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सालिमही (२४) शालिभद्र : भरवाडपुत्र संगम के रूप
में पूर्वभव के मुनि को दिए गए खीर के दान के प्रभाव से राजगृह नगरी में गोभद्र शेठ तथा भद्रा शेठानी के पुत्र के रूप में जन्म लिया । अतुल संपत्ति तथा उच्च कुलीन ३२ सुंदरिओं का स्वामी होने के कारण नित्य देवलोक से गोभद्रदेव के द्वारा भेजा गया दिव्य वस्त्र आभूषण आदि
भोग सामग्री से युक्त ९९ पेटी का भोक्ता थे। एक बार श्रेणिक महाराजा उनकी स्वर्गीय समृद्धि देखने के लिए आए । उस समय हमारे ऊपर स्वामी हैं, यह जानकर दीक्षा की भावना से एक-एक पत्नी का त्याग करने लगे । तब बहनोई धन्यशेठ की प्रेरणा से एक साथ सबकुछ त्याग कर चारित्र स्वीकार किया तथा उग्र संयम-तपश्चर्या का पालन कर वैभारगिरि पर अनशन स्वीकार किया और सर्वार्थसिद्धि विमान में उत्पन्न हुए।
भद्दो
सालमहासाल (२२-२३) शालमहाशाल : दोनों भाई थे। परस्पर प्रेम था । भांजे गांगलि को राज्य सौंपकर दीक्षा ग्रहण की थी। एक बार प्रभु गौतमस्वामी के पास गांगलि को प्रतिबोध देने पृष्ठचंपा में आए । माता-पिता के साथ गांगलि ने दीक्षा ली। रास्ते में उत्तमभावना के कारण सबको केवलज्ञान प्राप्त हुआ । अंत में मोक्ष प्राप्त किया।
(२५)भद्रबाहुस्वामी : अंतिम चौदह पूर्व के ज्ञाता तथा आवश्यक आदि दस सूत्रों पर नियुक्ति की रचना करनेवाले महाप्राण ध्यान की साधना करनेवाले महापुरुष ने वराहमीहिर के अधकचरे ज्योतिष ज्ञान का प्रतिकार कर आकाश से मंडल के बीच में नहीं बल्कि मंडल के अंत में मछली का गिरना तथा राजपुत्र का १०० वर्ष का आयुष्य नहीं बल्कि सात दिन में बिल्ली से उसकी मृत्यु होना आदि सचोट भविष्य बतलाकर जिनशासन की प्रभावना की तथा वराहमीहिर कृत उपसर्ग को शांत करने के लिए 'उवसग्गहरं' स्तोत्र की रचना की। कल्पसूत्र मूलसूत्र के रचयिता भी वही हैं।
दसन्नभद्दो
(२६)दशार्णभद्र राजा : दर्शाणपुर के राजा, नित्य त्रिकालपूजा
का नियम था । एक बार गर्व सहित अपूर्व ऋद्धि के साथ वीरप्रभु | को वंदन करते हुए इन्द्र ने अपूर्व समृद्धि का प्रदर्शन कर उसके गर्व को भंग किया। इससे वैराग्य उत्पन्न हो जाने के कारण चारित्र ग्रहण किया। अंत में सम्यग् आराधना कर मोक्ष को प्राप्त किया।
(२८)
(२७) प्रसन्नचंद्र राजा : पसन्नचंदो
सोमचंद्र राजा तथा धारणी के संतान, बालकुंवर को राज्य सौंपकर चारित्र ग्रहण किया । एक बार राजगृही के उद्यान में कायोत्सर्ग के
ध्यान में थे, उसी समय प्रभु वीर को वंदन करने को निकला हुआ राजा श्रेणिक के दो सैनिकों के मुख से सुना कि 'मंत्रियों के बेवफा होने के कारण चंपानगरी के राजा दधिवाहन के बालपुत्र को युद्ध में मारकर राज्य ले लेगा.।' इसके कारण पुत्रमोह से मानसिक युद्ध करते हुए सातवी नरक के योग्य कर्म इकट्ठा किया। सारा शस्त्र समाप्त हो गया जानकर माथे पर से लोहे का टोप निकालने के लिए हाथ फिराते हैं, तभी मुंडित मस्तक से साधुता का ख्याल आते ही पश्चात्ताप करते हुए केवलज्ञान प्राप्त किया।
जसभहा
यशोभद्रसूरिः शय्यंभवसूरि के शिष्य तथा भद्रबाहुस्वामी के गुरुदेव।
चौदह पूर्वो के अभ्यासी। उन्होंने अनेक योग्य साधुओं को पूर्वो की वाचना दी थी । अंत में शत्रुजय गिरि की यात्रा करते हुए कालधर्म पाए औरस्वर्गपधारें।
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PATI