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________________ ४२. श्री वरकनक सूत्र आदान नाम : श्री वरकनक सूत्र विषय : गौण नाम : एकसो सित्तेर जिनस्तुति गाथा उत्कृष्ट काल में पद विहार करनेवाले संपदा : ४ १७० जिनेश्वरों की गुरु-अक्षर : ४ उनके वर्गों के प्रतिक्रमण के लघु-अक्षर : ४० समय बोलने की मुद्रा। अपवादिक मुद्रा। सर्व अक्षर : ४४ अनुसार स्तुति । छंद का नाम : गाहा; राग : दर्शनं देव-देवस्य...(प्रभु स्तुति) मूल सूत्र उच्चारण में सहायक पद क्रमानुसारी अर्थ वरकनक-शंख-विद्रुमवर-कनक-श-ख विद्-रुम, श्रेष्ठ सुवर्ण, शंख, विद्रुम, मरकत-घन-सन्निभं विगतमोहम्। मर-कत-घन-सन्-निभम्-विगत-मोहम्। नीलम और मेघ जैसे वर्णवाले मोह से रहित सप्तति-शतं जिनानां, सप्-तति-शतम् जिना-नाम्, एक सो सत्तर जिनेश्वरों को सर्वामर-पूजितं वंदे ॥१॥ सर-वा-मर-पूजि-तम् वन्-दे ॥१॥ सर्व देवों से पूजत मैं वंदन करता हूँ। १. गाथार्थ : श्रेष्ठ सुवर्ण, शंख, विद्रुम, नीलम और मेघ जैसे वर्णवाले, मोह से रहित सर्व देवों से पूजित एक सो सत्तर जिनेश्वरों को मैं वंदन करता हूं। १. (छह आवश्यक सायंकालीन प्रतिक्रमण में पूर्ण होने बाद भगवान् हं' आदि पंच परमेष्ठि को वंदन करने से पहले यह सूत्र सामुहिक बोला जाता है।) ४३. श्री भवनदेवता स्तुति : १ आदान नाम : श्री ज्ञानादि गुण सूत्र गौण नाम : भवनदेवता स्तुति गाथा विषय: पद स्वाध्याय-संयमरत संपदा मुनि महाराजों का गुरु-अक्षर : २(४) लघु-अक्षर : ३५ (४७) भवनदेवी कल्याण सर्व अक्षर : ३७ (५१) करें, ऐसी प्रार्थना। मूल सूत्र उच्चारण में सहायक पद क्रमानुसारी अर्थ भवणदेवयाए करेमिकाउस्सग्गं, भ-वण-देव-याए करे-मि काउस्-सग्-गम्, भवनदेवी निमित्त कायोत्सर्ग करता हूँ, अन्नत्थ अन्-नत्-थ... अन्नत्थ... छंद का नाम : गाहा; राग : दर्शनं देव देवस्य (प्रभु स्तुति) ज्ञानादि-गुण-युतानां, ज्ञाना-दि-गुण-युता-नाम्, ज्ञान आदि गुणों से युक्त नित्यं स्वाध्याय-संयम-रतानाम्। नित्-यम् स्वा-ध्या-य संयम-रता-नाम्। नित्य स्वाध्याय और संयम में लीन विदधातु भवनदेवी, वि-दधा-तु भव-न-देवी, करे भवन देवी शिवं सदा सर्व साधूनाम् ॥१॥ शिवम् सदा सर-व-साधू-नाम् ॥१॥ कल्याण सदा सर्व साधुओं का । १. गाथार्थ : ज्ञान आदि गुणों से युक्त, नित्य स्वाध्याय और संयम में लीन सर्व साधुओं का भवन देवी सदा कल्याण करे। १. • यह स्तुति पक्खी-चौमासी-संवत्सरी प्रतिक्रमण के समय देवसिअ प्रतिक्रमण में 'सुअदेवया भगवई' के बदले में बोली जाती है तथा पू. महात्मा जब एक स्थान से दूसरे स्थान पर संथारा करते हैं, उस समय भी 'सुअदेवया भगवई' के बदले यह स्तुति बोली जाती है। १९३ vrait ol emational wwwjamallary
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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