________________
२. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! इच्छा-कारेण सन्-दिसह-भग-वन् ! दुक्खक्खय कम्मक्खय निमित्तं इक् खक्खय-कम् - मक्खय-निमित् तम् काउस्-सग्-गम्-करुम् ?
काउस्सग्गं करूं ?
इच्छं,
इच्छापूर्वक मुझे आप आज्ञा दें, हे गुरुभगवंत !
दुख के क्षय तथा कर्म के क्षय हेतु कायोत्सर्ग करूँ ?
आप की आज्ञा प्रमाण है । मैं 'दुःख के क्षय हेतु कायोत्सर्ग
अन्नत्थ...
अन्-नत्-थ...
करता हू । २.
अर्थ : हे गुरुभगवंत ! आप इच्छापूर्वक मुझे आज्ञा प्रदान करे कि मैं दुःख के
क्षय तथा कर्म के क्षय हेतु कायोत्सर्ग करूँ ? ( तब गुरुभगवंत कहे - करेह ( हाँ, करो ) तब शिष्य कहे) आपकी आज्ञा प्रमाण है। मैं दुःख के क्षय तथा कर्म के क्षय हेतु कायोत्सर्ग करता हूँ । २.
२०२
दुक्खक्खय कम्मक्खयनिमित्तं करेमि काउस्सग्गं,
इच-छम्,
दुक्खक्खय-कम् - मक्खयनिमित्-तम् करेमि काउस्-सग्-गम्,
इच्छापूर्वक मुझे आप आज्ञा दें, हे गुरु भगवंत !
मैं
'क्षुद्र ऐसे उपद्रव को दूर
करने के लिए कायोत्सर्ग करूँ ?
इच्छं,
इच्-छम्,
आपकी आज्ञा प्रमाण है ।
क्षुद्रोपद्रव उड्डावणार्थं
मैं
'क्षुद्र ऐसे उपद्रव को दूर
करने के लिए कायोत्सर्ग करता हूँ । ३.
क्षुद्-रो-पद्-व उड् - डाव-णार्थम्करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्थ... ३ करे-मि-काउस्- सग्-गम्, अन्-नत्-थ... ३ अर्थ : हे गुरुभगवंत ! आप ईच्छापूर्वक आज्ञा प्रदान करे कि मैं क्षुद्र ऐसे उपद्रव को दूर करने के लिए कायोत्सर्ग करूँ ? (गुरुभगवंत कहे-करेह - (हाँ, करो !) तब शिष्य कहे- (आपकी आज्ञा प्रमाण है। मैं क्षुद्र ऐसे उपद्रव को दूर करने के लिए कायोत्सर्ग करता हूँ । ३) • यह तीसरा आदेश मांगने के बाद चार लोगस्स का काउस्सग्ग 'सागर वर गंभीरा' तक करे तथा पूराकर नमोऽर्हत् (पुरुष ही बोले ) पूर्वक निम्नलिखित गाथाएँ (श्रेष्ठजन) बोले.....
सर्वे यक्षाम्बिकाद्या ये, वैयावृत्त्य-कराधीने । क्षुद्रोपद्रव-संघातं,
सर्वे यक्षाम्-बिकाद्-या-ये, वैया - वृत्-त्य-करा-धी-ने । क्षुद्-रो- पद्-रव-सङ्-घा-तम्,
सभी अधिष्ठायकदेव तथा अंबिकादि जो वेयावच्च करने के स्वभाव वाले हैं।
क्षुद्र उपद्रवों के समूह को
ते द्रुतं द्रावयन्तु नः ॥१॥ ते दू-रू-तम् - द्-राव-यन् - तु नः ॥१॥ वे शीघ्र नाश करने वाले हों हमारे लिए । १. अर्थ : चतुर्विध श्री संघ के वेयावच्च ( भक्ति-सेवा) करने में तत्पर जो शासन रक्षक अधिष्ठायक सम्यग्दृष्टि यक्ष तथा अंबिका देवी आदि हैं, वे शीघ्र हमारे क्षुद्र उपद्रवों के समूह को नाश करनेवाले हो । १. ० पू. माहात्मा कालधर्म पाने के बाद पालखी निकलने के बाद होनेवाले सामूहिक देववंदन के समय अंत में इस तीसरे आदेश तथा गाथा बोलने के साथ बृहत्-शांति स्तोत्र बोलने का विधान है तथा पक्खी-चौमासी और सांवत्सरिक प्रतिक्रमण के दौरान प्रतिक्रमण स्थापित होने से अतिचार पूर्ण होने के बाद प्रतिक्रमण के साथ ठावनार (स्थापना करनेवाले) किसी भाग्यशाली को बृहत्-शांतिस्तोत्र का पाठ पूर्ण होने से पहले यदि छींक आ जाए, तो उपरोक्त तीसरा आदेश मांगकर कायोत्सर्ग कर यह गाथा बोली जाती है. • जिस भाग्यशाली को छींक आई हो, उसे प्रतिक्रमण पूर्ण होने के बाद पू. गुरुभगवंत के पास आलोचना लेनी चाहिए ।
क्षय तथा कर्म के
३. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! इच्छा-कारेण-सन्- दिसह-भग वन् ! क्षुद्-रो-पद्-व- उड् - डाव णार्-थम्
क्षुद्रोपद्रव उड्डावणार्थं -
काउस्सग्गं करु ?
काउस्-सग्-गम् करुम् ?
www.ja ibrary.org