SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 272
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इच्छं, खामेमि पक्खिअं, एक पक्खस्स पन्नरस राइ-दियाणं जं किंचि अपत्तिअं.... 'कहकर अब्भुट्ठिओ करना चाहिए। १७. उसकेबाद खमासमणा देकर 'इच्छाकारण संदिसह भगवन् पक्खि खामणा खामुं? इच्छं' एक बार कहकर चार बार एकएक खमासमणा के अंतर में चार खामणा करना चाहिए। १८. पूज्य मुनि महाराज खामणा कहें । यदि पूज्य गुरु महाराज न हों तो खमासमण देकर 'इच्छामि खमासमणो०' कहकर दाहिना हाथ चरवला या कटासणा पर रखकर एक बार श्री नवकार मन्त्र' कहकर 'सिरसा मणसा मत्थएण वंदामि' कहना चाहिए । इस प्रकार चार बार खमासमण देना चाहिए। मात्र तिसरे खामणा के अन्त में 'तस्स मिच्छा मि दुक्कडं' कहना चाहिए। यहा पक्खि प्रतिक्रमण पूरा होता है।। उसके बाद देवसिअ प्रतिक्रमण में वंदित्तु०' के बाद के बाद दो वन्दना करके जबतक सामायिक पूरा न हो तबतक सब देवसिए प्रतिक्रमण के समान करना चाहिए । (परन्तु सुअदेवया० तथा जिसे खित्ते की थोय के स्थान पर 'ज्ञानादि०' तथा 'यस्याः क्षेत्रं' की थोय कहनी चाहिए।) श्री अजितशान्ति का स्तवन कहना चाहिए । सज्झाय के स्थान पर श्री नवकार मन्त्र, श्री उवसग्गहरं स्तोत्र तथा संसार दावानल की थोय चार बार कहनी चाहिए। उसमें झंकारा से सकल श्रीसंघ को साथ में बोलना चाहिए। लघु शान्ति केस्थान पर बड़ी शान्ति कहनी चाहिए। श्री चौमासी प्रतिक्रमण की विधि श्री संवच्छरी प्रतिक्रमण की विधि इसमें ऊपर कथनानुसार पक्खि की विधि के अनुसार इसमें भी ऊपर कथनानुसार पक्खि की विधि के करना चाहिए । परन्तु इतना विशेष रूप से ध्यान रखना अनुसार करना चाहिए। परन्तु इतना विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए कि बारह लोगस्स के काउस्सग्ग के स्थान पर बीस चाहिए कि बारह लोगस्स के काउस्सग्ग के स्थान पर चालीस लोगस्स का काउस्सग्ग करना चाहिए तथा पक्खि शब्द के लोगस्स का काउस्सग्ग तथा एक श्री नवकार मन्त्र, यदि न स्थान पर चउमासी शब्द कहना चाहिए । वन्दना में पक्खो आए तो एक सौ साठ श्री नवकार मन्त्र का काउस्सग्ग करना वइक्कंतो के स्थान पर 'चउमासी वइक्वंता' अथवा 'चउमासी चाहिए तथा तप के स्थान पर संवत्सरी के स्थान पर अट्ठमवइक्कम' कहना चाहिए । तप के स्थान पर चउमासी के भत्तेणं, तीन उपवास, छह आयंबिल, नौ नीवि, बारह अनुसार छटेणं, दो उपवास, चार आयंबिल, छह नीवि, आठ एकासणां, चौबीस बियासणां, छह हजार स्वाध्याय... इस एकासणां, सोलह बेयासणां, चार हजार स्वाध्याय... इस प्रकार कहना चाहिए, अब्भुट्टिओ करने में एक पक्खस्स पन्नरस प्रकार कहना चाहिए, अब्भुट्टिओ करने में एक पक्खस्स राइदियाणं के स्थान पर बार मासाणं, चौबीस पक्खाणं, तीन पन्नरस राइदियाणं के स्थान पर चार मासाणं, आठ पक्खाणं सौ साठ राइ दियाणं कहना चाहिए और पक्खि शब्द के स्थान तथा एक सौ बीस राइ दियाणं कहना चाहिए। पर संवच्छरो वइक्वंतो, संवच्छरिअं वइक्कम' कहना चाहिए। छींक आए तो पक्खी, चौमासी तथा संवत्सरी प्रतिक्रमण में अतिचार के पहले छींक आए तो चैत्यवन्दन से पुनः प्रारम्भ करनी चाहिए, और यदि अतिचार के बाद छींक आए तो दुक्खक्खय कम्मख्य के काउस्सग्ग से पहले छींक का काउस्सग्ग करना चाहिए। छींक के काउस्सग्ग की विधि सज्झाय करने के बाद खमासमणा देकर इच्छाकारेण संदिसह भगवन् क्षुद्रोपद्रव उड्डावणार्थं काउस्सग्गं करूँ ? इच्छं, क्षुद्रोपद्रव उड्डावणार्थं करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थं० कहकर चार लोगस्स सागरवरगंभीरा तक का काउस्सग्ग, यदि यह न आए तो सोलह बार श्री नवकार मन्त्र का काउस्सग्ग कर नमोर्हत्० कहकर निम्नलिखित स्तुति कहनी चाहिए सर्वे यक्षाम्बिकाद्या ये, वैयावृत्यकराधिने । क्षुद्रोपद्रव संघातं, ते द्रुतं द्रावयंतु नः ॥१॥ अर्थ- 'जिनेश्वर के सम्बन्ध में वैयावच्च करनेवाले सभी यक्ष व अंबिकादि देवों शीघ्र हमारे क्षुद्र उपद्रव के समूह को दूर करें। उसके बाद लोगस्स कहकर आगे की विधि प्रारम्भ करें। ॥इति श्री आवश्यक क्रिया साधना समाप्त ॥ २७९ Jain Education Interational For Private & Personal Use Only
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy