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________________ (४०) उदायनराजर्षि: वीतभय नगरी के राजा थे । अपनी दासी सहित प्रभुवीर की देवकृत जीवित प्रतिमा उठाकर ले गए । उज्जयिनी के राजा चंडप्रद्योत को में युद्ध हराकर बंदी बनाया था । परन्तु साधर्मिक जानकर संवत्सरी के दिन क्षमापना पूर्वक छोड़ दिया था । उसके संकल्प 'प्रभु पधारें तो दीक्षा लूँ' को उसी दिन प्रभुवीर ने पधारकर सफल किया । 'राजेश्वरी वह नरकेश्वरी' ऐसा मानकर पुत्र को राज्य न देते हुए भांजे केशी को राज्य दिया । अंतिम राजर्षि बने । एक बार विचरण करते हुए स्वनगर में पधारें तब 'यह राज्य वापस लेने आया है ।' ऐसा मानकर भांजे ने विष प्रयोग किया, उसमें दो बार बच गए, तीसरी बार असर हुई । परन्तु शुभध्यान में आरूढ़ होकर केवलज्ञान को प्राप्त किया । * संबो- पज्जुन्नो २१४ उदायगो International Trime ( ४३ / ४४ ) शांब और प्रद्युम्न : श्रीकृष्ण के दोनों पुत्र, शांब की माता जंबूवती, प्रद्युम्न की माता रुक्मिणी । बाल्यावस्था में अनेक प्रकार की लीलाएँ कर, कौमार्यावस्था में विविध पराक्रम कर, अन्त में प्रभु नेमिनाथ के पास दीक्षा लेकर शत्रुंजय गिरि पर मोक्ष प्राप्त किया। मणगो मूलदवा कालयसूरि ( ४१ ) मनक: शय्यंभवसूरि के संसारी पुत्र तथा शिष्य । उनका आयुष्य मात्र छह महीने का होने का जानकर कम समय में सुंदर आराधना कर सके, इसलिए शय्यंभवसूरि ने श्री दशवैकालिक सूत्र की रचना की । वे छह महीने तक चारित्र का पालन कर देवलोक सिधारें। अंतःपुर में कैद कर लिया। तब अनेक प्रकार से समझाने पर भी जब नहीं माना, तब सूरिजी ने वेशपरिवर्तन कर ९६ शकराजाओं को प्रतिबोध देकर, गर्दभिल्ल पर चढ़ाई कर साध्वीजी को छुड़ा लिया। सूरिजी अत्यंत प्रभावक पुण्यपुरुष थे । (४२/२) कालकाचार्य : प्रतिष्ठानपुर के राजा शालिवाहन के निवेदन से चौथ के दिन संवत्सरी प्रवर्तन किया तथा सीमंधरस्वामी के आगे 'निगोद का हूबहू स्वरूप | आचार्य कालकसूरि ही कह सकते हैं' ऐसा बतलाते हुए ब्राह्मण का रूप लेकर इन्द्र वहाँ आए। आचार्य ने निगोद का यथार्थ स्वरूप बतलाने से इन्द्र प्रसन्न हुए । (४५/४६ ) मूलदेव : विविध कलाओं में प्रवीण परन्तु बहुत बड़ा जुआरी था। पिता ने देश निकाल दे दिया, तो उज्जयिनी में आकर देवदत्ता गणिका तथा कलाचार्य विश्वभूति को पराजित किया । पुण्यबल, कलाबल तथा मुनि को दान के प्रभाव से विषम परिस्थितियों का सामना कर हाथियों से समृद्ध विशाल राज्य तथा कलाप्रिय चतुर गणिका देवदत्ता के स्वामी बने । बाद में वैराग्य पाकर चारित्र का पालन कर देवलोक में गए। भविष्य में मोक्ष में जाएँगे । For Private & Personalise Only (४२/१) कालकाचार्य : कालकाचार्य ने बहन सरस्वती सहित गणधरसूरि के पास दीक्षा ली थी । उज्जयिनी के राजा गर्दभिल्ल ने अत्यंत रूपवती सरस्वती साध्वीजी पर मोहांध होकर, पभवो (४६) प्रभवस्वामी : जंबूस्वामी के यहाँ | चोरी करने जाते हुए पति-पत्नी के बीच का वैराग्य प्रेरक संवाद सुनकर प्रतिबोध पाया । ५०० चोरों के साथ दीक्षा ली । जंबूस्वामी के बाद शासन का समस्त भार संभालनेवाले पूज्यश्री चौदह पूर्वो के ज्ञाता थे । जैनशासन की धुरा को सौंपने के लिए श्रमण तथा श्रमणोपासक संघ में विशिष्ट पात्र व्यक्तित्व नहीं दिखते हुए, उन्होंने शय्यंभव ब्राह्मण को प्रतिबोध कर चारित्र देकर शासननायक बनाया था ।
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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