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________________ छंद का नाम : अनुष्टप; राग : दर्शनं देव देवस्य.. (प्रभु स्तुति) नमोऽस्तु वर्द्धमानाय, नमो-स्तु वर्-द्ध-माना-य, श्री वर्धमान स्वामी को नमस्कार हो स्पर्द्धमानाय कर्मणा। स्पर-द्ध-माना-य कर-मणा। कर्मों के साथ स्पर्धा करते हुए तज्जया-वाप्त-मोक्षाय, तज्-जया-वाप्-त-मोक्-षाय, उन पर विजय द्वारा मोक्ष प्राप्त किये हुए परोक्षाय कुतीर्थिनाम् ॥१॥ परोक्-षाय कुतीर-थिनाम् ॥१॥ कुतीर्थियों के लिए अगम्य गाथार्थ : कर्मो के साथ स्पर्धा करते हुए और उन पर विजय द्वारा मोक्ष प्राप्त किये हुए और मिथ्यात्वियों के लिए अगम्य श्री महावीर स्वामी को नमस्कार हो । १. स्पद्धमानाय कर्मणा HAN 'नमोऽस्तु वर्द्धमानाय' बोलते हुए, अष्ट प्रातिहार्य युक्त श्री प्रभु को देखकर सिर झुकाकर वंदन करना चाहिए । 'स्पर्द्धमानाय कर्मणा' बोलते हुए, प्रभु को सज्जयावाप्तमोक्षारा कर्म के साथ लड़ते हुए अर्थात् उपद्रव (उदा. दुष्ट देव के द्वारा मस्तक पर घूमता हुआ कालचक्र, सिंह-बाघ का आक्रमण-सर्पदंश, पैरों के बीच अग्नि आदि) के समय स्थिर चित्त समाधि से देखना चाहिए । 'तज्जयावाप्त मोक्षाय' बोलते हुए, इन उपद्रवों में अद्भुत उपशम-समता से विजय अर्थात् कर्मध्वंस कर मोक्ष प्राप्त करते हुए देखना चाहिए । 'परोक्षाय...' बोलते हुए, मिथ्यादर्शी प्रभु से मुंह फिरा लेते हैं, प्रभु को देख नहीं सकते हैं, ऐसे प्रभु को देखना । १. पशेपास तालिबाना नमोऽस्तु वर्द्धमानाय छंद का नाम : औपच्छन्दसिक; राग : वंदे मातरम् सुजलाम्-सुफलाम् (देश-गीत) येषां विकचार-विंद-राज्या, येषाम्-विकचा-र-विन्-द-राज्-या, जिनकी विकसित कमल पंक्तियों ने ज्यायः क्रमकमलावलिं दधत्या। ज्या-य:-क्रम-कमला-वलिम्-दधत्-या। उत्तम चरण कमल की श्रेणी को धारण करनेवाली सदशैरिति संगतं प्रशस्यं, सद्-ऋशै-रिति सङ्-गतम्-प्र-श-स्-यम्, कहा कि समान के साथ इस प्रकार समागम होना प्रशंसनीय है कथितं सन्तु शिवाय ते- कथि-तम् सन्-तु शिवाय ते कहा कि वे जिनेश्वर मोक्ष के लिये हो । २. जिनेन्द्राः ॥२॥ जि-नेन्-द्राः ॥२॥ 'येषां विकचार...' के समय, हमारे गाथार्थ : वे जिनेन्द्र मोक्ष के लिए हो, सामने अनंत तीर्थंकरदेव हैं, उनके | जिनकी उत्तम चरण कमल की श्रेणी को चरणकमल के आगे कमलों की धारण करनेवाली, विकसित कमलों की पंक्ति है, इनकी अपेक्षा से प्रभुचरण | पंक्ति ने कहा कि समान के साथ इस प्रकार रुप कमलपंक्ति अधिक सुन्दर है, समागम होना प्रशंसनीय है।२. फिर भी दोनों कमल के रूप में समान होते हुए कमलपंक्ति बोलती है कि 'समान के साथ हमारा योग रोषा विकतारविन्दराज्या प्रशंसनीय है।' ऐसे प्रभु से शिव मोक्ष कल्याण मागें।२. hos Privale & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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