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श्री अजितनाथ भगवान
श्री शान्तिनाथ भगवान
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आदान नाम : श्री अजित-शांति स्तव विषय: गौण नाम : श्री अजितनाथ शत्रुजय पर श्री अजितनाथ
शांतिनाथ स्तवना तथा शांतिनाथ भगवान की प्रतिक्रमण के समय अपवादिक मुद्रा।
गाथा
:४० बोलने की मुद्रा।
विविध छंदो में स्तवना। छंद : प्रत्येक गाथा में विविध छंदो का समावेश किया गया हैं। राग : शास्त्रीय रागज्ञ के पास जानें । मूल सुत्र उच्चारण में सहायक
पद क्रमानुसारी अर्थ अजिअं जिअ-सव्व-भयं अजि-अम् जिअ-सव्-व-भयम्, श्री अजितनाथ को, समस्त भयों को जीतनेवाले, संतिं चसन्-तिम् च
श्री शान्तिनाथ को तथा पसंत-सव्व-गय-पावं । पसन्-त-सव-व-गय-पावम् । सर्व रोगों और पापों का प्रशमन करनेवाले, जयगुरू संति -गुणकरे, जय-गुरू सन्-ति गुण-करे, जगत के गुरु और विघ्नों का उपशमन करनेवाले, दो वि जिणवरेदो-वि जिण-वरे
इन दोनो ही जिनवरों कोपणिवयामि ॥१॥(गाहा) पणि-वया-मि ॥१॥(गाहा) मैं प्रणाम करता हूँ। १. अर्थ: समस्त भयों को जीतनेवाले श्रीअजितनाथ को तथा सर्व रोगों और पापों का प्रशमन करनेवाले श्री शान्तिनाथ को, इसी प्रकार जगत के गुरु और विघ्नों का उपशमन करनेवाले, इन दोनों ही जिनवरों को मैं प्रणाम करता हूँ। १. ववगय-मंगुल-भावे, वव-गय-मङ्-गुल-भावे,
चला गया है झुठा भाव जिनमें से (= वीतराग), ते हं विउल-तवते-हम् विउ-ल-तव
ऐसे दोनों जिनवरों की, निम्मल-सहावे। निम्-मल-सहा-वे।
विपुल तप से निर्मल स्वभाव निरुवम-महप्पभावे, निरु-वम-महप-प-भा-वे, निरुपम और महान् प्रभाव हैं जिनका, थोसामिथोसा-मि
स्तुति करता हूँ। सुदिट्ठ-सब्भावे ॥२॥ सु-दिट्-ठ-सब-भा-वे ॥२॥ भली-भांति जाना है (गाहा) (गाहा)
विद्यमान भावो को जिन्होने । २. अर्थ : वीतराग, विपुल तप से आत्मा के अनन्तज्ञानादि निर्मल स्वरूप को प्राप्त करनेवाले, (चौतीस अतिशयों के कारण) अनुपम महाम्त्य-महाप्रभाव वाले और सर्वज्ञ-सर्वदर्शी (ऐसे) दोनों जिनवरो की मैं स्तुति करता हूँ। २.
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