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________________ वांदणा में २५ आवश्यक की मुद्रा १० _ 'अ', 'का', 'का' तथा 'ज'"ज्ज' बोलते समय दोनों हाथों की दसों ऊगलियों से (नाखून का स्पर्श न हो, इस प्रकार) चरवले पर स्थापित मुहपत्ति को स्पर्श करनी चाहिए। नीचे से ऊपर की ओर हथेली फिराते समय बीच में कहीं भी अलग नहीं होना चाहिए। 'त्ता''व' और 'च' बोलते समय मुंहपत्ति को पूंठ न लगे, उस तरह मध्यस्थान पर हथेली को एकत्रित करनी चाहिए। १४ १२ १३ । 'हो', 'यं"य' तथा 'भे', 'णि','भे' 'संफासं' तथा 'खामेमि' बोलते हुए शीर्षनमन बोलते समय दोनों हाथों की दसों ऊगलियों से करते समय दोनों हाथों की खुली (नाखन का स्पर्श न हो, इस प्रकार) (अंजलि जैसी) हथेली हल्के से मुहपत्ति पर कपाल प्रदेश पर स्पर्श करना चाहिए। स्पर्श करके मस्तक हथेली में रखना चाहिए। मस्तक हथेली पर स्पर्श करे, उस समय पीछे से थोड़ा भी ऊँचा नहीं होना चाहिए। (त्रस जीवों की हिंसा से बचने के लिए) ---- 'आवस्सियाए' बोलते समय पहले पीछे की ओर दृष्टि से पडिलेहणा कर, उसके बाद तीन बार बाए से दाहिने. क्रमशः प्रमार्जना करनी चाहिए। पहली वांदणा में तथा दूसरी वांदणा के अन्त में गुरु के अवग्रह से बाहर निकलते समय की मुद्रा। अवग्रह से बाहर निकलते समय की योगमुद्रा के समान दोनों पैरों के बीच में अन्तर रखना चाहिए। दुसरी वांदणा में ऐसा कोई नियम नहीं है। १५७
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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