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________________ ३१. श्री देवसिअआलोउंसूत्र आदान नाम : श्री देवसिअं आलोउस विषय : गौण नाम : अतिचार व्रतों में लगे हुए प्रतिक्रमण के इस प्रकार आगे अतिचारों की - - आलोचना सूत्र समय बोलते-सुनते प्रमार्जना करनी, आलोचना के साथ समय की मुद्रा। वह अविधि है। क्षमा याचना। मूलसूत्र उच्चारण में सहायक पदक्रमानुसारी अर्थ इच्छाकारेण संदिसहभगवन् ! इच्-छा-कारे-णसन्-दि-सह-भग-वन्! स्वेच्छा से आज्ञा प्रदान कीजिए भग-वन्! देवसिअं(राइअं)आलोउं? देव-सिअ-(रा-इअम्-)आ-लो-उम्? दिनसंबंधी(रात्री में कीये अपराधों की)आलोचना करूं? इच्छं, इच्-छम्, मैं आपकी आज्ञा स्वीकारकरता हूँ। आलोएमि आ-लो-ए-मि मैं आलोचना करता हूँ। जो मे देवसिओ अइयारो... जो मे देव-सिओअइ-आरो... मेरे द्वारा दिन में जो अतिचार हुआ हो... अर्थः हे भगवंत ! आप (मुझे) इच्छापूर्वक आज्ञा प्रदान करें कि (मैं) दिन (या रात्रि) सम्बन्धी पापों की आलोचना करु ? (तब गुरुभगवंत कहे 'आलोवेह' =आलोचना भले करो) तब (शिष्य कहे) । आपकी आज्ञा प्रमाण है । जो (कुछ) दिन (या रात्रि) सम्बन्धी व्रतों में अतिचार रूप पाप लगे हों, उसकी मैं आलोचना करता हूँ। • नोट : इस सूत्र का अनुसंधान सूत्र'श्री इच्छामि ठामि' के साथ। • इस सूत्र के प्रारम्भ में बहुत से श्रद्धालु आगे चरवला / 'देवसि (राइओ) अइआरो कओ काइओ...' से सूत्र पूर्ण हो, रजोहरण से प्रमार्जना करते हैं । उसमें दूसरी वांदणा के वहां तक बोलना होता है । उसमें प्रतिक्रमण के अनुसार बाद आनेवाले इस सूत्र को लक्ष्य में रखकर योगमुद्रा के 'देवसिओ' शब्द में आवश्यक परिवर्त्तन करना चाहिए । जैसे अनुसार दोनों पैरों के पंजे को रखने के लिए प्रमार्जन देवसिअ प्रतिक्रमण में 'देवसिओ', राइअ प्रतिक्रमण में किया जा सकता है। अवग्रह के अन्दर रहकर यह सूत्र, 'राइओ,' पक्खी प्रतिक्रमण में 'पक्खिओ', चौमासी देवसिक आदि अतिचार तथा वंदित्तु सूत्र आदि बोलकर प्रतिक्रमण में 'चउमासिओ' तथा संवत्सरी प्रकिक्रमण में उसके बाद अवग्रह के बाहर जाने का विधान है, वह 'संवच्छरिओ'बोलना चाहिए। ध्यान में रखना चाहिए। १६४ For Pale & Personal use on
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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