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जंबुपहू
(२९) जंबूस्वामी : निःस्पृह तथा वैराग्य वासित होते हुए भी ऋषभदत्त - धारिणी के इस पुत्र को माता के आग्रह से आठ कन्याओं के साथ विवाह करना पड़ा । परन्तु पहली ही रात में वैराग्यपूर्ण उपदेश देकर उन सभी के मन में वैराग्य जगाया । उसी समय पाँच सौ चोरों के साथ चोरी करने आया हुआ प्रभव चोर भी उनकी बातें सुनकर विरक्त बन गया। दूसरे दिन ५२७ शिष्यों के साथ जंबूकुमार ने सुधर्मास्वामी के पास दीक्षा ली। इस अवसर्पिणी काल के भरतक्षेत्र के वे अन्तिम केवली हुए ।
१२व
(३१) गजसुकुमाल : सात-सात पुत्रों को जन्म देने पर भी एक का भी लालन | पालन करने का सौभाग्य नहीं मिलने के कारण विषाद को प्राप्त देवकी ने कृष्ण को बतलाया । कृष्ण ने हरिणैगमेषी देव की आराधना की । महर्द्धिक देव देवकी की कुक्षि में आया । वही गजसुकुमाल था । बाल्यावस्था में वैराग्य प्राप्त किया । मोहपाश में बांधने के लिए माता-पिता ने विवाह करा दिया । परन्तु युवावस्था में ही नेमिनाथ प्रभु के पास दीक्षा लेकर स्मशान में कायोत्सर्ग के ध्यान में रहे । 'बेटी का जीवन बिगाड़ दिया...' ऐसा सोचकर सोमिल ससुर ने शिर पर मिट्टी की पट्टी बांधकर चिता में से धधकते हुए
गयसुकुमालो
| अंगारे निकालकर माथे पर रखे । समताभाव से अपूर्व कर्मनिर्जरा कर अंतकृत केवली होकर मोक्ष में पधारें।
अवंतिसुकुमालो
(३२) अवंतिसुकुमाल : उज्जयिनी के निवासी भद्रशेठ तथा भद्राशेठानी के संतान । ३२ पत्नियों के स्वामी एक बार आर्यसुहस्तिसूरि को अपनी यानशाला में उसे स्थान दिया । तब 'नलिनीगुल्म' अध्ययन सुनते हुए उसे जातिस्मरण ज्ञान हुआ । चारित्र ग्रहण किया । शरीर की सुकुमारता के कारण तथा लम्बे समय तक चारित्र पालने की अशक्ति के कारण | स्मशान में काउस्सग्ग ध्यान में खड़े रहे । सुकोमल शरीर की गंध से आकर्षित होकर एक सियारिन बच्चे के साथ वहा आई और शरीर दांतों से काटने लगी। परन्तु शुभ ध्यान में मग्न रहकर काल किया
तथा नलिनीगुल्म विमान में देव के रूप में उत्पन्न हुए ।
विकचूलो
(३०) वंकचूल: विराट देश का
राजकुमार
पुष्पचूल, परन्तु जुआ-चोरी आदि वक्रता के कारण लोगों ने
नाम रखा था वंकचूल । पिता के द्वारा राज्य से निष्कासित कर दिए जाने के कारण पत्नी और बहन के साथ निकलकर जंगल में पल्लीपति हुआ । एक बार आर्य ज्ञानतुंगसूरि के पधारने पर किसी को उपदेश नहीं देने की शर्त पर चातुर्मास कराया । | विहार करते समय वंकचूल की सीमा पार कर रहे थे । तब वंकचूल की इच्छा से आचार्य भगवंत ने (१) अज्ञात फल नहीं खाना । ( २ ) प्रहार करने से | पहले सात कदम पीछे हट जाना । ( ३ ) राजरानी के साथ भोग नहीं भोगना । ( ४ )कौए का मांस नहीं खाना, ये चार नियम दिए । अनेक प्रकार के कष्ट सहते हुए भी दृढता से नियम का पालन कर अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त कर वंकचूल स्वर्गवासी हुआ ।
(३३) धन्यकुमार :
धनसारशीलवती के
पुत्र । भाग्यबल से
तथा बुद्धिबल लक्ष्मी का उपार्जन किया।
एक बार
साला शालिभद्र की दीक्षा की
भावना से, पत्नी सुभद्रा रो
धन्नो
रही थी । उस समय उन्होने कहा वह कायर है, जो एक-एक करके छोड़ रहा है । यह सुनकर इस प्रकार सुभद्रा ने व्यंग्य किया 'कथनी सरल है, करनी कठिन है'। पत्नी की ये बातें सुनकर सारी भोगसामग्री को एक साथ त्यागकर शालिभद्र के साथ दीक्षा लेकर उत्तम आराधना करते हुए अनुत्तर देवलोक में गए।