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प्रश्न ९. देववंदन के १२ अधिकार कौन-कौन से हैं ? उत्तर: क्रम
किसे वंदन-स्मरण होता है? किस पद से होता है? १ला भाव-जिन
'नमुत्थुणं से जिअभयाणं' तक। द्रव्य-जिन
'जे अ अईया सिद्धा'से 'तिविहेण वंदामि' तक। चैत्यस्थापना-जिन
अरिहंत-चेइआणं सूत्र। नाम-जिन
लोगस्स सूत्र। तीनों भुवनों के स्थापना-जिन सव्वलोए। विहरमान-जिन
'श्री पुक्खर-वद-दीवड़े से 'नमंसामि' तक। श्रुत ज्ञान
'तमतिमिरि' से 'अंतिम' तक। सर्व-सिद्ध भगवंत
'सिद्धाणं बुद्धाणं' से 'सव्वसिद्धाणं' तक। तीर्थाधिपति श्री वीर भगवान 'जो देवाण...' से 'नरं व नारिं वा' तक। १० वा
उज्जयंत (गिरनार) तीर्थ 'उज्जितसेल' से 'नमंसामि तक। ११ वा अष्टापद तीर्थ
'चत्तारि-अट्ठ' से 'दिसंतु' तक। १२ वा सम्यग्दृष्टिदेव स्मरण
'वेचावच्चगराणं' से 'करेमि काउस्सग्गं' तक । प्रश्न १०. चार खमासमण में भगवान्हं आदि का क्या अर्थ है? प्रश्न १४. 'सव्वस्स वि देवसिअ... इच्छाकारेण...' सूत्र उत्तर: 'भगवान्हं' का अर्थ 'अरिहंत तथा सिद्धभगवंत',
बोलने का हेतु क्या है? 'आचार्यहं' का अर्थ 'आचार्य भगवंत', 'उपाध्यायह' उत्तर: इस सूत्र में दिन संबन्धी मन-वचन-और का अर्थ 'उपाध्याय भगवंत' तथा 'सर्वसाधुहं' का अर्थ
काया के सर्व अतिचारों का संग्रह होने से 'सर्व साधुभगवंत' को नमस्कार हो, ऐसा होता है।
पूज्य गुरुभगवंत के पास प्रायश्चित मांगा प्रश्न ११. 'सव्वस्स वि देवसिअ' सूत्र को प्रतिक्रमण का बीज सूत्र
जाता है । पूज्य गुरुभगवंत 'पडिक्कमेह' क्यों कहा जाता है?
बोलने से उन अतिचारों के प्रायश्चित स्वरुप उत्तर: मन से दुश्चिंता की, वचन के दुर्भाषण की तथा काया
प्रतिक्रमण करने को कहते हैं । तब शिष्य से दुष्ट चेष्टा की आलोचना, इस लघुसूत्र के द्वारा की
'इच्छं, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं' कहता है। गई है तथा इसका विस्तार ही प्रतिक्रमण की क्रिया में
फिर १० प्रकार के प्रायश्चित में प्रतिक्रमण आता है । इसीलिए इस संक्षिप्त सूत्र को बीजसूत्र कहा
नाम का दूसरा प्रायश्चित करने के लिए जाता है।
योगमुद्रा पूर्वक गोदो हिका आसन प्रश्न १२. पाच आचारों में सबसे पहले चारित्राचार की शद्धि के
(वीरासन) मैं बैठकर, समभाव मे रहकर, लिए आठ गाथाओं का काउस्सग्ग किया जाता है?
उपयोग के साथ पद-पद में संवेग की प्राप्ति उत्तर: मुक्ति का महत्त्वपूर्ण कारण तथा पाँच आचारों में
करते हुए, डांस-मच्छर आदि के दंश परिषह सर्वप्रधान तथा सर्वश्रेष्ठ होने के कारण दिन से
को सहन करते पूज्य महात्माओ 'पगामसम्बन्धित लगे हुए दोषों में सबसे पहले चारित्राचार की
सज्जाय' सूत्र और श्रावक-श्राविका गण 'श्री शुद्धि हेतु आठ गार्थों का काउस्सग्ग किया जाता है।
वंदित्तु' सूत्र बोलें। पूज्य महात्माओं के साधुजीवन को अनुलक्ष्य कर प्रश्न १५. पूज्य महात्मा 'श्रमण सूत्र' बोलने से पहले 'सयणा...' की एक गाथा का एक बार चिंतन किया
'श्री नवकार मंत्र, करेमि भंते !, चत्तारिजाता है । पंचाचार की गाथा का चिंतन करते समय
मंगलं, इच्छामि पडिक्कमिउं और ईरियावहियं' श्रावक अपने पर लगे हुए अतिचारों को और पू.
सूत्र किसलिए बोलते हैं? महात्माओं को अपने पर लगे हुए अतिचारों का एक उत्तर: श्री पंच परमेष्ठि भगवंतों को नमस्कार करके गाथा का चिंतन करते समय छोटे से बड़े के क्रम में
सभी कार्य करने चाहिए, इसलिए प्रारंभ में व्यवस्थित करना चाहिए।
'श्री नवकार मंत्र' बोलते हैं। समता भाव में प्रश्न १३. यहां पर तीसरे आवश्यक वांदणा देने का हेतु क्या है?
स्थिर होकर प्रतिक्रमण करना चाहिए, उत्तर: बत्तीस दोष रहित और पच्चीस आवश्यक सहित वांदणा
इसलिए 'करेमि भंते !' सूत्र बोलते हैं । फिर पूज्य गुरुभगवंत को कायोत्सर्ग में छोटे-बडे के क्रम में
मांगलिक के लिए 'चत्तारि मंगलं' बोलते हैं। व्यवस्थित चिंतित कर अतिचारों का निवेदन करने से
उसके बाद दिन सम्बन्धी अतिचार की पहले विनय-बहुमान हेतु दिया जाता है।
आलोचना करने के लिए 'इच्छामि २३०
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