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________________ विविध आवश्यक क्रिया की सही मुद्रा-३ १. चैत्यवंदन के समय की मुद्रा। २. मुक्ताशुक्ति मुद्रा । मुँहपत्ति मुख से संपुट रखना चाहिए। प्रभुजी/ स्थापनाचार्यजी के सम्मुख दृष्टि रहे, इस प्रकार आखें रखनी चाहिए। ललाट को छुना दो ऊगली या न छुना। दूर रखनी चाहिए। संपुट जैसा आकार करते समय आगे से हथेली बंध रखे। हाथ ललाट से उपर नही जाना चाहिए। दोनों कुहनियों को इकट्ठी रखनी चाहिए। दोनों कुहनियों को इकट्ठा कर पेट के ऊपर स्थापित करना चाहिए। दाहिना पैर जमीन को स्पर्श करे तथा बायां पैर थोड़ा ऊपर रहे, वैसे रखना चाहिए। हर क्रिया में चरवला शरीर को स्पर्श करना चाहिए। कटासणा समचोरस होना चाहिए। ३. वांदणा के समय की मुद्रा। ४. वंदित्तु सूत्र बोलते समय की मुद्रा । दृष्टि हमेशा महपत्ति के समक्ष दोनों हाथ दोनों पैरों के नीचे की ओर ही रखनी चाहिए। बीच में ही रखना चाहिए। नख के स्पर्श के बिना दसों ऊंगलियों से मुहपत्ति को स्पर्श करना चाहिए। बाएँ घुटने की अपेक्षा दाहिना घुटना थोड़ा ऊचा रखना चाहिए। दाहिने पैर के पंजे को डंडी से स्पर्श करना चाहिए। कोर मुड़ा हुआ नहीं बल्कि खुला रखना चाहिए। महपत्ति स्थापना करने के बाद बीच में से उठाना अथवा खिसकाना नहीं चाहिए। महपत्ति में गुरुचरणपादुका दोनों पैरों के पंजे के की कल्पना करनी चाहिए। आधार पर ही शरीर का संतुलन बनाए रखना चाहिए। प्रतिक्रमण में कटासणा नहीं हो तो चलेगा, परन्तु चरवला का होना अनिवार्य है। १६९
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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