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वांदणा में २५ आवश्यक की मुद्रा
'इच्छामि खमासमणो'
बोलते-सुनते समय की मुद्रा।
'वंदिउं' बोलते-सुनते समय थोड़ा सा नीचे झुकें।
'निसीहि' बोलते समय गुरु के अवग्रह में प्रवेश
करने के लिए जमीन/कटासणा पर बाएं से। दाहिने तीन बार क्रमशः प्रमार्जना करनी चाहिए।
गुरु के अवग्रह में
प्रवेश करते समय की मुद्रा।
प्रवेश कर नीचे बैठने से पहले खमासमण के समान पैर के आगे-पीछे तीन-तीन बार प्रमार्जना करनी चाहिए।
प्रमार्जना करके बैठते समय किसी का भी सहारा लिए बिना बैठना चाहिए।
यथाजात मुद्रा में बैठने के बाद खमासमण की भांति मुख तथा दोनों हाथों की प्रमार्जना ( मुंहपत्ति से ) कर मुहपत्ति को चरवले पर स्थापन करने से पहले क्रमशः तीन बार प्रमार्जना करनी चाहिए।
गुरुचरण पादुका की संकल्पना पूर्वक मुहपत्ति की चरवला पर स्थापना करनी। उस समय मुहपत्ति के बंद किनारे का भाग
बाई ओर नीचे रहे, ऐसे रखना चाहिए।
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