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________________ अशुद्ध शुद्ध यःक्ष अशुद्ध मन्त्र-पदे भगवते हते नमो नमो शान्तिदेवाय पालनाध्यत प्रथमनाय वाक्यो-प्रयोग विजिया करुते निवृतिनिर्वाणनित्य-मुध्यते देवि! सम्यग्द्रष्टीनाम् कुरु कुरु सदेति पुष्टि-स्वस्ती शुद्ध मन्त्र-पदैः भगवतेऽर्हते नमो नमः शान्तिदेवाय पालनोद्यत प्रमथनाय वाक्यो-पयोग विजया कुरुते निर्वृति-निर्वाण नित्य-मुद्यते देवि! सम्यग्दृष्टीनाम् कुरु कुरु सदेति पुष्टि-स्वस्तीह कुरुते शान्ति नमो नमो शान्तये विदर्भित स्तव यश्चेनं पढति शान्ति पदं यायात सूरि श्रीमान देवस्य उप्सर्गा छिध्यन्ते सर्व धर्माणं जेति मंगल्यम् यःक्षः कुरुते शान्तिम् नमो नमः शान्तये विदर्भितः स्तव यश्चैनं पठति शान्ति-पदं यायात् सूरिः श्रीमान-देवश्च उपसर्गाः छिद्यन्ते सर्वधर्माणाम् जयति मांगल्यम् पद ४७. श्री चउक्कसाय सूत्र आदान नाम : श्री चउक्कसाय सूत्र । | विषय : गौण नाम : श्री पार्श्वजिन स्तुति | सुंदर अलंकार युक्त गाथा :२ भाषा में मंत्रगर्भित :८ श्री पार्श्वनाथ प्रतिक्रमण के अंत में सामायिक संपदा ८ पारते समय बोलते सुनने की मुद्रा। अपवादिक मुद्रा। प्रभु की स्तुति है। छंद का नाम : पादालुक; राग : शंखेश्वर ना पार्श्व प्रभु, तारु नाम जगतमां अमर छे...(भक्ति गीत) मूल सूत्र उच्चारण में सहायक पद क्रमानुसारी अर्थ चउक्कसाय-पडि-मल्लुल्लू-रणु, चउक्-कसा-य-पडि-मल-लुल-लूर-णु, चार कषाय रूपी शत्रुओं का नाश करने वाले, दुज्जय-मयण-बाण-मुसु-मूरणु। दुज्-जय-मय-ण-बाण-मुसु-मूर-णु। दुर्जेय काम देव के बाणों को तोड़ने वाले, सरस-पियंगु-वन्नु गय-गामिउ, सर-स पि-यङ्-गु-वन्-नु गय-गामिउ, नवीन प्रियंगु लता जैसे वर्ण वाले, हाथी जैसी गति वाले, जयउ पासु भुवणत्तयजयउ पासु भुव-णत्-तय तीनों भुवन के स्वामी श्री पार्श्वनाथ प्रभु सामिउ॥१॥ सामि-उ॥१॥ जय को प्राप्त हो । १. गाथार्थ : चार कषाय रूपी शत्रुओं का नाश करने वाले, दुर्जेय काम देव के बाणों को तोड़ने वाले, नवीन प्रियं वर्ण वाले, हाथी जैसी गति वाले तीनों लोक के नाथ श्री पार्श्वनाथ प्रभु जय को प्राप्त हो । १. छंद का नाम : अडिल; राग :शंखेश्वर ना पार्श्व प्रभु... (भक्ति-गीत) जसु-तणु-कंति-कडप्प-सिणिद्धउ, जसु तणु-कन्-ति कडप्-प सिणिद्-धउ, जिसके शरीर का तेजो मंडल मनोहर है, सोहइ फणिमणि-किरणा-लिद्ध। सोह-इ फणि-मणि-किर-णा-लि-द्-धउ। शोभित नाग-मणि की किरणों से युक्त, नं नव-जलहरनम्-नव-जलहर सच ही बिजली से युक्त तडिल्लय-लंछिउ, तडिल-लय लञ् (लन्)-छिउ, नवीन मेघ समान है, सो जिणु पासु पयच्छउसो जिणु पासु प-यच-छउ वे श्री पार्श्वनाथ जिनेश्वर मनोवांछित वंछिउ ॥२॥ वञ् (वन्)-छिउ ॥२॥ प्रदान करे। २. गाथार्थ : जिसके शरीर का तेजो मंडल मनोहर है, शोभित है, नागमणि की किरणों से युक्त है, मानो बिजली से युक्त नवीन मेघ समान है, ऐसे श्री पार्श्वनाथ जिनेश्वर मनोवांछित प्रदान करे। २. २००
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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