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छंद : गाहा; राग : जिणजम्म समये मेरु सिहरे...(स्नात्र पूजा) अर्थ : पुण्यशाली लोग जिनेश्वर नृत्यन्ति नृत्यं- नृत्-यन्-ति नृत्-यम्- नृत्य करते हैं, नृत्य को
की स्नात्र क्रिया के प्रसङ्ग पर मणि-पुष्प-वर्ष, मणि-पुष्-प-वर-षम्, रत्न और पुष्प की वर्षा करते हुए,
विविध प्रकारके नृत्य करते हैं, रत्न सृजन्ति गायन्ति- स-जन्-ति गा-यन्-ति- रचना करते है और गीत गाते हैं
और पुष्पों की वर्षा करते हैं, च मङ्गलानि।
अष्ट मंगलों की। स्तोत्राणि गोत्राणि-स्तो-त्राणि गो-त्राणि- स्तोत्रों, तीर्थंकरों के गोत्रों,
(अष्ट-मङ्गलादि का आलेखन पठन्ति मन्त्रान्,
करते हैं तथा) माङ्गलिक-स्तोत्र बोलते हैं, मन्त्रप-ठन्-ति मन्-त्रान्, कल्याणभाजो हि-कल्-याण-भाजो हि कल्याण के भाजन बनते हैं, निश्चय से- गात ह आर ताथङ्कर के गात्र, जिनाभिषेके ॥१८॥ जिना-भि-के॥१८॥ जिनेश्वर भगवंत के अभिषेक में । १८. वंशावलि एवं मन्त्र बोलते हैं।१८.
छंद : गाहा; राग : जिणजम्म समये मेरु सिहरे... (स्त्रात्र पूजा) शिवमस्तु सर्वजगतः, शिव-मस्-तु सर-व-जग-तः,
कल्याण हो, अखिल विश्व का, पर-हित-निरता-भवन्तु भूतगणाः। पर-हित-नि-रता-भवन्-तु भूतगणाः। परोपकार में तत्पर-हो, प्राणी-समूह। दोषाः प्रयान्तु नाशं, दोषाः प्रयान्-तु नाशम्,
दोष हो नष्ट, सर्वत्र सुखी-भवतु लोकः ॥१९॥ सर-वत्र सुखी भ-वतु लो-कः ॥१९॥ सर्वत्र सुखी हों लोग । १९. अर्थ : अखिल विश्व का कल्याण हो, प्राणी-समूह परोपकार में तत्पर बनें; व्याधि-दुःख-दौर्मनस्य आदि नष्ट हों और सर्वत्र चौदह राजलोक के जीव सुख भोगनेवाले बने । १९. छंद : आर्या; राग : सुपवित्रतीर्थनीरेण...(१०८ पार्श्वनाथपूजन स्तुति)
अर्थ : मैं श्रीअरिष्टनेमि अहं तित्थयर-माया, अहम् तित्-थ-यर-माया, मैं तीर्थंकर की माता,
की माता शिवादेवी सिवादेवी तुम्ह नयर- सिवा-देवी तुम्-ह नय-र- शिवादेवी तुम्हारे नगर में
तुम्हारे नगर में रहती है। निवासिनी। नि-वासिनी। रहनेवाली,
अतः हमारा और तुम्हारा अम्ह सिवं तुम्ह सिवं, अम्-ह सिवम् तुम्-ह सिवम्, हमारा कल्याण, तुम्हारा कल्याण,
श्रेय हो, तथा उपद्रवों असिवोवसमं सिवं असि-वो-वस-मम् सिवम् विघ्न का नाश,
का नाश और कल्याण भवतु-स्वा-हा ॥२०॥ भ-व-तु-स्वाहा ॥२०॥ कल्याण हो । २०
हो ।२०. छंद : अनुष्टप; राग : दर्शनं देव देवस्य... (प्रभस्तुति)
अर्थ : श्री जिनेश्वरदेव का उपसर्गाः क्षयं यान्ति, उप-सर्-गाः क्षयं यान्ति, उपसर्ग नष्ट होते हैं।
पूजन करने से उपसर्ग नष्ट
हो जाते हैं, विघ्न रुपी छिद्यन्ते विघ्न-वल्लयः। छिद्-यन्-ते विद्य-न-वल्-ल-यः छेदन होता है, विज रुपी लताओं का,
लताओं का छेदन होता है मनः प्रसन्नतामेति, मनः प्रसन्-न-ता-मेति, मन प्रसन्नता को प्राप्त करता है,
और मन प्रसन्नता को पूज्यमाने जिनेश्वरे॥२१॥ पूज्-य-माने जिनेश्-वरे॥२१॥ 'पूजन करने से जिनेश्वर का । २१. पाता सर्व-मङ्गल-माङ्गल्यं,
सर-व-मङ्-गल्-माङ्-गल-यम्, सर्व मंगलो में मंगल रुप, सर्व-कल्याण-कारणम् । सर-व-कल्-याण-कार-णाम् । सर्व कल्याणों का कारण रुप, प्रधानं सर्व-धर्माणां,
प्रधा-नम् सर्-व-धर्-मा-णम्, प्रधान (=श्रेष्ठ )सर्व धर्मो में जैनं जयति शासनम् ॥२२॥ जैनम्-ज-य-ति-शा-स-नम् ॥२२॥ ऐसा जैन धर्म का जय हो रहा है, शासन । २२. अर्थ : सर्व मङ्गलों में मङ्गल रूप, सर्व कल्याणों का कारण रूप और सर्व धर्मों में श्रेष्ठ ऐसे जैन शासन (प्रवचन) का जय हो रहा है। २२.
उपयोग के अभाव से होते अशुद्ध उच्चारण के सामने शुद्ध उच्चारण अशुद्ध
अशुद्ध शुद्ध
अशुद्ध पुण्याहां पुण्याहां पुण्याहं पुण्याहं मेघा विध्यासाधन मेघा विद्या साधन उन्म्रष्टरिष्ट
उन्मृष्टरिष्ट शान्तिरभवतु शान्तिर्भवतु मांगल्योत्स्वा मांगल्योत्सवाः अम्हशिवं तुम्हशिवं अम्हसिवं तुम्हसिवं भगवतो रन्तः भगवतोर्हन्तः कंठेक्रत्वा कंठेकृत्वा गोष्टिक पुरमुख्याणां गोष्ठिक-पुरमुख्याणां तृष्टिर भवतुं तुष्टिर्भवतु ब्रहस्पति बृहस्पति अशिवोवसमं शिवं भवतु असिवोवसमं सिवं भवतु लोकोध्योतकरा: लोकोद्योतकराः सुग्रहीतनामनो सुगृहीतनामानो व्याहरणैव्याहरेच्छान्तिम् व्याहरणैाहरेच्छान्तिम् पुष्टिरभवतु पुष्टिर्भवतु शान्तिर्ग्रहेगृहे शान्तिहेगृहे तित्थयरमाया शिवादेवी तित्थयरमाया सिवादेवी
ध्रति मति धृति मति विध्यादेव्यो विद्यादेव्यो शान्तिकलशंग्रहीत्वा शान्तिकलशंगृहीत्वा २७२
sanitation international
शुद्ध