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________________ सव्व-दुक्ख-प्पसंतीणं, । सव-व-दुक्-खप्-प-सन्-तीणम्, सर्व दुःखों का प्रशमन करनेवाले, सव्व-पाव-प्पसंतीणं। सव्-व-पा-वप्-प-सन्-तीणम् । सर्व पापों का प्रशमन करनेवाले, सया अजिअ-संतीणं, सया अजि-अ-सन्-तीणम्, सदा पराभव नही पानेवाले, उपशांत हुए, नमो अजिअनमो अजि-अ (ऐसे) नमस्कार हो, श्री अजितनाथजीसंतीणं ॥३॥(सिलोगो) सन्-तीणम् ॥३॥(सिलोगो) और श्री शान्तिनाथजी को ।३. अर्थ : सर्व दुःखों का प्रशमन करनेवाले, सर्व पापों का प्रशमन करनेवाले, सदा पराभव नहीं पानेवाले और अखण्ड शान्ति धारण करनेवाले श्री अजितनाथ और श्री शान्तिनाथ को नमस्कार हो।३ अजिअजिण ! सुह-प्पवत्तणं, अजिअ-जिण ! सुहप्-पवत्-तणम्, हे अजित जिनेश्वर ! सुख का प्रवर्तन करनेवाले हैं, तव पुरिसुत्तम ! नाम-कित्तणं । तव पुरि-सुत्-तम ! नाम-कित्-तणम्। आपका है पुरुषोत्तम ! नाम-स्मरण, तह य धिड्-मइ-प्पवत्तणं, तह य धिइ-मइप्-पवत्-तणम्, तथा और स्थिरतावाली बुद्धि को देनेवाला है, तव य जिणुत्तम ! संति! तव य जिणुत-तम ! सन्-ति ! आपका भी हे जिनोत्तम ! श्री शान्तिनाथ जी! कित्तणं ॥४॥ (मागहिआ) कित्-तणम् ॥४॥ (मा-गहि-आ) का कीर्तन । ४. अर्थ : हे पुरुषोत्तम ! हे अजितनाथ ! आपका नाम-स्मरण (सर्व) शुभ (सुख) का प्रवर्तन करनेवाला हैं, वैसे ही स्थिर-बुद्धि को देनेवाला हैं। हे जिनोत्तम ! हे शान्तिनाथ ! आपका नाम स्मरण भी ऐसा ही है। ४. किरिआ-विहि-संचिअ- किरि-आ-विहि-सञ् (सन्)-चिअ- कायिकी आदि पच्चीस प्रकार की क्रिया से उपार्जित कम्म-किले-सवि-मुक्खयर, कम्-म-किले-स-वि-मुक्-ख-यरम्, कर्म क्लेश से सर्वथा छुडाने वाले, अजिअं निचिअंच गुणेहि- अजि-अम्-निचि-अम्-च गुणे-हिम्- किसी से भी अपराजित, परिपूर्ण गुणों के द्वारा महामुणि -सिद्धिगयं। महा-मुणि-सिद् धि-गयम् । महामुनि संबन्धी अणिमादि सिद्धिओं को प्राप्त, अजिअस्स य संतिअजि-अस्-स य सन्-ति श्री अजितनाथ को और श्री शान्तिनाथ महमुणिणो वि य संतिकरं, मह-मुणि-णो-वि-य सन्-ति-करम्, महामुनि को भी, शान्ति करानेवाले, सययं मम निव्वुइसय-यम् मम निव-वुइ सदा मुझे निवृत्ति (मोक्ष) का कारणयं च-नमंसणयं ॥५॥ कार-ण-यम् च-नमम्-सण-यम् ॥५॥ कारण बनो, और नमस्कार ।५. (आलिंगणयं) (आ-लिङ्-गण-यम्) अर्थ : कायिकी आदि पच्चीस प्रकार की क्रियाओं से अर्जित कर्म को सर्वथा छुड़ानेवाले, सम्यग्दर्शनादि, अपराजित गुणों से परिपूर्ण, महामुनियों की अणिमादि आठों सिद्धिया को प्राप्त करनेवाले और शान्ति करानेवाले ऐसे श्री शान्तिनाथ महामुनि को किया गया नमन, सदा मेरे मोक्ष का कारण बनो । ५. पुरिसा ! जइ दुक्ख-वारणं, पुरिसा ! - जइ दुक्-ख-वार-णम्, हे मनुष्यों ! यदि तुम दुःख का निवारणजइय विमग्गह सुक्ख कारणं । जइ-य विमग्-गह सुक्-ख-कार-णम्। जो और खोजते हो सुख-प्राप्ति का कारणअजिअं संतिं च भावओ, अजि-अम् सन्-तिम्-च भाव-ओ, श्री आदिनाथजी को और श्री शान्तिनाथजी को भाव से अभयकरे सरणंअभ-य-करे सर-णम् अभय को देनेवाले, शरण को पवज्जहा ॥६॥(मागहिआ) पवज्-जहा.॥६॥(माग-हिआ) अंगीकृत करो । ६. अर्थ : हे मनुष्यों ! यदि तुम दुःख निवारण का उपाय और सुख-प्राप्ति का उपाय खोजते हो, तो अभय को देनेवाले श्री अजितनाथ और शान्तिनाथ के शरण को भाव से अंगीकृत करों । ६. २५७ Private a Pers
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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