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________________ मारने से, बांधने से, अंगोपांग के छेदने से, अधिक बोझ लादने से, आहार- पानी का विच्छेद करने से (भुखा-प्यासा रखने से ) प्रथम व्रत में लगे अतिचारों का पढम वयस् स इयारे, पढम-वयस्स- इयारे, पडिलमे देसिअं सव्वं ॥ १० ॥ दिनमें लगे सर्व (पापो ) का में प्रतिक्रमण करता हूँ। १०. पडिक्-कमे-देखि- अम् सव्वम् ॥१०॥ गाथार्थ : पहले अणुव्रत में प्राणों के विनाश से स्थूल विरति के आश्रय से आचरण (होता है) उसमें प्रमाद से व अप्रशस्त भाव से व १. (जीव ) वध२. बंधन ३. अवयव छेदन, ४. अतिभार (आरोपण) और ५. अन्न-जल में अवरोधरुप पहले (अणु) व्रत के अतिचार हैं। ( उसमें) दिन संबंधित (लगे हुए) सभी (अतिचारो) का मैं प्रतिक्रमण करता हूँ । ९-१०. दूसरे अणुव्रत में वह बंध- छविच्छेए अइ-भारे भत्त-पाण-वुच्छेए। अइ-भारे भत्-त पाण- वुच् छेए । दूसरे अणुव्रत के अतिचारों का प्रतिक्रमण वह बन्-ध-छविच्-छेए, बीए अणुव्वयंमि, परिधूलग-अलिअ वयण विरईओ । आयरिय-मप्यसत्थे, बीए अणुव्-वयम्-मि, परि-धूल-ग-अलि-अवयण - विरई - ओ । आय-रिब-मप्-प-सत्-थे, इत्थ-प-मायप्प-संगेणं ॥ ११ ॥ इत्-थपमा-यप्-प-स-गे - णम् ॥११॥ सहस्सा रहस्स-दारे, सह- सा - रहस्-स-दारे, मोसुवएस मोसुवएसे अ कूड लेहे अ । मोसु वए-से अ कूड-लेहे अ । बीय वयस् स-इआरे, - बीय वयस्स-इआरे, पक्किमे देसिअं सव्वं ॥ १२ ॥ पडिक्कमे देसि अम् सव्वम् ॥१२॥ गाथार्थ : दूसरे अणुव्रत में स्थूल (अतिशय बड़े) प्रकार से असत्य वचन से विरति के आश्रय से आचरण (होता है) उस में प्रमाद से व अप्रशस्त भाव से (१) बिना विचारे किसी के उपर झुठा दोषारोपण करना; (२) गुप्त बातों को जाहिर करना; (३) अपनी स्त्री की गुप्त बातें, दूसरों को कहनी (४) झुठा उपदेश देना और (५) झुठे लेख लिखना व झूठे दस्तावेज लिखने रुप दूसरे (अणु) व्रत के अतिचार हैं। (उसमें) दिन संबंधित (लगे हुए) सभी (अतिचारो) का मैं प्रतिक्रमण करता हूँ । ११-१२. कूटसाक्षी बीए अणुव्वयम्मि कन्या- गौ- भूम्यालिक Jain Education International स्थूल मृषावाद (असत्य बोलने से ) विरमण में अतिचारों का अप्रशस्त भाव के कारण यहाँ प्रमाद के कारण । ११. सहसाभ्याख्यान (बिना विचारे दोषारोपण करने) से, रहस्याभ्याख्यान (किसी के रहस्य का मनमाना अनुमान लगाकर कहने) से, स्वदारा मंत्र भेद (स्व स्त्री की गुप्त बातों को प्रकाशित करने ) से और मिथ्या उपदेश (झुठी सलाह) देने से और झुठे लेख लिखने से दूसरे व्रत में लगे अतिचारों का दिन में लगे सर्व (पापों) का मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। न्यासापहार विवाह योग्य स्त्री, जमीन तथा गाय बड़े झूठ के तीन कारण बतलाए गए हैं। न्यासापहार में धनवान व्यक्ति के साथ भली-भांति व्यवस्था कर निर्बल व्यक्ति की गिरवी पहचानता हुआ शेठ दिखलाई पड़ता है । मोसुवएसे में गांव के चौराहे पर बैठकर पंचायत कर झूठी सलाह देता हुआ व्यक्ति है। For Private & Personal Use Only सहसा रहस्सदारे कूडलेहे १७३ www.jainelibrary.org.
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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