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________________ ४-संयम-यात्रा पृच्छा स्थान ज-त्ता भे!॥४॥ जत्-ता-भे!॥४॥ आपकी (संयम) यात्रा (ठीक चल रही है)४. ५. यापना पृच्छा स्थान ज-व-णिज्जंच भे! ॥५॥ जव-णिज्-जञ्-(जन्) च भे! ॥५॥ औरआपका(मन एवं इंद्रियाँ) उपघात पीड़ा ) रहित हैं? ५ ६. अपराधक्षमापना स्थान खामेमिखमासमणो! खामे-मिखमा-सम-णो! हेक्षमाश्रमण ! दिन में हुए व्यतिक्रम देवसिअं(राइअं)वइक्कम ॥६॥ देव-सिअं-(राइ-अं)-वइक्-क-मम् ॥६॥ (अपराधों ) की मैं क्षमा मांगता हूँ।६. गाथार्थ : आपकी (संयम ) यात्रा (ठीक चल रही है)? आपका मन और इंद्रियाँ पीड़ा रहित है ? हे क्षमाश्रमण ! दिन में हुए अपराधों की मैं क्षमा मांगता हूँ। ६. आवस्सिआए, पडिक्कमामि आ-वस्-सि-आए, पडिक्-क-मामि आवश्यक क्रिया के लिये(मैं अवग्रहसे बाहरजाता हूँ) मैं प्रतिक्रमण करता हूँ, खमासमणाणं देवसिआए,(राइआए) खमा-सम-णा-णम् देव-सिआए(राइ-आए) दिन में क्षमाश्रमण के प्रति आसायणाए, आ-सा-य-णाए तैंतीस में से जो कोई भी तित्तीसन्नयराए, तित्-ती-सन्-न-यरा-ए, आशातना की हो। गाथार्थ : आवश्यक क्रिया के लिये ( मैं अवग्रह में से बाहर जाता हूँ)। दिन में क्षमाश्रमण के प्रति तैंतीस में से जो कोई भी आशातना कि हो ( उसका ) मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। जं किंचि मिच्छाए । जङ्-किञ् (किन्)-चि मिच्-छाए, जो कोई मिथ्या भाव द्वारा मण-दुक्कडाए, वय-दुक्कडाए, मण-दुक्-क-डाए, वय-दुक्-क-डाए मन के दुष्कृत्यों द्वारा, वचन के दुष्कृत्यों द्वारा, काय-दुक्कडाए, काय-दुक्-क-डाए, काया से दुष्कृत्यों द्वारा, कोहाए, माणाए, को-हा-ए मा-णा-ए, क्रोध से, मान से, मायाए, लोभाए, मा-या-ए, लो-भा-ए, माया से या लोभ से, गाथार्थ : जो कोई मिथ्या भाव द्वारा, मन, वचन या काया के दुष्कृत्य द्वारा, क्रोध, मान, माया या लोभ से; सव्व-कालिआए, सव-व-कालि-आए, सर्व काल संबंधी सव्व-मिच्छोवयाराए सव-व-मिच-छो-वया-राए, सर्व प्रकार के मिथ्या उपचारों से सव्व-धम्माइक्कमणाए, सव-व-धम्-मा-इक्-कम-णाए सर्व प्रकार के धर्म (करने योग्य प्रवृत्तियों) के अतिक्रमण से आसायणाए आसा-यणा-ए हुए आशातना द्वारा जो मे अइयारो कओ, जो मे अइ-यारो कओ, मुझसे जो अतिचार हुआ हो, तस्स खमासमणो ! पडिक्कमामि, तस्-स खमा-सम-णा! पडिक्-कमा-मि उनका हे क्षमाश्रमण ! मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। निंदामि, गरिहामि निन्-दामि-गरि-हा-मि मैं निंदा करता हूँ , मैं गर्दा करता हूँ। अप्पाणं वोसिरामि ॥७॥ अप्-पाणं-वो-सि-रामि ॥७॥ (अशुभप्रवृत्तियोंवाली)आत्माका मैंत्यागकरताहूं।७. गाथार्थ : सर्व काल में , सर्व प्रकार के मिथ्या उपचारों से या सर्व प्रकार के धर्म अतिक्रमण से हुई आशातना द्वारा मुझ से जो कोई अतिचार हुआ हो, हे क्षमाश्रमण ! उनका मैं प्रतिक्रमण करता हूं, निंदा करता हूँ, गर्दा करता हूँ एवं (अशुभ प्रवृत्तियों वाली) आत्मा का त्याग क १५९ mainelibrary.org Jain Education Inter S
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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