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________________ चंडा विजयंकुसिपन्नइति निव्वाणिअच्चुआ धरणी । वइरुट्ट - छुत्त-गंधारि अंब - पउमावई - सिद्धा ॥१०॥ इअ तित्थ - रक्खण-रया, अन्ने विसुरासुरीय चउहा वि। वंतर - जोइणि-पमुहा, अम्-ब-प-मा-वई सिद्धा ॥१०॥ अर्थ : चण्डा, विजया, अङ्कुशा, पन्नगा, निर्वाणी अच्युता (बला), धारिणी, वैरोट्या, अच्छुप्ता, गान्धारी, अम्बा, पद्मावती और सिद्धायिका । १०. इअ-तित्-थ-रक् खण-र-या, अन्-ने-वि सुरा-सुरी य चउ-हा-वि । वन्-तर- जोड़ - णि-पमु-हा, तु खं या अहं ॥ ११ ॥ कु णन् तु रक् खम् सया अम्-हम् ॥११॥ करें रक्षण सदा हमारी । ११. अर्थ : ये शासनदेवियाँ चतुर्विधश्री संघ स्वरुप तीर्थ के रक्षण करने में तत्पर, अन्य चारों प्रकार की देव - देवियाँ तथा व्यन्तर, योगिनी आदि हमारी रक्षा करें। ११. इअ संतिनाह- सम्मदिट्ठिरक्खं सरइतिकालं जो । सव्वोवद्दव-रहिओ, स लहइ सुह-संपयं परमं ॥ १३ ॥ चण् डा विजयङ् - कुसिपन्-न-इ-ति-निव्-वाणिअच्-चुआ धरणी । वइ-रुट्-ट छुत्-त-गन्-धारि एवं सुदिट्ठि-सुरगण एवम्-सु-दिट्-ठि- सुर-गण इस प्रकार सम्यग्दृष्टि देवों के समूह सेसहिओ संघस्स संति - जिणचन्दो । सहिओ सङ्घस् - स सन्-ति- जिण चन्-दो । सहित श्री संघ की श्री शान्ति जिनचन्द्र मज्झवि करेड रक्खं, मज्-झ वि करे-उ रक्-खम्, मुणिसुन्दरसूरि-थुअ महिमा ॥१२॥ मुणि-सुन् दर - सूरि थुअ - महिमा ॥ १२ ॥ मेरा भी करें रक्षण श्री मुनिसुंदरसूरि ने, श्रुतकेवलीओं द्वारा स्तुत । १२. अर्थ : सम्यग्दृष्टि देवो के समूह सहित, मुनिओं में प्रधान, ऐसे श्रुतकेवलियों द्वारा स्तुत है महिमा जिनका, ऐसे श्री शान्तिजिनचन्द्र श्री संघ को और मेरा भी रक्षण करें । १२. अशुद्ध खेलोसईमाई पत्ताणं च देइ सिरि सों रीं उपयोग के अभाव से होते अशुद्ध उच्चार के सामने शुद्ध उच्चार शुद्ध महाज्वाला मणवी अ इह तित्थरक्खणरया व्यन्तर जोईणि पमुहा इह संति नाह सम्मदिट्ठि ecration ternational इअ सन्-ति-नाह-सम्-म-दि-ठिरक् खम् सर-इतिका- -लम् जो I सव्- वो-वद् - दव- रहिओ, स लह-इ सुह-सम् पयम् पर-मम् ॥१३॥ चण्डा, , विजया, अंकुशापन्नगा, ऐसे, निर्वाणीअच्युता (बला), धारिणी, वैरुट्या, अच्छुप्ता, गान्धारी, अम्बा, पद्मावती, सिद्धायिका । १०. खेलोसहिमाइ पत्ताणं च देइ सिरिं इस तरह चतुर्विध श्री संघ रुप तीर्थ की रक्षा में रत, दूसरे भी देव-देवियाँ चारों प्रकार के भी, व्यंतर देव, योगिनी प्रमुख महजाला माणवी अ इअ तित्थ - रक्खण-रया वंतर जोइणि पमुहा इअ संति नाह सम्मदिट्ठि honal Use Only इस प्रकार श्री शान्तिनाथ की, सम्यग्दृष्टि मनुष्य रक्षण को स्मरण करता है, तीनों कालसर्व उपद्रव से रहित होकर, वह प्राप्त करता है, सुख-संपदा उत्कृष्ट । १३. अर्थ : इस प्रकार जो सम्यग्दृष्टि मनुष्य शान्तिनाथ की रक्षा को तीनों काल स्मरण करता है, वह सर्व उपद्रवों से रहित होकर उत्कृष्ट सुखसम्पदा को प्राप्त करता है । १३. २५५
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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