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३२. श्री सात लाख सूत्र।
विषय :
प्रतिक्रमण के समय
आदान नाम : श्री सात लाख सूत्र | समस्त जीवराशि के प्रति मुँहपत्ति का
गौण नाम : जीवराशि-आलोचना| हए हिंसादोष स्वरूप उपयोग पूर्वक बोलते-सुनते
सूत्र
प्रथम पापस्थानक की समय की मुद्रा।
विस्तार से आलोचना। मूल सूत्र उच्चारण में सहायक
पद क्रमानुसारी अर्थ सात लाख पृथ्वीकाय, सात लाख पृथ्-वी-काय, सात लाख पृथ्वी रूप शरीर वाले एक इंद्रिय के जीव, सात लाख अप्काय, सात लाख अप्-काय, सात लाख जल रूप शरीर वाले एक इंद्रिय के जीव, सात लाख तेउकाय, सात लाख तेउ-काय, सात लाख अग्नि रूप शरीर वाले एक इंद्रिय के जीव, सात लाख वाउकाय, सात लाख वाउ-काय, सात लाख वायु रूप शरीर वाले एक इंद्रिय के जीव, दश लाख प्रत्येक दश लाख प्र-त्-ये-क
दस लाख स्वतंत्र शरीर से युक्त वनस्पतिकाय, वनस्-पति-काय,
वनस्पति रूप एक इंद्रिय जीव, चौद लाख साधारण चौद लाख साधा-रण
चौदह लाख अनंत जीवो के बीच एक शरीर से युक्त वनस्पतिकाय, वनस्-पति-काय,
वनस्पति रूप के एक इंद्रिय, बे लाख बेइंद्रिय, बे लाख बे इन्-द्रिय,
दो लाख दो इंद्रिय वाले जीव, बे लाख तेइंद्रिय, बे लाख ते इन्-द्रिय
दो लाख तीन इंद्रिय वाले जीव, बे लाख चउरिंद्रिय, बेलाख चउ-रिन्-द्रिय, दो लाख चार इंद्रिय वाले जीव, चार लाख देवता, चार लाख देव-ता
चार लाख (पाच इंद्रिय वाले) देव लोक के जीव, चार लाख नारकी, चार लाख नार-की,
चार लाख (पाँच इंद्रिय वाले) नारक के जीव, चार लाख तिर्यंच पंचेंद्रिय, चार लाख तिर्-यञ् (यन्)- चार लाख (देव, मनुष्य और नारक
च पञ् (पन्)-चेन्-द्रिय, सिवाय के) पाच इंद्रिय वाले पशु-पक्षी आदि जीव, चौद लाख मनुष्य चौद लाख मनु-ष्य.
चौदह लाख मनुष्य, एवंकारे, चोराशी लाख जीव योनि मांहे माहरे जीवे जे कोई जीव हण्यो होय, हणाव्यो होय, हणतां प्रत्ये अनुमोद्यो होय, ते सवि हुं मन-वचन-कायाए करी मिच्छा मि दुक्कडं ॥ गाथार्थ : सात लाख प्रकार के (पृथ्वीरुप जीव) पृथ्वीकाय के जीव (= मट्टी, रेत, पथ्थर इत्यादि), सात लाख प्रकार के (पानी रुप जीव) अप्काय के जीव (= पानी, ओजस, बरफ, कोहरा इत्यादि), सात लाख प्रकार के (अग्निरुप जीव) अग्निकाय के जीव (= लाईट, बल्ब, बेटरी, मशाल इत्यादि), सात लाख प्रकार के (वायुरुप जीव), वायुकाय के जीव (= हवा, पवन, वायरा इत्यादि), दश लाख प्रकार के (एक शरीर में एक जीव रुप) साधारण वनस्पतिकाय के जीव (= जमीनकंद, नील, निगोद इत्यादि), दो लाख प्रकार के (सिर्फ स्पर्श और रस का अनुभव कर सके, ऐसे जीव रुप) बेइन्द्रिय जीव (= शंख, कोडी, कीडे इत्यादि), दो लाख प्रकार के (सिर्फ स्पर्श, रस व गंध का अनुभव कर सके, ऐसे जीव रुप ) तेइंद्रिय जीव (= कीडी (चिंटी), मंकोडा इत्यादि), दो लाख प्रकार के (सिर्फ स्पर्श, रस, गंध और रुप का अनुभव कर सके, ऐसे जीव रुप) चउरिद्रिय जीव (= मक्खी, मच्छर, खटमल, भ्रमर, बिच्छु इत्यादि), चार लाख प्रकार के देवता (= वैमानिक, भवनपति इत्यादि), चार लाख प्रकार के नारकी (= रत्नप्रभा इत्यादि), चार लाख प्रकार के (स्पर्श, रस, गंध, रुप और शब्द स्वरुप पांचो इन्द्रियों का अनुभव कर सके, ऐसे पशु रुप जीव) तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीव (= सर्प, पंखी, हाथी इत्यादि) और चौदह लाख प्रकार के मनुष्य; इस तरह (= ७+७+७+७+१०+१४ + २ + २ + २ + ४ + ४ + ४ + १४ = ८४) चोंराशी लाख प्रकार के जीव के योनि (उत्पत्ति) स्थान होते हैं । उस में से मेरे द्वारा किसी भी जीव की हिंसा हुई हों, किसी के पास हिंसा करवाई हो अथवा हिंसा करनेवालों की अनुमोदना की हो, वह सभी मन-वचन-काया से मिथ्या दृष्कृत्य करता हु।
१६५ F ilterational
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