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गाथार्थ : श्रुत देवता की आराधना के लिए मैं कायोत्सर्ग करता हूँ । जिनको श्रुतज्ञानरुप समुद्र पर भक्ति है । उन के ज्ञानावरणीय कर्म के समुह को श्रुत देवता (= सर्वज्ञ भगवंतों द्वारा प्ररुपित आगम-सिद्धांतों आदि श्रुतज्ञान की अधिष्ठायक देवी को श्रुतदेवता = सरस्वती कहते हैं) नित्य क्षय करो । १.
नोट : इस सूत्र के प्रारम्भ में 'करेमि काउस्सग्गं' के बाद अन्नत्थ सूत्र बोलकर एकबार श्री नवकार मंत्र का जिनमुद्रा में कायोत्सर्ग करके तथा पारकर सुअदेवया...' गाथा बोलनी चाहिए । यहाँ इस सूत्र में, क्षेत्रदेवता की स्तुति में, कमलदल की स्तुति में, भवनदेवता की स्तुति में , क्षेत्रदेवता की स्तुति में 'अन्नत्थ सूत्र' बोलने से पहले 'वंदण वत्तियाए...' सूत्र बोलने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि शासन रक्षक सम्यग्दृष्टि देव का स्मरण करके प्रार्थना होती है, परन्तु अविरतिवाले होने के कारण वंदन-नमन नहीं होता है। इसी तरह कुसुमिण-दुसुमिण' का, 'देवसिअ पायच्छित्त' का, कर्मक्षय' का, 'दुःखक्षय' का तथा 'क्षुद्रोपद्रव उड्डावणार्थ' का काउस्सग्ग करने से पहले 'वंदण वत्तियाए...' सूत्र बोलने की आवश्यकता नहीं है। किसी भी विशिष्ट तप की आराधना के लिए, चैत्यवंदन-देववंदन आदि के लिए कायोत्सर्ग करने से पहले ही अवश्य 'वंदणवत्तियाए...' सूत्र बोलना चाहिए।
३८.श्री क्षेत्रदेवता स्तुति
आदान नाम : श्री खित्तदेवया स्तुति | विषय: गौण नाम : श्री क्षेत्रदेवता स्तुति | उन-उन क्षेत्रों के गाथा
सम्यग्दृष्टि देवों को पद
मुनि भगवंतों की संपदा
साधना निर्विघ्नता गुरु-अक्षर :३
पूर्वक सम्पन्न हो, प्रतिक्रमण के समय प्रतिक्रमण के समय
लघु-अक्षर : ३३
इसके लिए कायोत्सर्ग में
योगमुद्रा में
सर्व अक्षर : ३६ सुनने की मुद्रा। बोलने की मुद्रा।
प्रार्थना। मूलसूत्र उच्चारण में सहायक
पदक्रमानुसारी अर्थ खित्तेदेवयाएकरेमि खित्-त देव-याए-करे-मि
क्षेत्र देवता की आराधना ( स्मरण ) के लिए काउस्सग्गं अन्नत्थ...,
काउस्-सग्-गम्।अन्-नत्-थ..., मैं कायोत्सर्ग करता हूँ।अन्नत्थ...
छंद का नाम : गाहा; राग : जिण जम्मसमये मेरु सिहरे... (स्नात्र पूजा) जीसे खित्ते साहू, जीसे खित्-ते साहू,
जिस के क्षेत्र के प्रति साधु-मुनिराज दंसण-नाणेहिं चरणस-हिएहिं। दन्-सण-नाणे-हिम् चरण-सहि-एहिम्। दर्शन-ज्ञान-चारित्र सहित साहति मुक्खमग्गं, साहन्-ति मुक्-ख-मग्-गम्,
मोक्ष मार्ग की साधना करते हैं, सा देवी हरउ दुरिआई ॥१॥ सा देवी हर-उ दुरि-आ-इम् ॥१॥
वह देवी पापों का नाश करो । १. गाथार्थ: श्री क्षेत्रदेवता की आराधना (स्मरण) के लिए मै कायोत्सर्ग करता हूँ। अन्नत्थ... जिस के क्षेत्र में साधु-मुनिराज दर्शन-ज्ञान और चारित्र स्वरुप रत्नत्रयी सहित मोक्षमार्ग की आराधना-साधना करते हैं, वह क्षेत्र की अधिष्ठायक देवी पापों का नाश करो । १.
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