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(२) बाहुबली: भरत चक्रवर्ती के छोटे भाई।
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प्रभु
भरहसर
ऋषभदेव ने
तक्षशिला बाहुबली
का राज्य दिया था । बाहुबली असाधारण होने के कारण तथा ९८ भाईयों के अन्याय का प्रतिकार करने के लिए चक्रवर्ती की आज्ञा नहीं मानी, जिसके कारण भयंकर युद्ध हुआ । अन्त में दृष्टियुद्ध, वाग्युद्ध, बाहुयुद्ध तथा दण्डयुद्ध किया, जिसमें भरत चक्रवर्ती ने हारते हुए चक्ररत्न फेंका, परन्तु वह चक्र स्वगोत्रीय का नाश नहीं कर सकता था । अतः वापस लौट गया । बाहुबली क्रोध में मुट्ठी बांधकर उसे मारने दौड़े । परन्तु विवेकबुद्धि जागृत होने पर केशलोच कर दीक्षा ग्रहण किया । केवली छोटे भाईयों को वन्दन नहीं करना पड़े। इसके लिए काउस्सग्ग ध्यान में खड़े रहे। १ वर्ष के बाद प्रभु के द्वारा प्रेषित ब्राह्मी-सुंदरी बहन साध्वियों के द्वारा 'वीरा मोरा गज थकी उतरो रे, गज चड्ये केवल न होय' इस प्रकार प्रतिबोध करने पर वंदन करने के लिए पैर उठाते ही, उन्हें केवलज्ञान | प्राप्त हुआ और ऋषभदेव भगवान के साथ मोक्ष में गए।
(१) भरत चक्रवर्ती : श्री ऋषभदेव प्रभु के ज्येष्ठपुत्र तथा प्रथम चक्रवर्ती । अप्रतिम ऐश्चर्य के स्वामि होते हुए भी वे एक सजाग साधक थे । ९९ भाइयों की दीक्षा के बाद वे सदा वैराग्य भावना में रमण करते रहते थे। एक बार आरीसा भवन में अलंकृत शरीर को देखते हुए अगठी निकल जाने के कारण शोभा रहित हुई, ऐसी ऊँगली को देखते हुए अन्य अलंकार भी उतारें तथा उनका सम्पूर्ण शरीर शोभारहित देखकर अनित्य भावना में रमण करते हुए केवलज्ञान प्राप्त किया । देवताओं के द्वारा दिया गया साधुवेष स्वीकार कर समस्त विश्व पर उपकार किया तथा अन्त में अष्टापद पर्वत पर निर्वाण प्राप्त किया।
KOROMANI
अभयकुमार
(४) ढंढणकुमार: श्री कृष्ण
वासुदेव की ढढणकुमारा
ढंढणा नामकी रानी के पुत्र । ढंढणकुमार ने प्रभु नेमिनाथ के पास दीक्षा ग्रहण की। परन्तु
लाभांतराय कों का उदय ( होने के कारण शुद्ध भिक्षा नहीं मिलती थी। अतः अभिग्रह किया कि 'स्वलब्धि से जो भिक्षा मिले, वही ग्रहण करूंगा' छह महीने का उपवास किया । एकबार भिक्षा हेतु द्वारिका पधारे थे, तब नेमिनाथ ने अपने अठारह हजार साधुओं | में सर्वोत्तम के रूप में उनका नाम दिया । उससे नगर में वापस | फिरते श्री कृष्ण वासुदेव ने उनको देखकर हाथी पर से नीचे उतरकर विशेष भाव से वंदन किया। यह देखकर एक श्रेष्ठि ने उत्तम भिक्षा वहोराई। परन्तु प्रभु के श्रीमुख से 'यह आहार अपनी लब्धि से नहीं मिला है।'ऐसा जानकर कुम्हार की शाला में उसे परठने गए। परठते हुए उत्तमभावना पैदा होने के कारण केवलज्ञान उत्पन्न हुआ।
(३) अभयकुमार : नंदा रानी से हुआ श्रेणिक राजा के पुत्र । बाल्यावस्था में ही पिता के गूढ वचन का समाधान कर पिता के नगर में आए तथा बुद्धिबल से खाली कुएं में से अँगूठी निकालकर श्रेणिक राजा के मुख्यमंत्री बने । औत्पातिकी, वैनयिकी, कार्मिकी तथा पारिणामिकी बुद्धि के स्वामी होने के कारण उन्होंने अनेक समस्याओं का समाधान किया था । आखिर अंत:पुर जलाने के बहाने पिता के वचन से मुक्त होकर प्रभु वीर के पास दीक्षा लेकर उत्कृष्ट तप कर अनुत्तर विमान में देव हुए । वहा से च्यवन कर महाविदेह में चारित्र ग्रहण कर मोक्ष को प्राप्त करेंगे।
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