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________________ ४४. श्री क्षेत्रदेवता स्तुति आदान नाम : श्री यस्याः क्षेत्रं स्तुति | विषय : गौण नाम : क्षेत्र देवता स्तुति | जिस क्षेत्र का आश्रय गाथा पद लेकर मुनि महाराज संपदा संयम साधना करते हो, गुरु-अक्षर :३(५) प्रतिक्रमण के समय प्रतिक्रमण के समय वे क्षेत्र देवता सुख लघु-अक्षर : २९ (४०) जिनमुद्रा में सुनते योगमुद्रा में बोलते सर्व अक्षर : ३२ (४५) देनेवाले हो, ऐसी प्रार्थना। समय की मुद्रा। समय की मुद्रा। मूल सूत्र उच्चारण में सहायक पद क्रमानुसारी अर्थ खित देवयाए करेमिकाउस्सग्गं, खित्-त-याए-करेमि काउस्-सग्-गम्, क्षेत्रदेवता की आराधना हेतु, अन्नतत्थ... अन्-नत्-थ... में कायोत्सर्ग करता हूँ। गावार्थ : क्षेत्र देवता की आराधना हेतु में कायोत्सर्ग करता हूँ। छंद का नाम : गाहा; राग : जिण-जम्म-समये मेरु-सिहरे... (स्नान पूजा) यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य, यस-याःक्षे-त्रम् समा-श्रि-त्य, जिसके क्षेत्र का आश्रय लेकर / जिसके क्षेत्र में साधुभिः साध्यते क्रिया। साधु-भि: सा-ध्य-ते क्रिया। साधुओं द्वारा साधना की जाती है, सा क्षेत्र-देवता नित्यं, सा क्षेत्र देवता नित्-यम, वह क्षेत्र -देवता सदा | भूयान्नः सुख-दायिनी ॥१॥ भू-यान्-नः सुख-दायिनी ॥१॥ सुख देनेवाला हो । १. गाथार्थ : जिनके क्षेत्र में साधुओं द्वारा क्रिया की साधना की जाती है, वह क्षेत्र देवता हमें सदा सुख देनेवाला हो ।१. । पक्खी, चौमासी तथा संवत्सरी प्रतिक्रमण में देवसिअ प्रतिक्रमण के समय 'जिसे खित्ते साहू' के स्थान पर बोली जाती है तथा पू. महात्मा जब एक स्थान से दूसरे स्थान पर संथारा करे, उस समय भी 'जिसे खित्ते साह स्तुति बोली जाती है। ४५. श्री अड्डाइज्जेसु सूत्र आदान नाम : श्री अड्डाइज्जेसु सूत्र । सत्र विषय: गौण नाम : श्री मुनिवंदन सूत्र ढाईद्वीप में स्थित गाथा अठारह हजार शीलांगपद : ८ रथ-धारण करने वाले संपदा :८ गुरु-अक्षर : १३ सर्व साधुभगवंतों को प्रतिक्रमण के समय लघु-अक्षर : ७२ विविधगुण स्मरण सुनते समय की मुद्रा। सर्व अक्षर :८५ करके वंदना। छंद का नाम : गाहा; राग : जिण-जम्म-समये मेरु-सिहरे...(स्नात्र पूजा) मूल सूत्र उच्चारण में सहायक पद क्रमानुसारी अर्थ अड्डाइज्जेसु दीवसमुद्देसु, अड्-ढा-इज्-जेसु दी-व स-मुद्-देसु, ढ़ाई द्वीप और दो समुद्र की पनरससु कम्मभूमिसु। पन-रस-सु कम्-म-भूमि-सु। पन्द्रह कर्म भूमियों में जावंत के वि साहू, जा-वन्-त के वि-साहू, जे कोई भी साधु रयहरण-गुच्छ-पडिग्गहस्य-हरण-गुच्-छ-पडिग्-गह रजोहरण, गुच्छक और पात्रा को धारा ॥१॥ धारा ॥१॥ धारण करने वाले ।१. गाथार्थ : ढाई द्वीप और दो समुद्र की पन्द्रह कर्मभूमियों में जो कोई भी साधु भगवंत रजोहरण (= ओघा), गुच्छक (= पात्रा की जोड के उपर-नीचे बांधने योग्य अर्ण वस्त्र) और पात्रा (आदि) को धारण करनेवाले । १. Jaingaanemational
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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