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० उपकारी को श्रद्धासुमन से
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पिताश्री खुशालभाई पोपटभाई झवेरी मातुश्री उर्मिलाबेन खुशालभाई झवेरी
'जननीनी जोड, सखी ! नहि जडे रे लोल...' इस लोकगीत की पंक्ति स्मरण पथ पर आते ही मस्तक शत-शत झुक जाता है। जननी को किसी की भी उपमा से
करवाना बालचेष्य मात्र ही है। उसमें धर्मदात्री व धर्मपथदर्शककी तो क्या बात करें? दक्षिण भारत में कर्मसंयोग से रहते हुए भी सद्गुरु का समागम उन्ही के संस्कारों से प्राप्त हुआ। ___ मातृहृदया साध्वीजी श्री रंजनश्रीजी के सत्संग से धर्मपथ के प्रति अभिरुचि प्रगट हुई । उन्ही की संसारी पुत्री व पट्टधररत्ना वात्सल्यहृदया साध्वीजी श्री रतिप्रभाश्रीजी के सानिध्य से धर्म प्रति श्रद्धा द्रढ बनी। उन्ही की शि मेरे संसारी मौसी साध्वीजी श्री रम्यक्चन्द्राश्रीजी तथा साध्वीजी श्री फाल्गुनचन्द्राश्रीजी की छत्र-छाया में आने से संयम के प्रति अभिलाषा प्रगट हुई। संसारी वडील बहनें जो संसारी वडील मौसी साध्वीजी के शिष्या व प्रशिष्या के पद पर आरुढ हैं, ऐसे साध्वीजी श्री कल्पपर्णाश्रीजी व साध्वीजी श्री आगमरसाश्रीजी के प्रेरणादायी वचनों से और प्रतिपल संयम ग्रहण की महत्ता से मन को अभिवासित करने से मैं संयम जीवन स्वीकृत करने में समर्थ बना। ___संयमी महात्मा और साध्वीजी भगवंत उपकार करने में समर्थ तब ही बन शके, जब जन्मदाता माता-पिताश्री ने बचपन से धर्म संस्कारों का सिंचन किया । यौवन वय में विषय-वासना से विमुख बनाकर और कषायों की भयंकरता समझाकर पूज्य गुरु भगवंत के सानिध्य में रहने का सौभाग्य भी उन्ही की प्रेरणा से प्राप्त हुआ।जो संयम ग्रहण में फलीभूत बना। वृद्धावस्था में सेवा-शुश्रूषा की अपेक्षा को सर्वथा गौण करके, अपने स्वार्थ के बन्धन से निर्मोही बनकर, अपनी कुक्षि
नोको श्रमण भगवान श्री महावीर प्रभ के संयम पथ पर प्रयाण करवाने का परम सौभाग्य आपही ने प्राप्त किया।आपके अगणित गुणों को इन वामन शब्दों के माध्यम से कैसे वर्णन कर सकता हुँ ? आप ही के शुभाशिष से प्राप्त यहसंयम जीवन अशाता में भी शाता का संवेदन कराने में समर्थ बने, ऐसी मंगल कामना के साथ.....
मुनि श्री रम्यदर्शन विजय वालकेश्वर, मुंबई
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