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श्री देवसिअ-प्रतिक्रमण विधि के क्रम का हेतु (कारण) • देवसिअ-प्रतिक्रमण शाम के समय किया जाता है।
प्रतिक्रमण का समय (काल) सूर्य आधा अस्त हो • यह उपाश्रय में पूज्य गुरुभगवंत की निश्रा में करना चाहिए। जाए तब श्री वंदित्तु सूत्र आना चाहिए, इस प्रकार है। .दो-पाँच माईल की दूरी पर भी यदि प. गरुभगवंत की
अर्थात् सूर्यास्त से २०-२५ मिनट पहले प्रतिक्रमण निश्रा मिलती हो तो पाठशाला में, पौषधशाला में अथवा
आरम्भ करना चाहिए । राइअ प्रतिक्रमण सूर्योदय के अपने घर में देवसिअ-प्रतिक्रमण आदि नहीं करना चाहिए। २० मिनट पहले पूर्ण हो, इसका ध्यान रखना चाहिए। (वृद्धावस्था/अस्वस्थता के अतिरिक्त)
अपवाद से (अनिवार्य संयोगों में आवश्यक से • उपाश्रय में प्रवेश करते हुए जयणापूर्वक 'निसीहि' बोलना वंचित रह जाए, तब पू. गुरुभवगंवत की आज्ञा से चाहिए तथा संसार के साथ का सम्बन्ध छोड़ना चाहिए।
की जा सकती है। ) देवसिअ प्रतिक्रमण दिन के पू. गुरु भगवंत की निश्रा न हो तो गुरु भगवंत की स्थापना मध्यभाग (पुरिमड्ड के पच्चक्खाण के बाद) से स्वरूप स्थापनाचार्यजी के समक्ष क्रिया करनी चाहिए।
मध्यरात्रि (रात्रि के १२.०० बजे के आसपास) तक प्रश्न १ पू. गुरुभगवंत की निश्रा में ही प्रतिक्रमण करने का किया जा सकता है। तथा राइअ-प्रतिक्रमण रात्रि के क्या कारण है?
मध्यभाग (रात्रि के १२.०० बजे के बाद) से दिन के उत्तर: पू. गुरूभगवंत की निश्रा में प्रतिक्रमण करने से
मध्यभाग (पुरिमड पच्चक्खाण से पहले) तक किया अनुष्ठान अधिक दृढ बनता है तथा प्रमाद-आलस्य का
जा सकता है। त्याग होता है।
प्रश्न ६ प्रतिक्रमण में सबसे पहले सामायिक किस लिए प्रश्न २ प्रतिक्रमण शब्द का रूढ (प्रयोग) क्या है ?
लिया जाता है? उत्तरः प्रतिक्रमण शब्द छह आवश्यक (सामायिक, उत्तर: अविरति (पाप-व्यापार) का त्याग कर विरति
चउविसत्थो, वांदणां, प्रतिक्रमण, काउस्सग्ग तथा (निरवद्य व्यापार) में प्रवेश करने के लिए सामायिक पच्चक्खाण) हेतु रूढ है । परन्तु शास्त्रीय वचन लेना आवश्यक है। विरति अवस्था में की गई सारी के अनुसार छह आवश्यक में से चौथा प्रतिक्रमण क्रियाएँ पुष्टिकारक तथा फलदायी होती हैं, जिससे कहलाता है। उन छह आवश्यक के विषय में श्रावक प्रतिक्रमण के प्रारम्भ में सामायिक लिया जाता है। को सदा प्रयत्नशील रहना चाहिए।
प्रश्न ७. पच्चक्खाण छठा आवश्यक होने के बावजूद (आधार :- मन्नह जिणाणं सज्झाय)
प्रतिक्रमण के प्रारम्भ में वांदणां देते हुए पच्चक्खाण प्रश्न३ प्रतिक्रमण किस लिए करना चाहिए?
क्यों लिया जाता है? उत्तर: ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार तथा उत्तर : शाम के पच्चक्खाण में 'दिवसचरिमं' (दिवस के वीर्याचार स्वरूप पाँच आचारों की शुद्धि हेतु
अंतिमभाग से पहले) का पाठ होने के कारण प्रतिक्रमण करना चाहिए।
सूर्यास्त से पहले पच्चक्खाण अवश्य कर लेना प्रश्न ४ प्रतिक्रमण में छह आवश्यक के किस सूत्र से किस
चाहिए । क्योंकि छठे आवश्यक तक पहुंचने में आचार की शुद्धि होती है?
काफी समय लग सकता है । पू. गुरुभगवंत के उत्तरः १ सामायिक (करेमि भंते !) से चारित्राचार की; २. विनय स्वरूप द्वादशावत वंदन (वांदणां) करते हुए चउवीसत्थो (लोगस्स) से दर्शनाचार की, ३. वांदणा
पच्चक्खाण लिया जाता है। शाम के सामायिक लेने (द्वादशावर्त्त वंदन) से ज्ञानाचार की, ४. प्रतिक्रमण के बाद मुहपत्ति पडिलेहण तथा वांदणा करते (वंदित्तु) से ज्ञानादि पाच आचार की, ५. काउस्सग्ग हुए पच्चक्खाण लिया जाता है । अतः शाम का (अप्पाणं वोसिरामि) से तपाचार-वीर्याचार की तथा
सामायिक लेने के बाद महपत्ति पडिलेहण तथा ६. पच्चक्खाण (नवकारशी से चोविहार उपवास वांदणापूर्वक पच्चक्खाण लिया जाता है। तथा पाणहार से दुविहार तक के) से तपाचार की प्रश्न ८ प्रतिक्रमण के प्रारम्भ में ही चार थोय का देववंदन शुद्धि होती है। इन छह आवश्यकों का विधिपूर्वक किस लिए किया जाता है? सेवन करने से वीर्याचार की शुद्धि होती है।
उत्तर : श्री चैत्यवंदन भाष्य में वर्णित बारह अधिकारों से ४ प्रश्न ५ प्रतिक्रमण का काल (समय) उत्सर्ग तथा अपवाद से
थोय का देववंदन प्रारम्भ करने से देव-गुरु का क्या है?
आदर-विनय होता है तथा सारी धर्मक्रियाए ( देवउत्तरः उत्सर्ग से (मूलविधि के अनुसार) देवसिअ- | गुरु के वंदन से) सफल होती है।
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