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श्री राइअ-प्रतिक्रमण का हेतु रात्रि के अन्तिम प्रहर में (लगभग तीन बजे के आसपास)। प्रश्न ५. 'इच्छकार सुहराई' सूत्र यहाँ बोलने का क्या हेतु निद्रा का त्याग कर श्री नवकार महामन्त्र का स्मरण कर बिस्तर का
है? त्याग कर अशुद्धि के सूचक अंगों की अल्प पानी से शुद्धि करनी उत्तर: प्रतिक्रमण के बीजमंत्र स्वरूप 'सव्वस्स वि' चाहिए । उसके बाद सामायिक के लिए १००% सूती शुद्ध वस्त्र
बोलने से पहले पू. गुरुभगवंत की रात्रि पहनकर ईर्यासमिति का पालन करते हुए उपाश्रय की ओर प्रस्थान
सुखपूर्वक व्यतीत होती है या नहीं ? इत्यादि करना चाहिए । पूज्य गुरुभगंवत की आज्ञा प्राप्तकर विधिपूर्वक
पृच्छा हेतु तथा विनय व आदर का भाव पैदा सामायिक ग्रहण करना चाहिए।
करने के लिए यह सूत्र यहा बोला जाता है। (यहाँ देवसिअ-प्रतिक्रमण में निर्दिष्ट हेतओं में से राइअ- प्रश्न ६. देवसिअ प्रतिक्रमण में 'स्थापन' के बाद प्रतिक्रमण में जो कुछ विशेष परिवर्तन होगा, वही बतलाया जाएगा
'करेमि भंते !' सूत्र बोला जाता है। तो फिर । इसके अतिरिक्त अन्य सारे हेतु देवसिअ-प्रतिक्रमण के अनुसार
यहा 'जग चिंतामणि' चैत्यवंदन के द्वारा समझना चाहिए।)
मांगलिक करने पर भी 'करेमि भंते !' के पूर्व प्रश्न १. पू. साधु महात्मा तथा श्रावकादि (सामायिक लेने से
'नमुऽत्थुणं' सूत्र किस हेतु से बोला जाता है ? पहले) प्रारंभ में 'ईरियावहियं' किसलिए करते हैं? उत्तर: 'श्री जग चिंतामणि' का चैत्यवंदन स्वाध्याय उत्तर: 'इरियावहिय' के द्वारा सर्व जीवराशि के प्रति क्षमापना
आदि करने के लिए मांगलिक के रूप में तथा मैत्रीभावना को सुदृढ किया जाता है । जिससे
बोला जाता है। जबकि यहा 'नमुऽत्थुणं' सूत्र चैत्यवंदन, सज्झाय, आवश्यक आदि सुविशुद्ध रूप से
स्वरूप देववंदन राइअ प्रतिक्रमण के पूर्व तथा वैरभाव से मुक्त होकर किया जा सके । जिस प्रकार
प्रारम्भिक मंगल स्वरूप बोला जाता है । द्रव्यपूजा के लिए शरीर की बाह्यशुद्धि आवश्यक है, उसी
सर्वत्र-सर्वदा देवभक्ति करनी चाहिए, इस प्रकार भावपूजा के लिए आन्तरिक शुद्धि भी अत्यन्त
सुविहित परंपरा को प्रस्थापित करने के लिए आवश्यक है । इस आन्तरिक शुद्धि में सहायक
भी यहा 'नमुऽत्थुणं' सूत्र बोला जाता है। 'ईरियावहियं' है, अतः वह प्रतिक्रमण के प्रारम्भ में किया प्रश्न ७ देवसिअ-प्रतिक्रमण में चारित्राचार की शुद्धि जाता है, श्री महानिशीथ सूत्र में भी कहा गया है कि
हेतु दो लोगस्स सूत्र का काउस्सग्ग किया 'ईरियावहियं के बिना की गई सारी क्रियाए (चैत्यवंदन,
जाता है। तो फिर राइअ-प्रतिक्रमण में इस सज्झाय, आवश्यक आदि) निष्फल हो जाती है।
शुद्धि के लिए 'स्थापन' के बाद लोगस्स का प्रश्न २. प्रारंभ में कुसुमिण-दुसुमिण का काउस्सग्ग किस हेतु से
एक काउस्सग्ग किस हेतु से किया जाता है? किया जाता है?
उत्तर: रात्रि के समय गमनागमन नहीं करना चाहिए, उत्तर: रात्रि के समय निद्रा के दौरान स्वप्न आदि से उत्पन्न पापों
अजयणा का कारण होने से दिन की अपेक्षा की शुद्धि के लिए प्रायश्चित के रूप में यह काउस्सग्ग
रात्रि में अल्प (थोड़ा) गमनागमन की क्रिया किया जाता है। (यह काउस्सग्ग किए बिना प्रातःकाल
कम होने के कारण चारित्राचार का अतिचार (सुबह में) कोई भी क्रिया करने से उसका फल प्राप्त
अल्प (थोड़ा) लगता है। अतः दो लोगस्स नहीं होता है । राइअ-प्रतिक्रमण के पहले मंदिर में नहीं
के बदले एक लोगस्स सूत्र का काउस्सग्ग जाना चाहिए।)
'चंदेसु निम्मलयरा' तक किया जाता है। प्रश्न ३. 'श्री जग चिंतामणि' का चैत्यवंदन प्रारंभ में क्यों किया । प्रश्न ८. देवसिअ प्रतिक्रमण में प्रतिक्रमण समाप्त होने जाता है?
के बाद तुरंत 'नाणम्मि सूत्र' की आठ गाथा से उत्तर: समस्त धर्मक्रियाएँ देव-गुरु को वंदन करके करने से
काउस्सग्ग किया जाता है, तो फिर राइअसफल होती हैं। इसीलिए यह महामंगल स्वरूप 'श्री जग
प्रतिक्रमण में दो बार एक-एक लोगस्स सूत्र चिंतामणि' चैत्यवंदन प्रारंभ में किया जाता है ।
का काउस्सग्ग करने के बाद अन्त में 'नाणम्मि 'भगवान्हं आदि भी इसी कारण से किया जाता है।
सूत्र' का काउस्सग्ग क्यों किया जाता है? प्रश्न ४. भरहेसर की सज्झाय किसलिए बोली जाती है ?
उत्तर: रात्रि के समय निद्रा का त्याग कर उठनेवाले उत्तर: शील के दृढ पालन में स्वयं को समर्पित करनेवाले
लोगों में कुछ अंशों में प्रमाद (आलस्य) की महापुरुषों तथा महासतियों के प्रातःकाल नाम स्मरण
सम्भावना होती है, अतः ऐसी अर्धजाग्रत करने से सारा दिन सदाचार तथा सद्विचार से युक्त रहता
अवस्था में 'नाणम्मि सत्र' की आठ गाथाओं है, इसीलिए यह भरहेसर की सज्झाय बोली जाती है।
के काउस्सग्ग की अपेक्षा से छोटे-बड़े
२३४ Manmadinaationuifemational
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