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________________ प्रतिक्रमण के समय मुँहपत्ति का उपयोग पूर्वक बोलते-सुनते समय की मुद्रा। आदान नाम : श्री पहेले प्राणातिपात सूत्र गौण नाम :१८ पाप स्थानक सूत्र ३३. श्री अढार पापस्थानक सूत्र विषय: समस्त पापस्थानकों का गुरु के समक्ष निवेदन कर मिथ्यादुष्कृत कहना। मूल सूत्र उच्चारणमें सहायक पहेले प्राणातिपात, बीजे मृषावाद, पहेले प्राणा-ति-पात, बीजे मृषा-वाद त्रीजे अदत्तादान, चौथे मैथुन, त्रीजे अदत्-ता-दान, चोथे मै-थुन पांचमे परिग्रह, छटे क्रोध, पांच-मे परि-ग्रह, छट्-ठे क्रोध सातमे मान, आठमे माया, सात-मे मान, आठ-मे माया नवमे लोभ, दशमे राग, नव-मे लोभ, दशमे राग अग्यारमे द्वेष, बारमे कलह, अग्-यार-मे द्वेष (वे-ष), बार-मे कल-ह तेरमे अभ्याख्यान, चौदमे पैशुन्य, तेर-मे अभ-या-ख्या-न, चौ-द-मे पै-शुन्-य पंदरमे रति-अरति, सोलमे पर-परिवाद, पन्-दर-मे रति-अ-रति, सोल-मे पर-परि-वाद सत्तरमे माया मृषावाद, सत्-तरमे माया-मृषा-वाद, अढारमे मिथ्यात्वशल्य अढारमे मिथ्-यात्-व-शल्-य ए अढार ए अढार, पापस्थानकमांहे पाप-स्था-नक-माहे म्हारे जीवे, जे कोइ पाप सेव्यु होय, म्हा-रे-जीवे, जे कोइ पाप सेव्युं होय, सेवराव्यु होय, सेवतां प्रत्ये सेव-राव्यु होय, सेवता प्रत्ये अनुमोद्यु होय, अनु-मोडु ( ) होय, ते सवि हुमन वचन कायाए करी ते सवि-हु मन वचन-कायाए करी मिच्छा मि दुक्कडं॥ मिच्छामि दुक्-क-डम्॥ गाथार्थ : १. जीव हिंसा करना, वह प्राणातिपात; २. करना, वह कलह; १३. दोषारोपण करना, वह अभ्याख्यान; | असत्य बोलना, वह मृषावाद, ३. मालिक द्वारा स्वेच्छा से १४. चुगली करनी, वह पैशुन्य; १५. सुख प्राप्त हो, तब हर्ष न दी हुई वस्तु को ग्रहण करना, अर्थात चोरी करना, वह करना, वह रति और दुख प्राप्त हो, तब उद्वेग करना, वह अरति; अदत्तादान; ४. कामक्रीडा-विषय सेवन करना, वह मैथुन; १६. दूसरो की निंदा करनी, वह परपरिवाद; १७. कपट से युक्त ५. धन-धन्य-सुवर्ण आदि की ममता, वह परिग्रह; ६. झुठ बोलना, वह माया-मृषावाद और १८. देव-गुरु-धर्म के गुस्सा करना, वह क्रोध; ७. अहंकार करना, वह मान;८. प्रति अश्रद्धा रुप बहेंस करना, वह मिथ्यात्व-शल्य है । इन छल, कपट, प्रपंच करना, वह माया; ९. संग्रह वृति, । अठारह पाप स्थानों में से मेरे जीव ने जिस किसी पाप का सेवन असंतोष रखना, वह लोभ; १०. प्रीति, मोह रखना, वह किया हो, कराया हो, करते हुए का अनुमोदन किया हो, वे सभी राग; ११. अरुचि-तिरस्कार रखना, वह द्वेष; १२. झगडा मेरे दुष्कृत्य मन-वचन-काया से मिथ्या हो । १६६
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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