________________
आवश्यक-अवश्य करने योग्य क्रिया का पालन वांदणां सूत्र के द्वारा होता है। ★ जिन आवश्यक सूत्रों का उच्चारण करने के क्रिया के लिए उपयोगी होने के कारण दो बार उसकी गिनती लिए श्री वांदणा सूत्र का विशेष पद होता है, की जाती है। वह आवश्यक दो बार करना चाहिए।
जिन आवश्यक सूत्रों का उच्चारण करने के लिए वांदणासूत्र का उदाहरण=३, आवर्त्त-अहो कायं काय, ३ विशेष पद नहीं होता है, वह आवश्यक दोनों वांदणा में आने पर आवर्त्त जत्ता भे जवणिज्जं च भे ! इन दोनों भी एक ही बार गिनना चाहिए । उदाहरण के लिए वांदणा में आने के कारण, वह आवश्यक (१) यथाजात मुद्रा तथा (२) गुप्ति का पालन ।
इस सूत्र में आनेवाले तीन-तीन आवर्त्त के समय सावधानी रखने योग्य विधि: 'अ'- पू. महात्मा रजोहरण के ऊपर तथा श्रावक-श्राविकाएँ 'व' - निश्चित स्वर में बोलते समय चरणस्पर्श ( रजोहरण
चरवले पर स्थापित मुंहपत्ति दसों ऊंगलियों से स्पर्श करे। / मुंहपत्ति ) से उठाकर लिए गए उल्टे हाथ को 'हो'- चतुर्विध श्री संघ दसों ऊँगलियों की नोंक से ललाटप्रदेश (रजोहरण) ओघा अथवा मुँहपत्ति से ललाट का स्पर्श करे, वैसी मुद्रा करे।
(कपाल प्रदेश) के बीच में पीठ न पड़े, उस प्रकार 'का'- पू. महात्मा रजोहरण के ऊपर तथा श्रावक-श्राविकाएँ किया जाता है।
चरवले पर स्थापित मुँहपत्ति दसों ऊँगलियों से स्पर्श करे। 'णि'- चतुर्विध श्री संघ दसों ऊँगलियों की नोंक से चतुर्विध श्री संघ दसों ऊँगलियों की नोंक से ललाटप्रदेश कपालप्रदेश का स्पर्श करे, ऐसी मुद्रा करे। का स्पर्श करे, वैसी मुद्रा करे।।
'ज्ज'- पू. महात्मा रजोहरण के ऊपर तथा श्रावक'का'- पू. महात्मा रजोहरण के ऊपर तथा श्रावक-श्राविकाए श्राविकाएं चरवले के ऊपर स्थापित मुंहपत्ति पर
चरवले पर स्थापित मुंहपत्ति दसों ऊंगलियों से स्पर्श करे। दसों ऊँगलियों से स्पर्श करे। 'य'- चतुर्विध श्री संघ दसों ऊँगलियों की नोंक से ललाटप्रदेश 1 'च'- निश्चित स्वर में बोलते समय चरणस्पर्श ( रजोहरण का स्पर्श करे, वैसी मुद्रा करे।
/ मुँहपत्ति) से उठाकर लिए गए उल्टे हाथ को 'ज'- पू. महात्मा रजोहरण के ऊपर तथा श्रावक-श्राविकाए ( रजोहरण) ओघा अथवा मुंहपत्ति से ललाट
चरवले पर स्थापित मुँहपत्ति दसों ऊँगलियों से स्पर्श करे। (कपाल प्रदेश ) के बीच में पीठ न पड़े, उस प्रकार 'त्ता'- निश्चित स्वर में बोलते समय चरणस्पर्श (रजोहरण / किया जाता है।
मुंहपत्ति ) से उठाकर लिए गए उल्टे हाथ को (रजोहरण) 'भे'- चतुर्विध श्री संघ दसों ऊँगलियों की नोंक से
ओघा अथवा मुँहपत्ति से ललाट (कपाल प्रदेश) के ललाटप्रदेश का स्पर्श करे, ऐसी मुद्रा करे। बीच में पीठ न पड़े, उस प्रकार किया जाता है।
गुरु भगवंत से दूर रहने के 'भे'- चतर्विध श्री संघ दसों ऊंगलियों की नोंक से कपालप्रदेश श्रावक-श्राविकाएं चरवले के ऊपर मुहपत्ति में गुरुचरण का स्पर्श करे, ऐसी मुद्रा करे।
की स्थापना करते हैं, जबकि पू. महात्मा गुरुभगवंत के 'ज'- पू. मात्मा रजोहरण के ऊपर तथा श्रावक-श्राविकाएं चरवले बिल्कुल निकट होने के कारण वांदणां में वे रजोहरण पर के ऊपर स्थापित मुंहपत्ति पर दसों ऊँगलियों से स्पर्श करे। गुरुचरण की स्थापना करते हैं।
वांदणां सूत्र में आनेवाले २५ आवश्यक से सम्बन्धित जानकारी २ = अवनत, २ = प्रवेश, १ = यथाजातमुद्रा, १२ = आवर्त, ४ = शीर्षनमन तथा १ =निष्क्रमण और तीन गुप्ति का
पालन = २+२+१+१२+४+१+३= इस प्रकार २५ आवश्यक होते हैं।
Jak Escam
Sonomy.org