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________________ पा-दित छंद का नाम : वंशस्थ; राग : कल्लाण कंदं (पंच जिन स्तुति) कषाय-तापा-दितकषाय-तापार-दि-त कषाय रूपी ताप से पीड़ित जन्तु-निर्वृति, जन्-तु निर्-वृतिम्, प्राणियों की शांति करता है, करोति यो-जैन-मुखाम्बुदोद्-गतः। करो-ति यो-जैन-मुखाम्-बुदोद्-गतः। जो जिनेश्वर के मुख रूपी मेघ से प्रगटित स शुक्र-मासोद्-भव-वृष्टि-सन्निभो, स शुक्र-मासोद्-भव वृष्-टि सन्-निभो, ज्येष्ठ मास में होने वाली वृष्टि समान दधातु तुष्टिं मयि विस्तरो गिराम् ॥३॥ दधातु तुष्-टिम् मयि विस्-तरो गिराम् ॥३॥ मुझ पर अनुग्रह धारण करो वाणी का । विस्तार / समूह । ३. 'कषायतापा...' बोलते हुए, प्रभु देशना दे रहे हैं, गाथार्थ : ज्येष्ठ मास में होनेवाली दृष्टि के समान उनका मुख मानो जो कषाय रूपी ताप से पीडित प्राणियों की बादल है तथा उसमें से || शांति करता है, वैसी जिनेश्वरके मुख रूपी मेघ से निकलनेवाली वाणी प्रगटित वाणी का वह समूह मुझ पर अनुग्रह मानो शीतल जल की वृष्टि की तरह वह श्रोता धारण करो।३. के ऊपर गिरकर उसके अशुद्ध कषाय-ताप को शांत कर देती है। ज्येष्ठ माह ज्यायकमकमलावलि ज्यायःक्रमकमलावलिं की बरसात भूमि को सदशैरिति सदृशैरिति कैसी ठंडी कर देती है? जन्तुनिवृति जन्तुनिर्वृति वैसे।३ व्रष्टिसन्निभो वृष्टिसन्निभो PID काय तापा पार्दित ज विशाल MEEG पूर्वकाल की अनंत मेरू-अवस्था पर अनंत प्रभु को इन्द्र जन्माभिषेक करते हुए देखें, तथा यह उनके असीम आनंद में स्वर्ग सुख को तृण समान तुच्छ मानते हुए देखें।२. भगवान का मुखकमल देखें, जिसमें दो नेत्र पंखुड़ियों के समान हैं तथा दांतों में उछलते हुए किरणों को पराग के समान देखना चाहिए।१. A कलक निर्मुक्त-ममुक्तपूपात कुतकराचमनं सदादयम् । यूँ देखें की दुनिया का चंद्रमा तो कलंकित तथा पूर्णता को छोड़कर छोटा होते हुए राहु के मुंह में निगला जाकर अस्त हो जाता है, जबकि जिनेश्वर भाषित आगम रूपी चंद्रमा निष्कलंक है । यह कभी अपनी पूर्णता को नहीं छोड़ता है तथा कुतर्क रूपी राहु के मस्तक को निगलकर साफ करनेवाला तथा सदा उदय होनेवाला है, तथा सुबुद्धि (विशुद्ध बुद्धि के स्वामि ) देवताओं तथा मानवों से वंदित है। ३. हिनामा अपूसा जिसवकारितम् हिदागदी पीमि पुधिनमस्कृतम् ॥ Jain Education International (www.jamalibrary.or?
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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