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श्री पाक्षिक प्रतिक्रमण की विधि
प्रथम देवसिय प्रतिक्रमण में वंदित्तु आए, वहाँ तक सब कहना चाहिए, परन्तु चैत्यवन्दन 'श्री सकलार्हत् ० ' कहना चाहिए व स्तुति श्री स्नातस्या०' की कहनी चाहिए । उसके बाद खमासमण देकर 'देवसिअ आलोइअ पडिकंता इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! पक्खि मुहपत्ति पडिलेहुं ? इच्छं' यह कहकर मुँहपत्ति पडिलेहन करना चाहिए ।
दो बार वन्दना करनी चाहिए ( उसमें देवसिओ के बदले पक्खो, देवसिअं के बदले पक्खिअं बोलना चाहिए)। उसके बाद 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् संबुद्धा खामणेणं, अब्भुट्ठिओमि अब्भितर पक्खिअं खामेउं ? इच्छं खामि पक्खिअं, एक पक्खस्स, पन्नरस राइ-दियाणं जं किंचि अपत्तिअं०' कहकर अब्भुट्टिओ खामना चाहिए । उसके बाद उठकर योगमुद्रा में बोलना चाहिए । इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पक्खिअं आलोउं ? इच्छं आलोएमि जो मे पक्खिओ अइयारो कओ० सूत्र कहकर 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन पक्खि अतिचार आलोउं ? इच्छं ' यह कहकर अतिचार कहना चाहिए। फिर खड़े होकर योगमुद्रा में
'सव्वस्सवि पक्खिअ दुच्चितिअ, दुब्भासिअ, दुच्चिट्ठिअ, इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! इच्छं तस्स मिच्छा मि दुक्कडं' कहकर -
'इच्छकारी ! भगवन् पसाय करी पक्खि तप पसाय करशोजी' ऐसा बोलते हुए इस प्रकार कहें- 'पक्खि लेखे चउत्थेणं, एक उपवास, दो आयंबिल, तीन नीवि, चार एकासणां, आठ बियासणां, दो हजार स्वाध्याय, यथाशक्ति तप, लेखाशुद्धि करके पहुँचाना चाहिए।' उसके बाद यदि तप किया हो तो 'पइट्ठिओ' कहना चाहिए और यदि करना चाहते हों तो 'तहत्ति' कहना चाहिए। यदि तप न करना हो तो मौन रहना चाहिए ।
उसके बाद दो बार वांदना देना चाहिए।
उसके बाद 'इच्छाकारेण भगवन् पत्तेअ खामणेणं अब्भुट्टिओमि अब्भितर पक्खिअं खामेउं इच्छं, खामेमि पक्खिअं, एक पक्खस्स पन्नरस राइदियाणं जं किंचि अपत्तिअं०' कहकर. अब्भुट्ठिओ करना चाहिए। उसके बाद
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'सकल श्रीसंघ को मिच्छा मि दुक्कडं' बोलना चाहिए ।
दो वन्दना करने के बाद खड़े होकर योगमुद्रा में बोलना चाहिए कि.....
११. 'देवसिअ आलोइअ पडिक्कंता इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! पक्खिअं पडिक्कमामि ? सम्मं पडिक्कमेह ' कहकर 'करेमि भंते ! सामाइअं० ' कहकर 'इच्छामि पडिक्कमिडं जो मे पक्खिओ० 'सूत्र कहना चाहिए । १२. उसके बाद खमासमण देकर 'इच्छाकारेण संदिसह
भगवन् पक्खि सूत्र संभळेमि' ? इच्छं के बाद खमासमण देकर 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पक्खिसूत्र पढ़ें, इच्छं' कहकर पू. गुरु भगवंत 'पक्खि सूत्र' बोले, वह काउस्सग्ग में सुनना चाहिए । पू. गुरुभगवंत न हो तो तीन बार श्री नवकार मन्त्र गिनकर श्रावक वंदित्तु कहे। उसके बाद अन्त में सुअदेवया की थोय कहनी चाहिए ।
१३. उसके बाद गोदोहिका मुद्रा में नीचे बैठकर (दाहिना
घुटना ऊपर कर) एक बार श्री नवकार मन्त्र गिनकर 'करेमि भंते ! इच्छामि पडि० ' कहकर श्री वंदित्तुसूत्र बोलना चाहिए । उसमें 'पडिक्कमे देवसिअं सव्वे० ' की जगह 'पडिक्कमे पक्खिअं सव्वं०' बोलना चाहिए ।
१४. उसके बाद खड़े होकर 'करेमि भंते० इच्छामि ठामि काउस्सग्गं जो मे पक्खिओ०तस्स उत्तरी० अन्नत्थ० कहकर बारह लोगस्स का काउस्सग्गं 'चंदेसु निम्मलयरा०' तक करना चाहिए। यदि न आता हो तो अड़तालीस बार श्री नवकार मन्त्र का काउस्सग्ग करना चाहिए, उसके बाद प्रत्यक्ष से लोगस्स कहना चाहिए ।
१५. फिर मुँहपत्ति पडिलेहण कर दो बार वादना देना चाहिए ।
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१६. उसके बाद 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सम्मत्त खामणेणं अब्भुट्टिओमि अब्भितर पक्खिअं खामेउ;
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