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________________ ३४. श्रीसव्वस्स वि सूत्र विनम्रता पूर्वक गुरुभगवंत को निवेदन करने की मुद्रा। आदान नाम : श्री सव्वस्स वि सूत्र विषयः गौण नाम :पाप आलोचना पाप की आलोचना करने हेतु गुरुभगवंत सूत्र को निवेदन। मूल सूत्र उच्चारण में सहायक पद क्रमानुसारी अर्थ सव्वस्स वि देवसिअ (राइअ) सव-वस्-स-वि-देव-सिअ (राइअ) सभी ही दिन/रात्री संबंधित... दुच्चितिअ, दुष्भासिअ, दुच-चिन्-तिअ, दुब्-भा-सिअ, दुष्ट चितवन, दुष्ट भाषण, दुच्चिट्ठिअ, दुच्-चिट्-ठिअ, दुष्ट चेष्टा संबंधि... इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इच्-छा-कारण-सन्-दिसह-भग-वन् ! हे गुरुभगवंत ! मै चाहता हूँ कि आप मुझे पाप से पीछे मुडने की अनुमति दें ! (पडिक्कमेह) इच्छं, । (पडिक्-कमेह) इच्-छम्, (गुरु भगवंत कहे-आप पाप से मुडो) तब शिष्य कहे-आपकी आज्ञा प्रमाण है। तस्स मिच्छा मि दुक्कडं॥ तस्-स-मिच्-छा-मि-दुक्-कडम् ॥ ' वह मेरे आचरित दुष्कृत्य मिथ्या हों। गावार्थ : हे क्षमाश्रमण गुरु भगवंत ! आप अपनी स्वेच्छा से मुझे अनुमति दीजिए कि, मैं सभी ही दिन/रात्रि संबंधित आर्त्तरौद्र ध्यान स्वरुप दृष्ट चितवन से, असत्य व कठोर वचन स्वरुप दुष्ट भाषण से और न करने योग्य क्रिया के आचरण स्वरुप दुष्ट चेष्टा स्वरुप पाप से पीछे मुडूं ? (गुरुभगवंत कहे - पडिक्कमेह = आप पाप से पीछे मुडो ।) (तब शिष्य कहे-) आपकी आज्ञा प्रमाण है। मैं उन सभी पाप से पीछे मुडता हूँ और वह मेरे सभी दुष्कृत्य मिथ्या हों। । प्रस्तुत सूत्र संबंधित सरल जानकारी • यह सूत्र खडे रहकर योगमुद्रा में बोलना चाहिए। नव नीवि, बारह एकासणा, चौबीस बियासणा अथवा • पू. गुरुभगवंत 'पडिक्कमेह' बोले, तब सभी आराधको को 'इच्छं, छह हजार स्वाध्याय करके लेखा शुद्धि तस्स मिच्छा मि दक्कडं' एक साथ में अवश्य बोलना चाहिए। निवेदन करना। • यह सूत्र पक्खी, चौमासी और संवत्सरी प्रतिक्रमण में अतिचार . पू. गुरुभगवंत के उत्तर अनुसार तप पूर्ण क्रिया हो, तो पूर्ण होने के बाद बोला जाता है। उसके बाद शिष्य प्रश्न पूछते. "तहत्ति बोलें । तप चालु किया हो और पूर्ण करने की है - 'इच्छकारी भगवन् पसाय करी पक्खी/चौमासी/ संवत्सरी भावना हो तो 'पइट्ठिओ' (= आपकी आज्ञा अनुसार तप प्रसाद करनाजी ।' तब गुरुभगवंत उत्तर देते है - "पक्खी तप में मैं प्रस्थापित हुआ हूँ।) बोलें-तप किया न हो लेखे-चोथ-अब्भत्तद्रेणं-एक उपवास - दो आयंबिल -तीन और करने की संभावना भी न हो तो मौन रहना चाहिए। लुक्खी नीवि-चार एकासणा, आठ बियासणा अथवा दो हजार . पक्खी-चौमासी और संवत्सरी के प्रायच्छित स्वरुप स्वाध्याय करके लेखाशुद्धि करके हमे निवेदन करना।" तप करने से जिनाज्ञा का पालन होता है और नहीं करने चौमासी लेखे छट्ठ-अब्भत्तटेणं-दो उपवास, चार आयंबिल, छह से अनादर का पाप लगता है। लुक्खी नीवि, आठ एकासणा, सोलह बियासणा अथवा चार • लेखा शुद्धि = गुरु की आज्ञा अनुसार किये हुए तप हजार स्वाध्याय करके लेखाशुद्धि करके हमें निवेदन करना। को लिखकर गुरुभगवंत को दिखाना चाहिए अथवा संवत्सरी लेखे अट्ठम-अब्भत्तटेणं-तीन उपवास, छह आयंबिल, मुख से निवेदन करना चाहिए । १३ n gryptions For Private &Personal use Only
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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