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३०. श्री सुगुरुवांदणा सूत्र
पद
आदान नाम : श्री सुगुरु वांदणा सूत्र
विषय: गौण नाम द्वादशावर्त वंदन सूत्र
| २५ आवश्यकों के साथ गुरु-अक्षर : २५
३२ दोष रहित विनय वांदणा देते दशो उंगलीयों का
लघु-अक्षर : २०१
भावयुक्त द्वादशावर्त्त समय की मुद्रा।
सर्व अक्षर : २२६ ललाट पे स्पर्श।
वंदन का वर्णन। मूल सूत्र उच्चारण में सहायक
पद क्रमानुसारी अर्थ
१. इच्छा-निवेदन स्थान इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं इच्-छा-मि-खमा-समणो-वन्-दि-उम् मैं चाहता हूँ , हे श्रमाश्रमण ! वंदन करना जावणिज्जाए निसीहिआए ॥१॥ जाव-णिज्-जाए-निसी-हि-आए ॥१॥ (अन्य प्रवृत्ति/व्यापार) त्याग कर शक्ति अनुसार। १गाथार्थ : हे श्रमाश्रमण !(अन्य व्यापार) त्याग कर शक्ति के अनुसार मैं वंदन करना चाहता हूँ। १.
२. अनुज्ञा-स्थान अणुजाणह, अणु-जाण-ह,
(मर्यादित भूमि / गुरु के समीपवर्ती भूमि ) में । मे मिउग्गहं मे मि-उग्-ग-हम्
प्रवेश करने के लिये मुझे आज्ञा प्रदान करो निसीहि ॥२॥ नि-सी-हि ॥२॥
अशुभ व्यापार को त्याग करके । २. गाथार्थ : मुझे अवग्रह में प्रवेश करने के लिये आज्ञा प्रदान करो । अशुभ व्यापार को त्याग करके, आपके चरणों को मेरी काया ( मेरे हाथ ) द्वारा स्पर्श होने से हुए खेद के लिए आप क्षमा करें। २. अहो, कार्य, अ-हो, का-यम्,
1(आपके) अधो शरीर (शरीर का नीचला भाग/चरणों) काय-संफासं, का-य-सम्-फा-सम्,
को मेरे शरीर (हाथ) द्वारा स्पर्श करने से खमणिज्जो भे ! किलामो खम्-णिज्-जो-भे ! कि-लामो, हुए खेद के लिये आप क्षमा करें। गाथार्थ : आपका दिन अल्प ग्लानि और अधिक सुख पूर्वक व्यतीत हुआ है ? आपकी (संयम ) यात्रा (ठीक चल रही है)? आपका मन और इंद्रिया पीड़ा रहित है ? हे क्षमाश्रमण ! दिन में हुए अपराधों की मैं क्षमा मांगता हूँ। २.
३. शरीर सुखशाता-पृच्छा स्थान अप्प-किलंताणं बहुसुभेण भे! अप्-प कि-लन् ता णम् बहु-सु-भेण-भे! आपका दिन अल्प ग्लानि दिवसो (राइओ) दि-वसो (रा-इओ)
और अधिक सुख वईक्कंतो ॥३॥ व-इक्-कन्-तो ॥३॥
पूर्वक व्यतीत हुआ है ? । ३. गाथार्थ : आवश्यक क्रिया के लिये (मैं अवग्रह से बाहर जाता हूँ)। दिन में क्षमाश्रमण के प्रति तैंतीस में से जो कोई भी आशातना हुई हो (उसका) मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। ३.
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