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प्रतिक्रमण के
समय बोलते सुनते
समय की मुद्रा ।
मूल सुत्र वंदित्तु सव्वसिद्धे,
अरिहंत
२) उपाध्याय
पैर के पंजे पर
शरीर का संतुलन
साधु
बनाए रखकर एकाग्रता से सूत्र बोलना ।
जो मे वयाइ-यारो, नाणे तह दंसणे चरित्ते अ । सुमो अ बायरोवा, तं निंदे तं च गरिहामि ॥२॥
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वन्-दित्-तु सव्-व-सिद्धे,
धम्मायरिए अ सव्वसाहू अ । धम्-माय-रिए अ सव्-व- साहू-अ । इच्छामि पडिक्कमिडं, इच् छा मि पडिक्-कमि- उम्, सावग धम्माइ- आरस्स ॥१॥ साव-ग धम्-मा-इ-आ-रस्-स ॥१॥ गाथार्थ : सर्वज्ञ ऐसे श्री अरिहंत परमात्मा, श्री सिद्ध भगवंत, श्री धर्माचार्य (श्री आचार्य भगवंत, श्री उपाध्याय भगवंत और सर्व-साधु भगवंत को वंदन करके ( मैं ) श्रावक धर्म में लगे हुए अतिचारों (रुप पाप) से पीछे मुडने की इच्छा रखता हूँ । १.
वंदितु सबसि
જો મે વયાઉયારો
वंदित
आचार्य
देखकर भाव से मस्तक झुकाकर 'शुद्ध आलोचना करने का सामर्थ्य' मिले, यह प्रार्थना करनी चाहिए । १.
३५. श्री वंदित्तु सूत्र
विषय :
आचार तथा व्रतों में लगे 'अतिचार की हुए निंदा-गर्दा तथा
आत्मा को पवित्र करे। ऐसी भावनाएँ हैं ।
प्रतिक्रमण के हार्द रूप इस सूत्र के प्रारम्भ में पंचपरमेष्ठि के नमस्कार के द्वारा मंगलाचरण किया जाता है । पाँचों परमेष्ठि को अपनी विशिष्ट मुद्रा में
आदान नाम : श्री वंदित्तु सूत्र गौण नाम
: श्रावक
गाथा
पद
संपदा
अपवादिक मुद्रा 1
छंद का नाम : गाहा; राग : शान्ति शान्ति निशान्तं (लघु शांति स्तव) उच्चारण में सहायक
पद क्रमानुसारी अर्थ
वंदन कर के सर्व सिद्ध भगवंतों को
और धर्माचार्यों को तथा सर्व साधुओं को मैं प्रतिक्रमण करना चाहता हूँ ।
श्रावक के धर्म में लगे अतिचारों का । १.
प्रतिक्रमण
: ५०
: २००
: २००
नाणे तह दन्-सणे चरित्-ते अ । सुहु- मो अबाय-रो वा, तम् - निन्-दे तम् च गरि हामि ॥२॥
ज्ञान
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सूत्र
चारित्र दर्शन
( सर्व व्रतों तथा आचारों में लगे हुए अतिचारों का प्रतिक्रमण )
जो मे वया-इया-रो,
मुझे व्रत में जो अतिचार लगे हों तथा ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि में सूक्ष्म (छोटे) या बादर (बड़े) मैं उनकी (मेरे उन अतिचारों की ) निंदा करता हूँ और मैं उनकी गर्हा करता हूँ । २.
गाथार्थ : व्रतो में, ज्ञानाचार- दर्शनाचार और चारित्राचार संबंधी आचार में (तपाचार, वीर्याचार और संलेखना में ) जानने में न आए ऐसे सूक्ष्म प्रकार के और जान सके ऐसे बादर प्रकार के अतिचार जो (कोई) मुझे लगा हो, उसकी मे आत्मसाक्षी से (निंदा) करता हूँ और गुरु की साक्षी से विशेष निंदा (गर्हा) करता हूँ । २.
देव - गुरुकृपा से प्राप्त ज्ञान- दर्शन - चारित्र के योग से तथा भाव में आई हुई मलिनता को दूर कर निर्मलता को प्राप्त करने का पुरुषार्थ मिले । इसके लिए पश्वाद्ध में अंधेरे में से उजाले की तरफ गति बतलाई गई है । २.
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