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________________ Jair९-७४ तीसरे अणुव्रत के अतिचार का तइ ए अणुव्-वयम्-मि, तइए अणु-व्वयम्मि, थूलग-परदव्व-हरण-विरईओ । थूल-ग-पर- दव्-व-हर-ण- विर- ईओ । आयरिअ-मप्पसत्थे, इत्थ पमाय- प्पसंगेणं ॥ १३ ॥ तेना-हडप्प-ओगे, आय-रिअ-मप्-पसत्-थे, अतिचारों का अप्रशस्त भाव के कारण इत्-थ पमा-यप् - प-सङ्-गे - णम् ॥१३॥ यहाँ प्रमाद के कारण । १३. तेना-हड-प्प-ओ-गे, चौर द्वारा लायी वस्तु रखने से और ( चोर को ) प्रोत्साहक वचन बोलने से, नकली (या मिलावटी) माल बेचने से, और (राज्य) विरुद्ध कार्य करने से, गलत तोलने से और गलत मापने से, दिन में लगे सर्व (अतिचारो) का मैं प्रतिक्रमण करता हू । १४. आश्रय से आचरण (होता है।), उसमें प्रमाद से व गाथार्थ : तीसरे अणुव्रत में स्थूल से दूसरे के द्रव्य का हरण से विरति के अप्रशस्त भाव से ( १ ) चौर द्वारा लायी वस्तु को रखने से, (२) चौर को चोरी करने के लिए प्रोत्साहक वचन बोलने से, (३) असली बोलकर नकली माल बेंचने से (४) दानचोरी, स्मग्लिंग आदि राज्य विरुद्ध कार्य करने से और (५) गलत तोलने से व गलत मापने से व्यवहार किया हो, (वह) तीसरे (अणु) व्रत के अतिचार (होते हैं।), उसमें दिन संबंधित (लगे हुए) सभी ( अतिचारों) का मैं प्रतिक्रमण करता हुँ । १३-१४. तप्पडिरुवे विरुद्ध-गमणे अ । कूल कूड माणे, पक्किमे देसिअं सव्वं ॥ १४॥ तइए अणुव्वयम्मि तेना हडप्पओगे SR वेश्या के घर जाता हुआ विवाह, कामी पुरुष, कामचेष्टा आदि के द्वारा सारे अतिचार जान लेने चाहिए। त-प्प-डि- रुवे-वि-रुद्ध-गम-णे-अ कूड- तुल- कूड-माणे, पडिक्कमे देसि अम् सव्वम् ॥१४॥ उत्थ वयस्स-इआरे, पक्किमे देसिअं सव्वं ॥ १६ ॥ कूडतुल कूडमाणे चउत्थे अणुव्वयम्मि, प्रतिक्रमण अणंग तीसरे अणुव्रत के बारे में बादरपन से दूसरों के द्रव्य का हरण से विरति का उल्लंघन करके चौरी का माल ( सस्ते में मिलने के कारण ) लेने वाला व्यापारी, उसे प्रेरणा देते हुए बतलाया गया है । आज के चोर बाजार या कबारी का माल लेनेवालों को सावधान हो जाना चाहिए । विवाह चौथे अणुव्रत के अतिचार का प्रतिक्रमण चउत्-थे अणुव्-वयम्-मि, निच्-चम् पर-दार-गमण - विरई -ओ। आय-रिय-मप्-प-सत्-थे, तिव्व-अणुरागे चउत्थे - अणुव्वयंमि, निच्चं पर-दार-गमण - विरईओ। आयरिअ-मप्पसत्थे, इत्थ-प-मायप्प-संगेणं ॥ १५ ॥ इत्-थपमा यप्-प-सङ्-गे - णम् ॥१५॥। यहाँ प्रमाद के कारण । १५. अपरिग्गहिया इत्तर, अप-रिग्-गहि-या इत्-तर, अपरिग्गहिआ इत्तर चौथे अणु-व्रत में नित्य पर दारा गमण के विषय में विरति अतिचारों का अप्रशस्त भाव के कारण अविवाहित (स्त्री, कन्या या विधवा) के साथ गमन करने से, अल्प समय के लिये रखी स्त्री (वेश्या या रखैल) के साथ गमन करने से, अणंग-विवाह-तिव्व-अणुरागे। अणङ्ग विवाह तिव्-व- अणु-रागे। काम वासना जाग्रत करने वाली क्रियाओं से, दूसरों के विवाह कराने से, विषय भोग मैं तीव्र अनुराग रखने से चौथे व्रत में लगे अतिचारों का चउत्-थ वयस्-स-इआ-रे, पडिक्-कमे देसि-अम् सव्वम् ॥१६॥ दिन में लगे सर्व (पापों) का मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। १६.
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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