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सव्वस्स समण संघस्स, सव-वस्-स समण-सङ्-घस्-स,
पूज्य सकल श्रमण संघ को, भगवओ अंजलिं करीअ सीसे । भगव-ओ-अन्-जलिम्-करी-अ सी-से। मस्तक पर अंजलि करके सव्वं खमावइत्ता, सव-वम्-खमा-व-इत्-ता,
सब से क्षमा मांगकर, खमामि सव्वस्स अहयं पि ॥२॥ खमा-मि सव-वस्-स अह-यम् पि ॥२॥ मैं भी सबको क्षमा करता है गाथार्थ : मस्तक के उपर दो हाथ जोडकर पूज्यश्री श्रमण संघ के प्रति (किए हुए) सभी (अपराधों) की क्षमा (माफी) मांगकर मैं भी सभी को क्षमा (माफ) करता हूँ। २. सव्वस्स जीवरासिस्स, सव-वस्-स जीव-रा-सिस्-स,
सर्व जीवों के समूह से भावओ धम्म-निहिअभाव-ओ धम्-म-निहि-अ
अपने मन को धर्म भावना में स्थापित निअ-चित्तो। निअ-चित्-तो।
कर/अंतःकरण से धर्म भावना पूर्वक सव्वं खमावइत्ता, सव-वम् खमा-वइत्-ता,
सभी अपराधों की क्षमा मागकर, खमामि सव्वस्स अहयं पि ॥३॥ खमा-मि सव्-वस्-स अह-यम् पि ॥३॥ मैं सभी के अपराधों की क्षमा करता हूँ।३ अशुद्ध शुद्ध
गाथार्थ : भाव से धर्म के प्रति स्थापित किया है, चित्त (मन) को जिसने, ऐसा मैं भगवो अंजलि भगवओ अंजलि
सभी जीवसमूह के सभी (अपराध) की क्षमा मांगकर, मैं उन सभी के अपराधों को निअ निअ निहिअ निअ
माफ (क्षमा) करता हू। ३. अहियंपि अहयंपि
३७ श्री श्रुत देवता स्तुति
आदान नाम: श्री सुअदेवया स्तुति गौण नाम : श्री श्रुतदेवता स्तुति श्रुतज्ञान के प्रति पद
आदर रखनेवालों के संपदा गुरु-अक्षर : २
प्रति सहानुभूति प्रतिक्रमण के समय प्रतिक्रमण के समय
लघु-अक्षर : ३५
दिखाने के लिए कायोत्सर्ग में
योगमुद्रा में
सर्व अक्षर : ३७ सुनने की मुद्रा। बोलने की मुद्रा।
श्री संघ स्तुति करता है। मूल सूत्र उच्चारण में सहायक
पदक्रमानुसारी अर्थ सुअदेवयाए करेमि सुअ-देव-याएकरे-मि
श्रुत देवता की आराधना (स्मरण) के लिए काउस्सग्गं! अन्नत्थ..., काउस्-सग्-गम् अन्-नत्-थ। । मैं कायोत्सर्ग करता हूँ।अन्नत्थ...
छंद का नाम: गाहा; राग : जिण जम्मसमये....(स्नात्र पूजा) सुअदेवया भगवई, सुअ-देव-या भग-वई,
भगवती (सरस्वती) ऐसी श्रुतदेवता नाणावरणीय-कम्म-संघायं। नाणा-वर-णीय-कम्-म सङ्-घा-यम्। ज्ञानावरणीय कर्म के समूह को तेसिं खवेउ सययं, तेसिम्-खवेउ सय-यम्,
उनके नित्य क्षय करो जेसिं सुअसायरे भत्ती ॥१॥ जेसिम्-सुअ-साय-रे भत्-ती ॥१॥ जिनको श्रुतज्ञानरुप समुद्र पर भक्ति है। १.
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