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________________ अशुद्ध शुद्ध • प्राकृत भाषा से रूपांतरित अपभ्रंश भाषामय पार्श्वजिन का चैत्यवंदन है। चउकसाय चउक्कसाय चतुर्विधश्री संघ 'संथारा पोरिसी' पढ़ाते हो तो श्रेष्ठ पुरुष यह सूत्र बोलें, उसके अतिरिक्त 'सामायिक भुवणतय भुवणत्तय पारते समय लोगस्स सूत्र के बाद खमासमण दिए बिना यह सूत्र चैत्यवंदन के रूप में बोला जाता है। पयच्छिउ पयच्छउ श्रावकों को खेस का उपयोग यह चैत्यवंदन (जय वीयराय सूत्र पूरा) हो तब तक करना चाहिए।' राइअ प्रतिक्रमण के उपयोगी आदेश १. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! इच्-छा-कारण-सन्-दिसह-भग-वन् ! इच्छापूर्वक मुझे आप आज्ञा दे, हे गुरुभगवंत कुसुमिण दुसुमिण-उड्डावणी- कुसु-मिण-दुसु-मिण-उड्-डावणी- मैं कुस्वप्न-दुस्वप्न संबन्धी पाप दूर करने के लिए राइअ-पायच्छित्तरा-इअ-पायच-छित्-त रात्रि दौरान हुए अतिचारों के विसोहणत्थंविसो-हणत्-थम् प्रायश्चित की विशिष्ट काउस्सग्गं करूं? काउस्-सग्-गम्-करुम्? शुद्धि करने के लिए कायोत्सर्ग करूँ ? इच्छं, इच्-छम् ? आपकी आज्ञा मुझे प्रमाण है। कुसुमिण-दुसुमिण-उड्डावणी- कुसु-मिण-दुसु-मिण-उड्-डावणी- मैं कुस्वप्न-दुस्वप्न संबंन्धी पाप दूर करने के लिए राइअ-पायच्छित्त विसोहणत्थं- रा-इअ-पायच-छित्-त विसो-हणत्-थम्- रात्रि दौरान हुए अतिचारो के प्रायश्चित की विशिष्ट करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्थ... १. करेमि-काउस्-सग्-गम्, अन्-नत्-थ... १. शुद्धि करने हेतु कायोत्सर्ग करता हूँ।१. अर्थ : हे भगवंत ! आप इच्छापूर्वक आज्ञा प्रदान करो कि मैं कुस्वप्न (कामभोगादि की अभिलाषा सम्बन्धी) तथा दुःस्वप्न (भूत-पिशाच) से उत्पन्न पापों को दूर करने तथा रात्रि सम्बन्धी लगे अतिचारों के प्रायश्चित्त की विशुद्धि हेतु कायोत्सर्ग करु ? (तब गुरुभगवंत कहे-करेह (हा, करो) (शिष्य कहे) आज्ञा-प्रमाण है । (मैं) कुस्वप्न (कामभोगादि की अभिलाषा सम्बन्धी) तथा दुःस्वप्न (भूत-पिशाच) से उत्पन्न पापों को दूर करने हेतु रात्रि सम्बन्धी अतिचारों के प्रायश्चित्त की विशुद्धि हेतु कायोत्सर्ग करता हूँ। • रात्रि में कामभोग-स्वप्नदोष आदि चतुर्थव्रत सम्बन्धी कुस्वप्न आया हो तथा ध्यान में हो तो उपरोक्त आदेश मांगकर चार बार लोगस्स सूत्र ‘सागरवर-गंभीरा' तक का कायोत्सर्ग करें । रात्रि में चतुर्थव्रत के अतिरिक्त भूत-पिशाच-सौम्य-कुरूप (स्वप्न रहित) आदि सम्बन्धी दुःस्वप्न अथवा सुस्वप्न हो तो उपरोक्त आदेश मांगकर चार बार लोगस्स सूत्र 'चंदेसु - निम्मलयरा' तक का कायोत्सर्ग करना चाहिए। श्री लोगस्स सूत्र नहीं आता हो तो १६ बार श्री नवकारमंत्र का कायोत्सर्ग दोनों (कुस्वप्न-दुःस्वप्न) में करना चाहिए । • राइअ प्रतिक्रमण करने से पहले मंदिर नहीं जाना चाहिए । गुरुवंदन भी नहीं करना चाहिए । प्रतिक्रमण से पूर्व एक-दो-चार सामायिक की भावनावाले भाग्यवानों को उपरोक्त कायोत्सर्ग करने के बाद ही किसी प्रकार की आराधना करनी चाहिए। प्रतिक्रमण (राइअ) से पहले देववंदन-चैत्यवंदन भी नहीं किया जा सकता है। देवसिअ प्रतिक्रमण में उपयोगी आदेश मूल सूत्र उच्चारण में सहायक पदक्रमानुसारी अर्थ १.इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! इच-छा-कारण-सन्-दिसह-भगवन् ! इच्छापूर्वक मुझे आप आज्ञा दे, हे भगवंत ! देवसिअ पायच्छित्तदेव-सिअ-पायच्-छित्-त दिन से संबंधित अतिचार के विसोहणत्थंविसो-हणत्-थम् प्रायश्चित की विशेष शुद्धि हेतु काउस्सग्गं करूं? काउस्-सग्-गम् करुम् ? मैं कायोत्सर्ग करूँ? इच्छं, इच-छम्, आपकी आज्ञा प्रमाण है। देवसिअ-पायच्छित्तदेव-सिअ-पायच-छित्-त दिन से संबंधित अतिचारों के विसोहणत्थं करेमि विसो-हणत्-थम्-करेमि प्रायश्चित की विशेष शुद्धि हेतु काउस्सग्गं, अन्नत्थ... । काउस्-सग्-गम्, अन्-नत्थ... मै कायोत्सर्ग करता हूँ। १. अर्थ : हे भगवंत ! आप इच्छापूर्वक मुझे आज्ञा प्रदान करें कि मै दिन सम्बन्धित (लगे हुए) अतिचारों के प्रायश्चित की विशेष शुद्धि हेतु कायोत्सर्ग करूँ? (तब गुरुभगवंत कहे-'करेह' (हा, करो) तब शिष्य कहे ) आप की आज्ञा प्रमाण है। मैं दिन संबंधित लगे हुए अतिचारों के प्रायश्चित की विशेष शुद्धि हेतु कायोत्सर्ग करता हूँ। १. - |२०१ imwearn
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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