
:३२ संपदा
और अशुभ से रक्षण
:३२ आत्मरक्षाकरं वज्र-पंजराभं स्मराम्यहम् ॥१॥
गाथा : ८
करने द्वारा नमस्कार । अर्थ : सारभूत, नवपदमय, वज्र के पिंजरे के समान आत्मा की रक्षा करनेवाला, ऐसे परमेष्ठि नमस्कार का मैं ॐकारपूर्वक स्मरण करता हूँ।
'ॐ नमो अरिहंताणं' शिरस्कं शिरसि स्थितम् । 'ॐ नमो सव्वसिद्धाणं' मुखे मुखपटं वरम् ॥२॥ अर्थ : 'ॐ नमो अरिहंताणं' यह पद मस्तक पर स्थित शिरस्त्राण है तथा 'ॐ नमो सव्वसिद्धाणं' मुख पर श्रेष्ठ मुखरक्षक वस्त्र है।
'ॐ नमो आयरियाणं', अंगरक्षातिशायिनी। 'ॐ नमो उवज्झायाणं' आयुधं हस्तयोर्दृढम् ॥३॥ अर्थ : 'ॐ नमो आयरियाणं' यह पद उत्तम अंगरक्षा कवच है तथा 'ॐ नमो उवज्झायाणं' यह पद दोनों हाथों में स्थित मजबूत शस्त्र है। 'ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं', मोचके पादयोः शुभे। 'एसो पंच नमुक्कारो', शिला वज्रमयी तले ॥३॥ अर्थ : 'ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं' यह पद दोनों पैरों की रक्षा करनेवाले मोजे हैं तथा 'एसो पंच नमुक्कारो' यह पद साधक के नीचे स्थित पृथ्वी वज्रमयी शिला का सूचक है। 'सव्व पावप्पणासणो', वप्रो वनमयो बहिः । 'मंगलाणं च सव्वेसिं',खादिरांगार-खातिका ॥५॥ अर्थ : 'सव्व पावप्पणासणो' यह पद बाहर चारों ओर वज्रमय किला है। मंगलाणं च सव्वेर्सि' यह पद वज्रमय किले के बाहर चारों ओरखेर के अंगारों से भरी हई खाई है।
स्वाहान्तं च पदं ज्ञेयं, 'पढमं हवड़ मंगलं'। वज्रोपरि वज्रमयं, पिधानं देहरक्षणे ॥६॥ अर्थ : 'स्वाहा' अन्त वाला अर्थात् “पढमं हवइ मंगलं" यह पद शरीर की रक्षा के लिए वज्रमय किले के ऊपर का ढक्कन है।
महाप्रभावा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रव-नाशिनी । परमेष्ठि-पदोद्भूता, कथिता पूर्वसूरिभिः ॥७॥ अर्थ : परमेष्ठि पदों से निर्मित यह रक्षा महाप्रभावशाली है, क्षुद्र उपद्रव को नाश करनेवाली है। यह पूर्वाचार्यों के द्वारा कही गई है। यश्चैवं कुरुते रक्षा, परमेष्ठि पदैः सदा। तस्य न स्याद्भयं-व्याधि-राधिश्चापि कदाचन ॥८॥ अर्थ : जो (जीव) परमेष्ठि पदों के द्वारा इस प्रकार सदा रक्षा करता है, उसे भय, रोग तथा मानसिक चिन्ताएं कभी भी नहीं होती हैं।
For Private & Personal userging"